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नकारा डोवाल, फेल जयशंकर!

कटु शब्द है लेकिन बांग्लादेश की असफलता, उसके फियोस्को में भारत के नुकसान के मायनों में एकदम सही बात। यदि ये दो कर्ता-धर्ता जिम्मेवार नहीं है तो कौन है? ये दोनों वैसे ही साबित होते हुए है जैसे हसीना सरकार के ताश के पत्तो जैसे ढहे और अब भगौड़े (हालांकि एयरपोर्ट, सीमा पर पकडे गए) चेहरों याकि विदेश मंत्री हसन मेहमूद, जुनैद अहमद पालक, मोहिबुल हसन चौधरी, ताजुल इस्लाम आदि मंत्रियों-अफसरों को लेकर ढ़ाका में सोचा जा रहा होगा कि इन चेहरों से कैसे उस नेता की लुटिया डुबी जिसका कभी अच्छे दिन, अच्छे लोकतंत्र की साख से करिश्मा था।

बांग्लादेश में भारत की लुटिया के डुबने में सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल का प्राथमिक रोल है तो विदेश मंत्री एस जयशंकर का सेकेंडरी। प्रधानमंत्री मोदी का सामरिक-विदेशी मामलों का क्या ज्ञान और क्या दूरदृष्टि है यह अनुभवों और सोशल मीडिया के मजाकों से जगजाहिर है। लेकिन अजित डोवाल और जयशंकर तो ताउम्र जिंदगी के अनुभवों में, रॉ एजेंसी के रामनाथ काव से लेकर जेएन दीक्षित, एमके नारायण जैसे देशभक्तों, सुधी-समझदार कूटनीतिज्ञों को जाने हुए थे। इन्हे यह जाना हुआ होना था कि बांग्लादेश में भारत का मामला कैसा नाजुक है। और कितनी बारीकि से वहां की फीडबैक पर नजर रहनी चाहिए। एलर्ट रहना चाहिए। दूरदृष्टि और दीर्घकालीन राष्ट्रीय हितों की बुनियाद में रिश्ते ढले रखने चाहिए।

समय का त्रासद सत्य है जो 1975 में 15 अगस्त के दिन ही हसीना के पिता शेख मुजीबुर्रहमान के निवास धानमंडी में उनकी हत्या हुई थी। भारत ने चार वर्ष की छोटी अवधि में ही अपना सर्वाधिक करीबि मित्र तब खोया था। उसके कोई पचास साल बाद इस पंद्रह अगस्त से ठिक कुछ दिन पहले भारत ने वापिस अपने निकटतम पड़ौसी को गंवाया। ढ़ाका से पांच अगस्त को जहां हसीना भागी वही भारत ने भी अपने राजनयिकों के परिवारों को तुरंत वहां से निकाला।

मुजीब के समय इंदिरा गांधी के तब खुफिया प्रमुख, रॉ आदि सबके कर्ताधर्ता रामनाथ काव फेल हुए थे। कहते है उन्हे यह गिला रहा कि जमीनी सच्चाई और विपक्ष, विरोधी पार्टियों की खबर रखने में चूक हुई। अजित डोवाल, जयशंकर चाहे जो कहें लेकिन असल बात है कि बांग्लादेश में 2003 से ही जमीन धधकी हुई थी।  लोग हसीना के खिलाफ सुलगे हुए थे। नरेंद्र मोदी के खिलाफ नफरत और भारत के कॉरपोरेट, भारत के प्रभाव के खिलाफ मौन नैरेटिव फैलता हुआ था। शेख हसीना पर आरोप थे कि वे देश बेच दे रही है। इतना ही नहीं भारतीय चीजों, सामान के बहिष्कार का आव्हान था। जमायत इस्लामी से लेकर कट्टरपंथियों ने शेख हसीना को घेरने के लिए भारत विरोधी माहौल बना लिया था। धारणा थी कि हसीना की चुनावी जीत धांधलियों से है और उसके पीछे भारत है।

उसे और उसके बाद छात्र आंदोलन की निरंतरता की हकीकत में क्या मोदी, डोवाल, जयशंकर को नहीं समझना था कि सड़कों पर नौजवानों की संख्या लगातार बढ़ते हुए है तो ऐसा क्या हो जिससे शेख हसीना के एक्सन का, उनके बचाव का उन्हे रोडमैप दिया जाए। लेकिन 1975 में इंदिरा गांधी और उनके ताबेदार जैसे इमरेंजसी में अंहकार, मुगालतों में राज करते हुए थे वैसे ही मोदी, डोवाल और जयशंकर तो यों भी अपने को विश्वगुरू मानते है। ये यूक्रेन में जब चाहे युद्ध रूकवा देते है और दुनिया को यह ज्ञान देते है कि हमें पता है चीन को कैसे हैंडल करना है तो बांग्लादेश तो इनके लिए चुटकियों का मसला! और चुटकियों में शेख हसीना का राज ढहा।

तभी डोकलाम, पैनांग, मालदीव-नेपाल से लेकर बांग्लादेश में भारत की सामरिक-विदेश नीति का दो टूक निचोड है कि हवाबाजी और प्रचार को छोड़ बाकि सब जीरो है। सोचे, इतने बड़े हादसे के बाद भी डोवाल-जयशंकर ने भारत में क्या प्रोपेगेंड़ा बनाया? देखों, भारत की शूरवीरता जो मिराज विमानों की सुरक्षा में शेख हसीना का विमान सुरक्षित हिंडन बेस पर उतरा। मानों वह खुफिया तंत्र, सेना का कोई महाअभियान!

अजित डोवाल की उम्र कोई 80 वर्ष है और जयशंकर की कोई सत्तर वर्ष। इतनी उम्र के बावजूद ये क्योंकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जरूरत है? इसलिए क्योंकि दस साल के राज से ये जहां प्रधानमंत्री मोदी के हमराज है वही मोदी के विश्व नेताओं के साथ फोटोशूट, पुतिन जैसे तानाशाहों के हाथों गले में हार पहनने और ढ़ाका, बीजींग, मास्कों में कूटनीति का दिखावा है। इसलिए सामारिक चौकसी, सुरक्षा, विदेश नीति जैसे मामलों में ढाक के तीन वाले नतीजे है लेकिन नरेंद्र मोदी के लिए अनिवार्य है। सोच सकते है जैसे शेख हसीना भरोसे और मुगालतों में राज करती रही वैसे ही मोदी भी राज करने की समानता लिए हुए है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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