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विदेशी पक्षी भी भारत नहीं आते!

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हां, सत्य है। विदेशी Foreign Birds, जो पहले बड़ी संख्या में आते थे, वे भारत नहीं आ रहे है। खासतौर से सर्दियों में उनका आना बहुत कम हो गया है। दिसंबर का महीना शुरू है  और एक रिपोर्ट के मुताबिक जिन पक्षियों को अक्टूबर में भारत आ जाना चाहिए था वे अभी तक नहीं पहुंचे। इतना ही नहीं सितंबर के बाद जिन पक्षियों को भारत से लौट जाना चाहिए था वे भारत से लौटे नहीं क्योंकि भारत में सर्दियां नहीं आईं या अच्छे तरीके से ठंड पड़नी शुरू नहीं हुई।

एक रिपोर्ट के मुताबिक अक्टूबर तक दिल्ली में 80 किस्म के प्रवासी पक्षी आते थे और इनके अलावा 40 ऐसे होते थे, जो गुजरते हुए दिल्ली में रूकते थे, लेकिन इस बार नवंबर बीतने तक इनके आधे प्रवासी पक्षी आए। उनकी भी संख्या पिछले कई सालों से लगातार कम होती जा रही है। ‘स्टेट ऑफ इंडियाज बर्ड्स’ नाम से किताब आई है, जिसमें देश के हजारों बर्ड वाचर्स के अनुभवों के आधार पर निष्कर्ष दर्ज हैं। इसके मुताबिक आठ सौ के करीब पक्षी प्रजातियों के भारत आने में 40 से 60 फीसदी की गिरावट आई है। इसका मतलब है कि देश के अलग अलग हिस्सों में जो प्रवासी पक्षी पहुंचते थे उनकी प्रजातियों की संख्या आधी रह गई है और जो प्रजातियां आती हैं उनका भी बहुत बड़ा झुंड नहीं होता है। यानी उनकी संख्या भी कम होती जा रही है।

भारत में आने वाले प्रवासी पक्षियों की घटती संख्या

भारत में अमूर फाल्कन आते थे। बाज की प्रजाति में छोटे आकार के शिकारी पक्षी हैं, जो दक्षिण पूर्वी साइबेरिया और उत्तरी चीन में प्रजनन करते हैं उनके बड़े झुंड भारत आते थे।  वांडरिग अल्बाट्रॉस यानी भटकते अल्बट्रॉस उड़ने वाले पक्षियों में सबसे बड़े होते हैं और समुद्र में रहते हैं। भारत में इनका दिखना भी धीरे धीरे कम होता जा रहा है। इसी तरह आर्कटिक टर्न्स छोटी समुद्री पक्षी है, जो देखने में बड़ी आकर्षक होती है लेकिन इसका भी भारत आना कम हो रहा है। ऐसे ही बार टेल्ड गॉडविट्स है, जो ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के साथ कई और देशों में पाए जाते हैं। इनमें से कई पक्षी 10 हजार किलोमीटर से ज्यादा की दूरी तय करके भारत आते थे। लेकिन अब इनका आना बहुत कम हो गया है।

ऐसे ही काला सारस यूरोप से आता था, खासतौर से चेक गणराज्य से। ग्रेटर फ्लेमिंगो तीन साल में एक बार प्रजनन करते हैं और आमतौर पर गुजरात के कच्छ के रण में आते हैं लेकिन बढ़ती गर्मी के कारण नहीं आ रहे हैं। ब्लैक टेल्ड गॉडविट रूस या आइसलैंड से भारत की यात्रा करते हैं, लेकिन भोजन की कमी और आवास की कमी के कारण ये संकट में हैं। ये दलदली जमीन, झील यानी कम पानी वाली जगह और कीचड़ वाली जगह पसंद करते हैं। इसी तरह ब्लूथ्रोट अलास्का और यूरोप से आते हैं, सर्दियों में आते हैं और अप्रैल में लौटते हैं, राजस्थान इनका पसंदीदा ठिकाना है। साइबेरियन क्रेन पश्चिमी साइबेरिया से चार हजार किलोमीटर की यात्रा करके आते हैं। इनको केवलादेव और भरतपुर में सर्दियों में देखा जाता था। लेकिन ये भी लुप्त प्राय हो गए हैं।

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विदेशी-प्रवासी पक्षियों के नहीं आने के कई कारण हैं। इनमें से मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन है। मौसम की वजह से पक्षी नहीं आ रहे हैं। भारत में गर्मी बढ़ रही है। नवंबर का महीना एक सौ साल का सबसे गर्म नवंबर था। दिसंबर में भी ऐसी ही स्थिति दिख रही है। ज्यादा समय गर्मी पड़ते रहने से बहुत किस्म के पक्षी नहीं आ रहे हैं। इसके अलावा वेटलैंड यानी दलदली इलाके कम होते जा रहे हैं।

दलदली जमीन और कम पानी वाली झीलों के कम होने से ऐसे पक्षियों का आना कम हुआ है, जो कीड़े या मेढ़क या मेढ़क के अंडे आदि पर निर्भर होते हैं। निर्माण की गतिविधियां बढ़ रही हैं, जिनसे घोंसला बनाने की जगह घट रही है। कृषि कार्य बढ़ने की वजह से ग्रासलैंड कम हो रहे हैं। ग्रासलैंड कम होने की वजह से हैरियर का आना कम हुआ है। ये पक्षी तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में आते थे।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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