जी-20 शिखर सम्मेलन की तैयारियों पर चार हजार करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हुए हैं। यह खर्च दिल्ली की सड़कों से लेकर अखबारों के पन्नों तक में दिखाई दे रहा है। दिल्ली में चारों तरफ रंग और रोशनी है। दिल्ली विकास प्राधिकरण की आईटीओ पर स्थित 23 मंजिला इमारत से लेकर कुतुबमीनार तक को लाल, पीले, हरे रंग की झालरों से सजाया गया है। प्रगति मैदान में बने कन्वेंशन सेंटर यानी भारत मंडपम की गुलाबी रोशनी से नहाई तस्वीरें कई दिन से अखबारों में छप रही है। सो, चारों तरफ रंग है, रोशनी हैं, ऊंची-ऊंची दिवारें हैं, पाबंदियां हैं, अखबारों में ट्रैफिक एडवाइजरी के पूरे पूरे पन्नों के विज्ञापन हैं, सुरक्षा उपायों के बारे में बड़ी बड़ी खबरें हैं और इन सबके बीच जो एक चीज नदारद है वह है इस बैठक का एजेंडा।
अखबारों में विज्ञापन देकर यह बताया गया है कि कहां कहां क्या बंद रहेगा। स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए गए हैं। सरकारी व निजी कार्यालय या तो बंद हैं या कर्मचारियों को घर से काम करने को कहा गया है। खबरों में यह बताया जा रहा है कि सुरक्षा के कैसे बंदोबस्त किए गए हैं। लड़ाकू विमान तैनात किए गए हैं, ड्रोन और पतंग दोनों उड़ाने पर पाबंदी है, एक लाख 30 हजार जवान तैनात किए गए हैं, केमिकल हमले से निपटने के लिए उपाय किए गए हैं, हमला होने की स्थिति में नेताओं के लिए सेफ हाउस बनाए गए हैं आदि आदि। सोचें, सुरक्षा इंतजामों की इस तरह की जानकारी कैसे मीडिया को दी जा सकती है? वैसे भी मीडिया को इसकी जानकारी देने की जरूरत भी क्या है? सेफ हाउस बना है या केमिकल हमले से निपटने के उपाय किए गए हैं यह बताने से नेताओं की सुरक्षा सुनिश्चित हुई है या उनके लिए खतरा पैदा कर दिया गया है?
बहरहाल, लगातार इतनी खबरें पढ़ने और देखने के बाद एक आम आदमी का सवाल था कि जी-20 की बैठक में क्या होगा? ये नेता क्या करेंगे? यह बहुत मासूम और ईमानदार सवाल है, जिसका जवाब ज्यादा अखबारों में या मीडिया में नहीं मिल रहा है। हिंदी अखबारों में तो एजेंडे को लेकर खबर पूरी तरह से नदारद है। वहां सिर्फ तैयारियों के बारे में जानकारी दी जा रही है। कैसे दिल्ली सज रही है और कैसे दिल्ली के लोग ट्रैफिक में फंसे हैं या घरों में बंद हैं, सुरक्षा के क्या इंतजाम हैं, कौन नेता किस फाइव स्टार होटल में ठहरेगा? उनके खाने के लिए क्या क्या बनाया जा रहा है।
सोचें, क्या किसी भी सभ्य (विकसित देश में तो कतई नहीं) देश में इतने बड़े कूटनीतिक आयोजन को लेकर क्या इतनी हलकी रिपोर्टिंग हो सकती है? लेकिन भारत में हो रही है और इसलिए हो रही है क्योंकि सत्ता प्रतिष्ठान की ओर से मीडिया को यही फीड किया जा रहा है। उनको यही छापने और दिखाने के लिए दिया जा रहा है। इस तरह की खबरों के दो फायदे हैं। पहला, देश के लोगों को लगता है कि मोदीजी कितना बड़ा काम कर रहे हैं। वे नहीं होते तो ऐसा काम मुमकिन नहीं था। और दूसरा, असली एजेंडे से ध्यान भटका रहता है। लोग यह सोचते ही नहीं हैं कि इस बैठक का मकसद क्या था और क्या हासिल हुआ।
जी-20 शिखर सम्मेलन का एजेंडा- वन अर्थ, वन फैमिली और वन फ्यूचर है। दो दिन के सम्मेलन के पहले दिन यानी नौ सितंबर को पहले सत्र में वन अर्थ पर बात होगी और दूसरे सत्र में वन फैमिली पर चर्चा होगी और अगले दिन यानी 10 सितंबर को वन फ्यूचर पर चर्चा के साथ सम्मेलन का समापन होगा। लेकिन यह तो मोटी थीम है। इसमें देश के लिए क्या है और आम लोगों को क्या हासिल होने वाला है? कुछ सुधी लोगों का यह भी सवाल था कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनफिंग क्यों नहीं आ रहे हैं? इन सवालों का कोई जवाब नहीं है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जिनफिंग के बारे में सवाल को यह कह कर खारिज कर दिया कि इससे भारत पर कोई फर्क नहीं पड़ता है और पहले भी ऐसा होता रहा है। हालांकि 2012 के बाद यह पहली बार है, जब शी जिनफिंग जी-20 की किसी बैठक में शामिल नहीं हुए हैं। वे इससे पहले की हर बैठक में गए हैं और इस बार बिना कोई कारण बताए बैठक में शामिल नहीं हुए। उन्होंने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन करके अपने नहीं आने की सूचना देने की भी जरूरत नहीं समझी।
सो, कुल मिला कर इस वैश्विक, कूटनीतिक आयोजन के एजेंडे और मुख्य बातों की चर्चा गौण है। इसके बजाय ऑप्टिक्स यानी दिखावे की चर्चा ज्यादा है। बहुत कम लोग जानते हैं कि जी-20 देश के अलग अलग कई मंत्रालयों की बैठक हुई, जिनके बाद साझा बयान या प्रस्ताव नहीं जारी हो सका। शिखर सम्मेलन के एजेंडे को लेकर भी गुरुग्राम से सटे आईटीसी के ग्रैंड भारत होटल में सभी सदस्य देशों के शेरपा चार दिन तक बैठक करते रहे लेकिन साझा प्रस्ताव पर सहमति नहीं बन पाई। ध्यान रहे इससे पहले जी-20 की कोई भी बैठक बिना साझा बयान के समाप्त नहीं हुई है। इसलिए भारत चाहता है कि आम सहमति से एक साझा बयान जारी हो। लेकिन चीन और रूस के अड़ेंगे की वजह से साझा बयान पर सहमति नहीं बन पा रही है। दोनों देश यूक्रेन से चल रहे युद्ध को लेकर लिखे गए पैराग्राफ से सहमत नहीं हैं।
इतना ही नहीं मसौदा दस्तावेज में जलवायु परिवर्तन को लेकर विकासशील देशों को वित्तीय मदद देने और कर्ज भुगतान को लेकर लिखी गई भाषा पर भी सहमति नहीं बन पाई है। इसके साथ ही भारत की ओर से प्रस्तावित मसौदा दस्तावेज की कई और बातों पर चीन ने असहमति जताई है। इस ड्राफ्ट पर सहमति बनाने के लिए अब भी वार्ता हो रही है लेकिन अगर सहमति नहीं बनती है तो यह दिक्कत वाली बात होगी। पहले ही मंत्री स्तरीय बैठक में साझा बयान नहीं जारी हो पाने की वजह से इस सम्मेलन की कूटनीतिक सफलता को लेकर सवाल उठ रहे हैं। अभी तक जिस एक बड़ी चीज पर सहमति बनी है वह अफ्रीकी संघ को जी-20 में शामिल करने पर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका प्रस्ताव दिया था लेकिन दो दिन पहले चीन के विदेश मंत्रालय ने इसका श्रेय लिया। विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने कहा कि चीन पहला देश है, जिसने अफ्रीकी संघ को जी-20 का पूर्णकालिक सदस्य बनाने का समर्थन किया है। रूस भी इसके समर्थन में है। गौरतलब है कि जी-20 में 19 देश और यूरोपीय संघ सदस्य हैं। यूरोपीय संघ के बाद अफ्रीकी संघ दूसरा समूह होगा, जिसे इसका सदस्य बनाया जाएगा।