लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह राज्यों में हो रहे चुनाव के महत्व को समझ रहे हैं। उनको पता है कि अगर इन चुनावों में हारे तो देश का माहौल बदलेगा और साथ साथ भाजपा के अंदर भी माहौल और धारणा दोनों बदल जाएंगे। अभी तक तो यह कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में 10 साल की थोड़ी बहुत एंटी इन्कम्बैंसी या विपक्ष के मजबूत गठबंधन ने सीटें कम कर दीं। यह भी कहा जा रहा है कि देश के लोग ऐसा ही जनादेश चाहते थे। उन्होंने विपक्ष को नहीं जिताया है, बल्कि भाजपा का बहुमत थोड़ा कम किया है। लेकिन अगर राज्यों में हारे तो यह नैरेटिव खत्म हो जाएगा और यह धारणा बनेगी कि अब देश के लोगों ने मोदी और शाह की जोड़ी को खारिज करना शुरू कर दिया है। इससे सब कुछ बदलेगा।
तभी बहुत सोच विचार के बाद ऐसा बंदोबस्त किया गया कि चार राज्यों के चुनाव अलग अलग हों और भाजपा को अपनी स्थिति दुरुस्त करने का मौका मिले। इसी वजह से 13 राज्यों की 46 विधानसभा सीटों और वायनाड की लोकसभा सीट के उपचुनाव में भी देरी की गई। जब हरियाणा और जम्मू कश्मीर में चुनाव शुरू हुए तो उसके बाद से सारे उपाय किए जा रहे हैं कि कैसे भी हो चुनाव जीता जाए। केंद्रीय कर्मचारियों के लिए पेंशन योजना से लेकर 70 साल से ऊपर की उम्र के बुजुर्गों को आयुष्मान भारत के तहत पांच लाख रुपए तक के मुफ्त इलाज का फैसला और प्याज व बासमती चावल के लिए तय की गई न्यूनतम निर्यात कीमत को खत्म करना इसी योजना का हिस्सा है। इसके साथ ही चुनावी रणनीति के तहत दोनों राज्यों में विपक्ष के वोट बांटने का बंदोबस्त किया गया है तो उम्मीदवारों के चयन में भी सारी सीमा तोड़ दी गई है।
हरियाणा में भाजपा ने टिकट बांटते हुए सिर्फ एक कसौटी पर ध्यान दिया और वह ये है कि उम्मीदवार चुनाव जीत सकता है या नहीं। फिर चाहे उसकी बैकग्राउंड कुछ भी क्यों न हो उसे टिकट दी गई। भ्रष्टाचार, आपराधिक मामले या परिवारवाद जैसे तमाम मुद्दों को भाजपा ने किनारे कर दिया। सोचें, भाजपा सिरसा की सीट पर हरियाणा लोकहित पार्टी के गोपाल कांडा को समर्थन दे रही है! कांडा पहले इनेलो और बसपा गठबंधन में लड़े थे। लेकिन बाद में भाजपा ने उनको समर्थन दिया। पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और प्रदेश अध्यक्ष मोहन लाल बडौली दोनों ने कहा कि कांडा उनके उम्मीदवार हैं। कांडा की आर्थिक पृष्ठभूमि के बारे में बात नहीं भी करें तो उनके ऊपर अपनी एयरलाइन की होस्टेस गीतिका शर्मा को आत्महत्या के लिए मजबूर करने का आरोप लगा था। गीतिका शर्मा अपने सुसाइड नोट में यह बात लिख कर मरी थी। इस आरोप में कांडा गिरफ्तार भी हुए। बाद में परेशान होकर गीतिका शर्मा की मां ने भी खुदकुशी कर ली। इन सब बातों को ताक पर रख कर भाजपा गोपाल कांडा को समर्थन दे रही है।
भाजपा ने कांग्रेस की नेता किरण चौधरी को पार्टी में लेकर उनको राज्यसभा भेजा और उनकी बेटी श्रुति चौधरी को तोशाम विधानसभा सीट से टिकट भी दी। केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह की बेटी आरती राव को तो पार्टी ने टिकट दी ही साथ ही अहीरवाल क्षेत्र की ज्यादातर टिकटें उनके हिसाब से बांटी क्योंकि उसको लग रहा है कि अहीरवाल के इलाके में राव इंद्रजीत सिंह तारणहार हो सकते हैं। कुलदीप बिश्नोई के बेटे भव्य बिश्नोई को तो खैर आदमपुर से टिकट मिली ही है। सबसे हैरान करने वाले उम्मीदवार सुनील सांगवान हैं, जिनको भाजपा ने चरखी दादरी से उम्मीदवार बनाया। वे हरियाणा के बड़े नेता सतपाल सांगवान के बेटे हैं। लेकिन उससे अहम यह है कि वे रोहतक की सुनारिया जेल के अधीक्षक थे, जहां हत्या और बलात्कार का दोषी राम रहीम बंद है। सांगवान के कार्यकाल में राम रहीम को छह बार परोल या फरलो मिली। एक और खास बात यह है कि सुनील सांगवान ने जेल अधीक्षक के पद से इस्तीफा देकर भाजपा ज्वाइन की और तीन दिन के भीतर भाजपा ने उनको टिकट दे दी।
इसके बाद चुनाव प्रबंधन जिस स्तर पर होने की खबर है वह अलग हैरान करने वाला है। बताया जा रहा है कि एक सुनियोजित रणनीति के तहत अरविंद केजरीवाल को केंद्रीय एजेंसियों से राहत मिली है। साजिश थ्योरी के मुताबिक उनका कांग्रेस से तालमेल नहीं करना भी इसी रणनीति का हिस्सा है और उन्होंने रणनीति के तहत ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर अपने को हरियाणा के चुनाव में झोंका है। वे कांग्रेस का कितना नुकसान कर पाएंगे यह नहीं कहा जा सकता है लेकिन वे शुक्रवार से ही हरियाणा के मैदान में कूद गए हैं। वे कई रैलियां करेंगे, रोड शो करेंगे और डोर टू डोर घूम कर प्रचार करेंगे।
इसी तरह दो और गठबंधन हैं, जिनका मकसद कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाना है। ध्यान रहे बरसों तक हरियाणा का जाट मतदाता देवीलाल और चौटाला परिवार के साथ जुड़ा रहा। उनसे ही वोट भूपेंद्र सिंह हुड्डा को ट्रांसफर हुआ। लेकिन अब भी चौटाला परिवार का कई इलाकों में असर है। इस बार दो हिस्सों में बंटा चौटाला परिवार दलित राजनीति करने वाली पार्टियों से तालमेल करके लड़ रहा है। ओमप्रकाश चौटाला की पार्टी इनेलो का मायावती की बहुजन समाज पार्टी से तालमेल है और दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी का चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी से तालमेल है। दोनों गठबंधन जाट और दलित वोट की राजनीति कर रहे हैं और अच्छी खासी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवार भी उतारे हैं। कांग्रेस की राजनीति भी मूल रूप से इस तीन वोट बैंक की है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा और चौधरी उदयभान के जरिए कांग्रेस ने जाट और दलित का समीकरण बनाया है और कांग्रेस नेता मान रहे हैं कि इस बार मुस्लिम एकमुश्त कांग्रेस को वोट देंगे। लेकिन इनेलो, बसपा, जजपा, आजाद समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी सब मिल कर कांग्रेस का यह वोट काटने की राजनीति कर रहे हैं। तभी भाजपा भरोसे में है कि वह पिछड़ा, पंजाब, गुर्जर, वैश्य, यादव और कुछ ब्राह्मण वोट लेकर जीत जाएगी। हालांकि अभी तक तमाम सर्वेक्षणों और जमीनी फीडबैक में भाजपा बहुत पीछे दिख रही है।