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कांग्रेस मुख्यालय कितना बिकाऊ?

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यों भारत का राजनैतिक इतिहास हिंदुओं के बिकाऊ माल का सत्य लिए हुए है। फिर पिछले दस सालों से हिंदुओं के राष्ट्रवादी, चरित्रवादी मोदी-शाह ने नेताओं के खरीदफरोख्त की जैसी मंडी लगाई है तो कांग्रेस में भी वहीं होगा जो हिंदुओं में होता है। चाल, चेहरा, चरित्र अब क्या होता है! बहरहाल, मैंने हरियाणा की जानकारी में जब सुना कि हुड्डा ने अपने 72 उम्मीदवारों के टिकट कराए हैं तो खटका हुआ! भला ऐसा कैसे, यह गड़बड़ है। कांग्रेस के खांटी जानकारों से मालूम किया तो राहुल गांधी-मल्लिकार्जुन खड़गे की कांग्रेस में नई दुर्दशा मालूम हुई।

कांग्रेस मुख्यालय अब नासमझ, बिकाऊ और नौसखियों से ऐसा भरा है कि मोदी-शाह, अडानी-अंबानी के लिए यहां के चेहरों को खरीदना, ब्लैकमेल करना, गलत उम्मीदवार खड़े करवाना, राहुल-प्रियंका को बहकाना चुटकियों का काम है। कुछ वैसी ही दशा जैसे बसपा, सपा, राजद आदि उन पार्टियों में है, जहां भाजपा जब चाहे तब उसके नेता या पार्टी तोड़ लेती है। हरियाणा के चुनाव में कांग्रेस के संभावित उम्मीदवारों के चेहरों की भाजपा को खबर थी। उसी अनुसार उसने सीटवार बिसात बिछाई।

सच है हुड्डा परिवार की जाटों पर पकड़ है। इसी कारण कांग्रेस को वोट अच्छे मिले। मगर हुड्डा की ताकत जाट वोट है तो केवल जाटो से बेड़ा पार नहीं होता है, यह सच्चाई हुड्डा और कांग्रेस मुख्यालय को क्या नहीं मालूम थी? सो पहली गलती भूपेंद्र सिंह हुड्डा की। उन्होंने मुंगेरीलाल के  ख्यालों (अशोक गहलोत, भूपेश बघेल, कमलनाथ आदि की लीक पर) में अपने वापिस सीएम बनने और फिर बेटे के सीएम की प्लानिंग में पूरी लड़ाई अकेले अपने कंधों पर ली। कांग्रेस मुख्यालय को खरीदा, पटाया। राहुल गांधी के सर्वाधिक भरोसेमंद कांग्रेस संगठन महासचिव वेणुगोपाल, उम्मीदवार सर्वेयर सुनील कनुगोलू, जयराम रमेश, प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया, प्रदेश अध्यक्ष उदयभान, प्रियंका गांधी और राहुल गांधी के स्टाफ को जेबी बनाया।

इस नाते मोदी-शाह बनाम कांग्रेस का बेसिक फर्क है कि मोदी-शाह के कई सर्वे करने वाले हैं, उम्मीदवारों की कई ओर से लिस्ट आती है। ये सूचियां दो (मोदी-शाह) के अलावा किसी तीसरे से शेयर नहीं होती हैं। राहुल गांधी ने अकेले कर्नाटक की जीत में एक सर्वेक्षक सुनील कनुगोलू पर फिदा हो कर अकेले उसे सारा ठेका दे रखा है। उसका कर्नाटक में कैबिनेट का दर्जा करवाया। जबकि मोदी-शाह ऐसे सर्वेक्षक फन्ने खां को जूतियों की नोंक पर रखते हैं।

बहरहाल, कांग्रेस की सर्वे टीम ने हरियाणा को लेकर भी लिस्ट बनाई। संभावित उम्मीदवारों की पैनल की लिस्ट राहुल गांधी के राजनीतिक मैनेजर, संगठन महासचिव वेणुगोपाल के पास गई और खेला हुआ। वेणुगोपाल ने पैनल हुड्डा खेमे को शेयर की। स्वाभाविक जो भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अपनी लिस्ट के वफादार नामों के अलावा बाकी जो नाम वेणुगोपाल के यहां टॉप पर थे उन्हे एक-एक करके बुला कर उन पर अपना हाथ रखा। उनका टिकट कराने की बात कर उनकी वफादारी बनाई। हुड्डा ने उनके नाम अपनी लिस्ट में जोड़ या हाईकमान की संभावी लिस्ट में शैलजा के बेहद करीबी उम्मीदवारों को चिन्हित कर उन्हें कटवाने की दलीलें बनाईं या वेणुगोपाल एंड पार्टी को तैयार किया। ध्यान रहे उनकी पैरोकार प्रियंका गांधी भी रही हैं।

इसलिए जब राहुल गांधी, खड़गे अपनी लिस्ट (सुनील-वेणुगोपाल द्वारा ही बनाई हुई) लेकर चुनाव समिति की बैठक में प्रदेश नेताओं के साथ बैठे तो राहुल गांधी को ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं थी। हुड्डा की लिस्ट, प्रदेश की लिस्ट व कांग्रेस मुख्यालय, राहुल, खड़गे की लिस्ट में कॉमन नाम ही अधिक थे। इसलिए यह हल्ला सही था कि हुड्ड़ा के करीबी 72 उम्मीदवार तय हुए। मतलब राहुल गांधी, वेणुगोपाल, हुड्डा किसी ने भी दिमाग नहीं लगाया कि जो उम्मीदवार तय कर रहे हैं वह कांटे के मुकाबले में जमीनी लड़ाई में समर्थ है या नहीं? सर्वे टीम ने भी जो मूल पैनल बनाई क्या वह कांग्रेस के अंदरूनी भ्रष्टाचार, टिकटार्थियों के भ्रष्टाचार से तो प्रभावित नहीं है? कांग्रेस जो उम्मीदवार तय कर रही है उनके आगे भाजपा के उम्मीदवार चेहरों, जात-धर्म समीकरणों और बागियों जैसे फैक्टर में पार्टी क्या करती हुई होगी, सीट पर कैसा रियल मुकाबला बनेगा? इसका कांग्रेस मुख्यालय में कोई सिनेरियो, हिसाब नहीं!

जाहिर है कांग्रेस में वेणुगोपाल (कांग्रेस के संगठन महासचिव) का रोल भस्मासुर वाला है, यह मध्य प्रदेश, छतीसगढ़, राजस्थान से ले कर हरियाणा के कांग्रेसियों के अंदरूनी अनुभवों में बार-बार सुनाई दे रहा है। वे राहुल गांधी के आंख-कान-नाक सब हैं। उनके घर-ऑफिस के मैनेजमेंट में राजनीति का एक अकेला एक्सेस प्वाइंट वेणुगोपाल हैं। और वेणुगोपाल-जयराम रमेश दोनों मल्लिकार्जुन खड़गे को बाईपास करने तथा राहुल के सामूहिक विचार-विमर्श में अड़ंगे की रणनीति बनाए हुए हैं।

कांग्रेस मुख्यालय में नैरेटिव में जयराम रमेश तथा संगठन और राजनीति के सर्वेसर्वा वेणुगोपाल हैं। मैं अब जिस उम्र में हूं, उसके नाते मुझे इनका चरितनामा, और हाल में जो सुना है वह नहीं लिखना चाहिए। लेकिन इतना समझ आता है कि मोदी-शाह के लिए इन दोनों का टेंटुआ दबाना मुश्किल नहीं है। जबकि ऐसा मल्लिकार्जुन खड़गे व राहुल गांधी को ले कर कतई नहीं है। केवल खडगे और राहुल ही दो ऐसे चेहरे लगते हैं जो न डरेंगे, न बिकेंगे और न थकेंगे।

लेकिन बाकी सब मोदी-शाह, उनकी मशीनरी, उनकी राजनीति की बिसात के प्यादे माफिक हैं। मोदी सरकार ने सभी विरोधी पार्टियों और उनके पदाधिकारियों पर निगरानी, उनमें भेदिए बनाने के वे सब तौर-तरीके अपनाए हुए हैं, जिससे भाजपा हमेशा बीस है! हरियाणा में सैलजा सीएम के लिए बेताब नहीं थीं। सिर्फ उनके एक-दो उम्मीदवारों के टिकट नहीं होने का मसला था। वे कई दिन कोप भवन में रहीं लेकिन वेणुगोपाल, जयराम आदि किसी ने राहुल गांधी को तुरंत जा कर मनाने की सलाह नहीं दी।

जबकि भाजपा ने तुरंत मौका लपका। दलित वोटों में हल्ला बना दिया। दलितों में प्रचार हुआ कि सोचें जब सैलजा को भी नहीं पूछ रहे हैं तो जाटों के राज में दलितों का क्या होगा? ठीक विपरित भाजपा के अनिल विज ने सैनी के मुकाबले मुख्यमंत्री की दावेदारी ठोकी तो कुछ ही मिनटों में भाजपा प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान, फिर अमित शाह ने विज को हड़काया और सैनी का ही नाम दोहराया!

ये छोटी, छोटी बातें हैं, लेकिन मोदी-शाह के आगे एक-एक बूंद, एक-एक वोट को एकत्र करने की राहुल गांधी और विपक्षी नेताओं की चुनौती में इन्हीं बातों को ध्यान में रखने की जरूरत है। अन्यथा यह होता रहेगा कि विपक्ष हरियाणा जीत रहा है और अचानक हरियाणा गया, झाऱखंड गया, दिल्ली गया, यूपी व बिहार गया।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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