पहले के मुकाबले मौजूदा समय की कूटनीति का एक बुनियादी फर्क यह है कि पहले आमतौर पर सामरिक नीति के हिसाब से कूटनीति होती थी लेकिन अब आर्थिक नीतियों की आवश्यकताओं में भी कूटनीति होती है। इसलिए लंबे समय से भारत के राजनयिक और राजनीतिक नेतृत्व दुनिया के अनेक देशों के साथ मुक्त व्यापार संधि यानी एफटीए की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन अफसोस की बात है कि तमाम प्रयासों के बावजूद ऐसी सारी संधियां अधर में लटकी हैं। इंग्लैंड में जब भारतीय मूल के हिंदू ऋषि सुनक प्रधानमंत्री बने तो उम्मीद जताई जा रही थी कि जल्दी ही एफटीए होगा। लेकिन वे हट भी गए और एफटीए नहीं हुआ। वहां नई सरकार आ गई है। भारत और इंग्लैंड के बीच मुक्त व्यापार संधि की वार्ता जनवरी 2022 में शुरू हुई थी। ढाई साल के बाद गाड़ी जहां की तहां ठहरी हुई है। कहा जा रहा है कि पहले भारत में आम चुनाव आ गए और उसके बाद इंग्लैंड में आम चुनाव होने लगे इस वजह से वार्ता रूकी। लेकिन आम चुनाव तो तीन चार महीने की परिघटना हैं, जबकि वार्ता 30 महीने से चल रही है। अभी भी कोई टाइमलाइन नहीं दे सकता कि इंग्लैंड के साथ एफटीए कब तक हो पाएगा।
यूरोपीय संघ के साथ मुक्त व्यापार की वार्ता 2007 से चल रही है। हालांकि वार्ता बाद में थम गई थी। परंतु प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने इसे नए सिरे शुरू किया। करीब 10 साल की वार्ता के बाद यूरोपीय संघ के चुनिंदा चार छोटे देशों के समूह यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ यानी ईएफटीए का एक समझौता हुआ है। ईएफटीए में आइसलैंड, लिचटेंस्टिन, नार्वे और स्विट्जरलैंड शामिल हैं। इनके साथ इस साल मई में एक समझौता हुआ है। भारत सरकार उम्मीद कर रही है कि इस समझौते के बाद वह स्विट्जरलैंड या नार्वे आदि के सहारे यूरोप के बाजार में अपनी पहुंच बढ़ा पाए। स्विट्जरलैंड से काफी सेवाओं का निर्यात यूरोपीय संघ को किया जाता है। भारत को इसमें अवसर दिख रहा है। लेकिन यूरोपीय संघ के साथ कारोबार को लेकर विदेश मंत्री एस जयशंकर और उनकी टीम ने कोई ऐसी पहल नहीं की है, जिसका फायदा भारत को हो।
यही हाल ऑस्ट्रेलिया के साथ व्यापक मुक्त व्यापार समझौते यानी सीएफटीए का है। बरसों की वार्ता के बाद दोनों देश अभी तक एक अंतरिम समझौता कर पाए हैं। जयशंकर की टीम यहां भी विफल है। दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौता यानी ईसीटीए दिसंबर 2022 से शुरू हुआ है लेकिन अभी तक व्यापक मुक्त व्यापार समझौते की बातचीत चल रही है। इस सिलसिले में दसवें दौर की वार्ता दो दिन पहले ही सिडनी में संपन्न हुई। इसमें आगे और कितने दौर की वार्ता के बाद नतीजा निकलेगा यह नहीं कहा जा सकता है। सोचे, पूरब से पश्चिम तक यानी ऑस्ट्रेलिया से यूरोप तक भारत की कूटनीति मुक्त व्यापार समझौते कराने में कितनी सफल है?