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गपशप

बेतरतीब विकास और बीमार भारत

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विकास के क्या मायने है? इसकी भारत में कभी भी व्यवस्थित धारणा नहीं रही है। सब कुछ बेतरतीब तरीके से हुआ है। अंग्रेज जो शहर बसा गए उसके अलावा कोई शहर तरतीब या व्यवस्था के साथ नहीं बसाया गया। सड़कें बेतरतीब अंदाज में बनी हैं, जिन पर बेहिसाब गाड़ियों की भीड़ है। चुनिंदा शहरों के आस-पास विकास की सारी परियोजनाएं बनाई गईं, जिनसे शहर का सौंदर्य खत्म हो गया है। और सारे शहर झुग्गी-झोपड़ी में बदल गए है। गांव जहां खाली हो गए है वही शहरों में अंधाधुंध भीड़ बढ़ी है।

दिशंबर के आखिर में क्रिसमस और नए साल का जश्न सप्ताहांत में आया तो राजधानी दिल्ली से लेकर आसपास की तमाम जगहों पर जैसी भीड़ जुटी वह हैरान करने वाली थी। मसूरी, नैनीताल, देहरादून से लेकर सुदूर पहाड़ों में रोहतांग दर्रे तक हजारों की संख्या में गाड़ियों से लाखों लोग पहुंचे। क्रिसमस के समय मनाली के रास्ते में 10 किलोमीटर का जाम लगा रहा और सैकड़ों लोगों ने सड़क पर रात बिताई। इसी तरह नए साल के जश्न की तैयारियों में 30 और 31 दिसंबर को जो भी दिल्ली की सड़कों पर निकला वह फंसा रहा। इंडिया गेट पर एक लाख से ज्यादा लोग पहुंचे। दिल्ली के चिड़ियाघर के आसपास सारी सड़कें जाम रहीं। लोगों की भीड़ की वजह से प्रगति मैदान के पास टनल बंद करना पड़ा।

भीड़ की इन खबरों के साथ पूरे साल का लेखा-जोखा प्रकाशित हुआ, जिसमें बताया गया कि इस साल साफ हवा के दिन और घट गए हैं। पिछले साल 365 दिन में से 44 दिन साफ और स्वच्छ हवा के रहे थे। इस साल ऐसे दिनों की संख्या 24 रह गई है। सोचें, दिसंबर के महीने में जब किसानों का पराली जलाना बंद हो जाता है तब दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक लगभग हर दिन तीन सौ से ऊपर रहा यानी बहुत खराब की श्रेणी में रहा। कई दिन तो हवा की गुणवत्ता गंभीर श्रेणी में चली गई। पराली जलाना बंद होने के बाद भी अगर वायु गुणवत्ता सूचकांक चार सौ से ऊपर है तो ऐसा गाड़ियों के धुएं से है और बायोमास जलाने से निकलने वाले धुएं की वजह से है। दिल्ली में एक तरफ ऊंची इमारतें बढ़ती जा रही हैं तो दूसरी ओर ऐसी बस्तियां भी बढ़ रही हैं, जहां लकड़ी, गोबर के उपले या कोयला जला कर लोग ठंड से बचने के उपाय करते हैं या खाना बनाते हैं। इसके धुएं से दिल्ली के लोगों का दम घुट रहा है। यह तब हो रहा है, जब सरकार दावा कर रही है कि 10 करोड़ से ज्यादा लोगों को उज्ज्वला योजना के तहत मुफ्त रसोई गैस सिलेंडर मिला हुआ है। 10 करोड़वीं लाभार्थी के यहां तो खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चाय पीने गए थे।

पिछले दिनों प्रदूषण से निपटने के उपायों पर चर्चा के लिए दुबई में सीओपी-28 की बैठक हुई थी। इसमें भारत ने दो टूक कहा कि अपनी ऊर्जा जरुरतों को पूरा करने के लिए भारत कोल आधारित पावर प्लांट पर ही निर्भर रहेगा और उसमें कमी नहीं करेगा। भारत स्वच्छ ऊर्जा के भी उपाय करेगा लेकिन प्रदूषण फैलाने वाले स्रोतों पर निर्भरता अभी कम नहीं हो सकती। इसका मतलब है कि साफ हवा की भविष्य में कोई संभावना नहीं है। पीने का पानी भारत में पूरी तरह से प्रदूषित हो चुका है और हर घर में आरओ के जरिए साफ पानी की व्यवस्था हो रही है। नल से जल की आपूर्ति का ढिंढोरा पीटा जा रहा है लेकिन वह पानी पीने लायक नहीं है। नदियों की सफाई नहीं हो रही है और भूमिगत जल का अंधाधुंध दोहन है। पंजाब और हरियाणा से लेकर महाराष्ट्र और बिहार तक भूमिगत जल का स्तर बहुत नीचे चला गया है और पानी के लिए पांच सौ मीटर या उससे भी नीचे तक खुदाई करनी पड़ रही है।

हवा और पानी के साथ साथ पूरी खाद्य शृंखला प्रदूषित हो गई है। पेस्टिसाइड के इस्तेमाल से खाने-पीने की सारी चीजों में अपने आप केमिकल भरता जा रहा है। बाकी कारोबारियों के लालच से फूड चेन अलग प्रदूषित हो रही है। हर फल और सब्जी के अंदर किसान द्वारा पेस्टिसाइड भरा गया है तो ऊपर से रंग-रोगन करके उसे चमकाने के नाम पर कारोबारियों ने केमिकल भरा है। नदियों के पानी के प्रदूषित होने से मछली से लेकर पानी के अंदर होने वाले तमाम फल और सब्जियां संक्रमित हो गई हैं। इंजेक्शन लगा कर फलों को मीठा किया जा रहा है और मुर्गे समय से पहले बड़े किए जा रहे हैं। इंजेक्शन के सहारे गाय-भैंसे गर्भ धारण कर रही हैं और इंजेक्शन के जरिए उनका दूध निकाला जा रहा है। इस तरह खाद्य शृंखला के प्रदूषित होने का नतीजा है कि आदमी के साथ साथ पशु-पक्षी भी बीमार हो रहे हैं। भारत में लोगों की औसत आयु बढ़ रही है लेकिन युवावस्था से ही लोग बीमार हो जा रहे हैं। लंबी उम्र बीमारियों के साथ है। ढेर सारी दवाओं के सेवन के साथ लंबी उम्र है

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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