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जिधर देखो उधर मोदी!

दिल्ली फिलहाल उत्तर कोरिया की राजधानी प्योंगयांग है। हर तरफ मोदी और मोदी की फोटो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी-20 से 140 करोड़ भारतीयों पर चाहे जो जादू करें लेकिन यह तय मानें कि बैठक के बाद वैश्विक तौर पर भारत की कूटनीति बेमतलब करार होगी। सब कुछ दिखावे का। सबको समझ आएगा कि बैठक के नाम पर महज फोटोशूट है। हिसाब से हर समझदार भारतीय को एयरपोर्ट से लेकर आयोजन स्थल, नई दिल्ली की सड़कों पर घूम कर देखना चाहिए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कितने फोटो लगे हैं। मानों भारत में उनके अलावा कोई है ही नहीं। पूरी बैठक मानों फोटो दिखाने और फोटोशूट के लिए। एक हिसाब से दिल्ली की सवा तीन करोड आबादी के चार दिनों के कामधंधों की अरबों रू की कीमत पर जी-20 का मोदी केफोटोशूट के लिए। पूरा लॉकडाउन मोदी के विश्व नेताओं के संग फोटों खींचवाने के लिए। उसी हिसाब से दिल्ली को सजाया गया है। शायद पहली बार है कि फोटोशूट से राष्ट्रपति भवन गायब रहेगा। कोई माने या न माने, मेरा मानना है कि नई दिल्ली के लैंडस्केप में सबसे भव्य बैकड्राप रायसीना हिल से नजर आने वाले राष्ट्रपति भवन है। शिखर सम्मेलनों के राजकीय भोज, सामूहिक फोटो राष्ट्रपति भवन में ही हुआ करते थे। पहली बार है जो अभी तक यह सूचना नहीं है कि राष्ट्रपति भवन में कोई भोज होगा या राष्ट्रपति से मिलने विश्व नेता जाएंगे।

सारा आयोजन प्रगति मैदान की नई इमारतों में है। नरेंद्र मोदी ने अपने द्वारा निर्मित प्रगति मैदान, उसके सभागार आदि में पूरा आयोजन समेटा है। तभी हैरानी की बात नहीं जो बैठक के बाद अपने गुणगान के लिए संसद की बैठक भी नई ससंद बिल्डिंग में होगी। तो मोदीजी के न्यू इंडिया (या न्यू भारत, नया भारत) के न्यू फोटोशूट का न्यू फोटो बैकग्राउंड उनके द्वारा ही निर्मित। राष्ट्रपति और राष्ट्रपति भवन की झांकी शायद ही कहीं देखने को मिले। फोटोशूट का एक कार्यक्रम गांधी समाधि पर है। मतलब सभी नेता राजघाट जाएंगे। गांधीजी की समाधि पर मोदीजी के ऐतिहासिक फोटो का आइडिया चौंकाने वाला है मगर स्वभाविक है। आखिर नरेंद्र मोदी जानते हैं कि दुनिया के हिसाब से भारत का नंबर एक ब्रांड गांधी हैं न कि सरदार पटेल या सुभाषचंद्र बोस। वे मन में भले गांधी को ले कर चाहे जो सोचें और उन्होंने सरदार पटेल और फिर इंडिया गेट पर सुभाष चंद्र बोस के स्मारक बनाने से गांधी के प्रति अपने भाव को झलकाया भी है लेकिन वैश्विक फोटो में वे राजघाट की लोकेशन में फोटो खींचा रहे हैं तो ऐसा मजबूरी से है।

जो हो, जी-20 की बैठक के फोटो विजुअल देखते हुए यह ध्यान रखें मोदीजी कितनी तरह के पोजेज, पोशाकों में फोटो खिंचवाते हैं? कैसे-कैसे वे जुमले बोलेंगे, जिनका न देश की रीति-नीति में अर्थ है और न पड़ोसी देशों या विश्व की भारत कूटनीति-व्यवहार में कोई मतलब है?

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By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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