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मध्य वर्ग और ‘क्रिमी’ भीड की दशा!

भारत में शिद्दत से अवसरों का तलाशता, छटपटाता एक छोटा सा मध्यवर्ग है। इसमें वे लोग हैजो सरकारी नौकरी में है या पेंशन पाते है या संगठित क्षेत्र की निजी नौकरी में है या ठीक-ठाक व्यापार कर रहा है। लेकिन इनके लिए अवसर लगातार सिमटते हुए हैं। तभी मध्य वर्ग की आबादी का एक हिस्सा किसी तरह से अमेरिका या दुनिया के किसी दूसरे सभ्य देश में वैध या अवैध रूप से घुसने की कोशिश में है। पिछले दिनों तीन सौ भारतीयों को लेकर निकारागुआ जा रहा एक विमान फ्रांस ने रोक लिया था और जांच के बाद वहीं से लौटा दिया था। यह विमान ‘डंकी रूट’ का हिस्सा था, जिसके जरिए लोग अवैध तरीके से मेक्सिको और उसके बाद अमेरिका या कनाडा में घुसते हैं। उस विमान में 70 फीसदी लोग पंजाब के और 30 फीसदी गुजरात के थे।

सोचें, देश के दो अपेक्षाकृत अधिक सम्पन्न राज्य के लोग कितने बेचैन हैं? किसी भी तरह से ये किसी सभ्य व विकसित या किसी भी तरह विदेश में जाने के लिए छटपटाता हुआ है। इस खबर के बाद पता चला कि पिछले दिनों दुबई से तीन विमान निकारागुआ गए। उनमें भी बड़ी संख्या में भारतीय सवार थे। अमेरिका में 30 लाख भारतीय हैं। इनमें एक लाख के करीब अवैध रूप से रह रहे भारतीय हैं। कितने लोग अवैध रूप से सीमा पार करने में परिवार के साथ मर गए, वह आंकड़ा अलग है। एक अच्छे जीवन की तलाश में मध्य वर्ग के लोग लाखों खर्च करके अवैध रूप से अमेरिका या यूरोप जाना चाहते हैं।

देश की आबादी में अमीरों का एक जो तीसरा वर्ग है उसके हजारों लोग हर साल भारत की नागरिता छोड़ रहे हैं। ये अमेरिका, यूरोप, ब्रिटेन या ऑस्ट्रेलिया जा रहे हैं। इसी अमीर और सरकारी या कॉरपोरेट की नौकरी या अच्छे कारोबार से जुड़ा तीन-चार करोड़ लोगों का एक वर्ग है, जो खूब खर्च कर रहा है। इनके उफाननुमा खर्च में विदेशी आयातित चीजों की भारी बिक्री है लेकिन बाकी भारतीय परिवारों का खर्च सिमटता जा रहा है। एक आंकड़े के मुताबिक चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में यानी जुलाई से अक्टूबर 2023 में 7.6 फीसदी की विकास दर का जो डंका बजा है उसमें भारतीय परिवारों की खपत का हिस्सा सिर्फ 3.2 फीसदी ही बढ़ा है। यानी लोग खर्च कम कर रहे हैं। इसके बावजूद विकास दर की तेजी इस वजह से है क्योंकि जीडीपी के आकलन का फॉर्मूला सिर्फ उत्पादन से जुड़ा है। हालांकि ऐसा नहीं है कि उत्पादन भी बहुत हो रहा है। कंपनियां खर्च घटा कर या महंगाई बढ़ा कर मुनाफा कमा रही हैं। हालात यह हैं कि भारत के जीडीपी में सबसे ज्यादा योगदान करने वाले सेवा क्षेत्र की विकास दर छह फीसदी से नीचे आ गई है और सबसे ज्यादा रोजगार देने वाले कृषि उत्पादन की दर सिर्फ 1.2 फीसदी पर है।  फिर भी 7.6 फीसदी की विकास दर का हल्ला है। स्थिति यह है कि गेहूं, चावल, चीनी सबके निर्यात पर भारत को पाबंदी लगानी पड़ी है ताकि चुनावी साल में अनाज की कमी या उसकी कीमत को लेकर भीड़ में हाहाकार न मचे।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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