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कांग्रेस आपा खोएगी या भाजपा?

लाख टके का सवाल है कि कांग्रेस का जीत के बाद गुब्बारा कितना फूलेगा और वह फिर कितनी जल्दी फटेगा तो मोदी-शाह आत्मविश्वासी बनेंगे या घबरा कर हताशा में विपक्ष पर टूट पड़ेंगे? कांग्रेस का मसला अहम है। क्योंकि कांग्रेस की समझदारी पर ही आगे लोकसभा चुनाव के नतीजे आने है। तीन दिसंबर को कांग्रेस की जीत मामूली नहीं होंगी। और इसका मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा और इनके सलाहकारों पर मनोवैज्ञानिक गहरा असर होगा। अति आत्मविश्वास में कांग्रेस नेता पगला सकते हैं। शायद मान बैठें कि राहुल के कारण जीत है। इसलिए लोकसभा चुनाव में हमें मोदी बनाम राहुल गांधी में मुकाबले की तैयारी करनी है। नरेंद्र मोदी के आगे राहुल गांधी को प्रोजेक्ट करना है। ऐसा होना ही तब नरेंद्र मोदी की 2024 में वापसी की गारंटी होगी।

कांग्रेस का अनहोना मामला तेलंगाना और मिजोरम से है। इन दोनों प्रदेशों में कांग्रेस का जीतना या साझा सरकार में आना बड़ी बात होगी। मिजोरम में कांग्रेस के नेता लालसावता मुख्यमंत्री बनें या न बनें, इसका खास अर्थ नहीं है। लेकिन कांग्रेस से एलायंस बना कर जोरम पीपल्स मूवमेंट यानी जेडपीएम के नेता की शपथ का भी बड़ा मैसेज होगा। इससे उत्तर-पूर्व के राज्यों में हवा बदलेगी। वहीं तेलंगाना में कांग्रेस के जीतने से पूरे दक्षिण भारत और महाराष्ट्र में हडकम्प बनेगा। महाराष्ट्र में मोदी-शाह की गणित गड़बड़ाएगी। आंध्र प्रदेश की राजनीति में भी उठापटक होगी। और विपक्ष में कांग्रेस निर्णायक स्थिति में लौटेगी।

लाख टके का सवाल है कि तेलंगाना में अचानक कैसे कांग्रेस की हवा बनी? कैसे कांग्रेस के प्रदेश अध्‍यक्ष रेवंत रेड्डी का सिक्का चला? साल भर पहले मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव ने तेलंगाना में कभी न हारने के आत्मविश्वास में राष्ट्रीय राजनीति में नरेंद्र मोदी को निपटाने के लिए राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष की ओर से यशवंत सिन्हा को स्पॉन्सर किया था। इतना ही नहीं अपनी पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति यानी टीआरएस का नाम भारत राष्ट्र समिति, बीआरएस किया। महाराष्ट्र में जा कर किसान रैलियां कीं।

और अब एक्जिट पोल कांग्रेस की हवा बता रहे हैं। अपना मानना है कि भले हवा न हो लेकिन बीआरएस, भाजपा और ओवैसी तीनों पार्टियों का एक सुर में कांग्रेस को हराने में जुटना अपने आप में चमत्कार है। नरेंद्र मोदी बुरी तरह मेहनत करते दिखे है। सवाल है यदि कांग्रेस बहुमत से कम रही तो क्या बीआरएस, भाजपा और ओवैसी तीनों मिलकर वापिस चंद्रशेखर राव की शपथ करवाएंगे? कांग्रेस को रोकने के लिए क्या प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में ओवैसी व भाजपा विधायक एक साथ केसीआर को समर्थन देते हुए होंगे? या कांग्रेस को साफ बहुमत मिलेगा और दक्षिण में विपक्ष, इंडिया एलायंस की तूती बनेगी?

हां, चुनाव नतीजों से कांग्रेस और विपक्षी इंडिया एलायंस का जलवा बढ़ेगा। लोकसभा चुनाव की लड़ाई में दक्षिण बनाम उत्तर, पश्चिम बनाम पूर्व (पूर्वोत्तर भारत, बंगाल, बिहार) का वह सियासी माहौल बनेगा, जिससे भाजपा को नए सिरे से सब कुछ तय करना होगा। सो, भूल जाएं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने कैबिनेट में कोई भारी फेरबदल करेंगे। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की कमान और उनकी लिस्ट के अनुसार ही आगे भाजपा के लोकसभा उम्मीदवार तय होंगे। योगी आदित्यनाथ का प्रोजेक्शन बढ़ेगा। वैसे तीन दिसंबर के बाद नतीजों के विश्लेषण से मालूम होगा कि केंद्र सरकार की विपक्ष के खिलाफ ईडी-सीबीआई की कार्रवाई का भाजपा के अनुकूल या उसके प्रतिकूल मतदाताओं में असर था। संभव है इसके बाद अगले चार महीने इंडिया एलायंस के नेताओं को जेल में डालने, उन्हें प्रताड़ित और बांधने-मजबूर करने की रणनीति पर मोदी-शाह पुनर्विचार करें। पर ज्यादा संभावना यही है कि नतीजों के बाद राजनैतिक टकराव बढ़े और लोकसभा की लड़ाई पानीपत का मैदान हो।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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