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चुनावी बॉन्ड/भारत का चरित्र

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भारत कैसा और कितना अनैतिक है, इसका नया सबूत है इलेक्टोरल बॉन्ड्स! सोचें, उस हिंदू राष्ट्रवाद, राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के उन हिंदू हरकारों पर जिन्होंने कोई सौ साल हिंदुओं को चरित्रवान, नैतिक बनाने में हिंदू स्वंयसेवकों की जिंदगियां कुर्बान करवाईं। और एक खांटी प्रचारक का दिल्ली में शासन बना तो नतीजा क्या?  Electoral bond data supreme court

जुआरियों, सटोरियों, दागियों व अपराधियों से चंदा ले कर राजनीति करने, चुनाव लड़ने का सत्य। पता नहीं आरएसएस के प्रतिनिधियों को अभी नागपुर की बैठक में यह भान हुआ या नहीं कि जो संगठन, जो परिवार गुरू दक्षिणा से चलता था, उसकी पार्टी अब देश के नंबर एक लॉटरीबाजों, नंबर एक गैम्बलरों, उन दवा कंपनियों, शराब कंपनियों, उन दागियों, अपराधियों से रंगदारी के अंदाज में चंदा लेती है, जिनका पैसा छूना भी रामराज्य में हराम होना चाहिए। Electoral bond data supreme court

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हां, इलेक्टोरल बॉन्ड्स और पार्टियों की कोडिंग को अभी सरकार ने छुपा रखा है। इसलिए संघ-भाजपा के बचाव में कोई कह सकता है कि ‘लॉटरी किंग’ सैंटियागो मार्टिन, सट्टा खिलाने वाली कंपनी फ्यूचर गेमिंग, और कोरोना काल में रेमडिसीवीर इंजेक्शन की बेइंतहां रेट और कालाबाजारी वाली हेटेलो लैब्स सहित दवाइयों के मनमाने दाम करवाने वाली 14 मेडिकल कंपनियों के 534 करोड रुपए के बांड्स मोदी-शाह की भाजपा को नहीं, बल्कि कांग्रेस को गए हैं तो यह फालतू दलील है।

मोदी-शाह की नजर के नीचे लॉटरी, जुआरी, कालाबाजारी करने वाले व्यापारी व अपराधी कतई कांग्रेस या किसी भी विरोधी पार्टी को पैसा देने की जुर्रत नहीं कर सकता है। उसने सौ रूपए दिए होंगे तो बाकी पार्टियों को चव्वनी, अठन्नी ही दी होगी।

तभी सोचें, मोदी राज के 10 वर्षों में काले धंधे के काले कारोबारियों को इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिए काला पैसा देने का क्या शानदार तरीका और अवसर मिला। एक नंबर में भाजपा में पैसा जमा कराओ और लॉटरी, जुए, शराब, ब्लैकमार्केंटिग के लिए आजादी पाओ! Electoral bond data supreme court

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क्या मैं गलत हूं? कहते हैं भारत के नौजवानों को ऑनलाइन गेमिंग का नशा कराने, उससे बेइंतहां कमाई वाली कंपनी फ्यूचर गेमिंग ने 12 अप्रैल 2019 से 11 जनवरी 2024 के बीच सर्वाधिक 13.6 अरब रुपए से अधिक के  बॉन्ड खरीदे। इस कंपनी के खिलाफ ईडी ने 2019 की शुरुआत में मनी लॉन्ड्रिंग की जांच शुरू की थी। उस साल जुलाई तक उसने कंपनी से संबंधित 250 करोड़ रुपए से अधिक की संपत्ति जब्त की।

दो अप्रैल, 2022 को ईडी ने मामले में 409.92 करोड़ रुपए की चल संपत्ति कुर्क की थी। और इसके पांच दिन बाद सात अप्रैल को फ्यूचर गेमिंग ने 100 करोड़ रुपए के चुनावी बॉन्ड खरीदे। फिर तो खरीदने का सिलसिला शुरू। और भाजपा के खजाने में जहां पैसा जमा होता हुआ वही देश में गेमिंग का धंधा भी फरार्टा मारते हुए। सोचें, इस कंपनी ने 13.6 अरब रुपए के बॉन्ड खरीद कर दिए तो कमाई कैसी होती हुई होगी?

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ऐसे ही लॉटरी का मामला है। इसकी मार्टिन कंपनी पुरानी पापी है। कांग्रेस से पोषित रही है। दक्षिण की पार्टियों को पैसा देकर धंधा करती रही है। और मोदी सरकार से पहले ईडी की जांच थी। आपराधिक साजिश के आरोप थे। मगर मोदी राज में इसे बंद कराने के बजाय धड़ल्ले से कंपनी ने धंधा बढ़ाया।

इस तरह के उदाहरणों वाली कंपनियां इलेक्टोरल बॉन्ड की लिस्ट में भरी हुई हैं। और ये प्रमाण भी है कि पहले कई कंपनियों पर ईडी छापे मार रही थी। फिर इन्होंने इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद कर बॉन्ड्स भाजपा को दिए तो जांच रूक गई या खत्म हो गई। कंपनियों को न केवल मनमानी की छूट मिली, बल्कि उन्हें ठेके मिले। अरबों रुपए का काम मिला। Electoral bond data supreme court

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इस सबका भारत अर्थ? राज कांग्रेस का हो या भाजपा का, मुगल बादशाह का हो या अंग्रेज बादशाह का। चांदनी चौक का कोतवाल तब लालाओं-सेठों से पैसा वसूलता था। दरबार में नजराना, हर्जाना, शुक्राना पहुंचाता था और सन् 2024 के कथित अमृतकाल में भी मोदी सरकार अपने कोतवाल (ईडी, सीबीआई, आईटी) से धमकवा कर पैसा वसूलती है।

रंगदारी करती है। मगर हां, मुगलों और अंग्रेजों का ऐसा कोई किस्सा नहीं है कि घर-घर सट्टा, गेमिंग का उन्होंने नशा बनवा कर नौजवानों को, हिंदुओं को लुटने दिया हो। उनमें फिर भी यह चरित्र था, नैतिकता थी कि अमीर भले जुआ खेले लेकिन रिआया, आम प्रजा इन बुराइयों से बची रहे!

क्या मैं गलत हूं?

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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