बारीक प्रबंधन के अलावा चुनाव नैरेटिव पर भी लड़ा जाता है। लेकिन सिर्फ नैरेटिव के दम पर हर बार चुनाव नहीं लड़ा जा सकता है। आम आदमी पार्टी ने पहला दो चुनाव नैरेटिव पर लड़ा और जीता था, जबकि तीसरा चुनाव नैरेटिव के साथ साथ पांच साल के कामकाज की उपलब्धियों पर लड़ा गया। इस बार भी आम आदमी पार्टी और उसके लिए चुनाव प्रबंधन का काम देख रही प्रशांत किशोर की कंपनी आईपैक ने नैरेटिव बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन इस बार भाजपा भी सावधान थी। उसको पता था कि केजरीवाल के नैरेटिव को कैसे पंक्चर किया जाएगा। दोनों के बीच नैरेटिव की लड़ाई भी कई स्तर हुई। मुश्किल यह थी कि केजरीवाल इस बार नया नैरेटिव नहीं बना पाए।
जैसे नई दिल्ली में जब भाजपा ने परवेश वर्मा और कांग्रेस ने संदीप दीक्षित को उतारा तो उन्होंने यह नैरेटिव बनाया कि एक आम आदमी के खिलाफ दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के बेटे चुनाव लड़ रहे हैं। लेकिन यह बहुत दयनीय साबित हुआ क्योंकि केजरीवाल खुद पूर्व मुख्यमंत्री हैं। वे दिल्ली में ही साढ़े नौ साल मुख्यमंत्री रहे हैं। सो, यह नैरेटिव कैसे काम कर सकता था? दूसरे, जान बूझकर या सामान्य प्रक्रिया के तहत चुनाव आयोग ने केजरीवाल को मिली पंजाब पुलिस की सुरक्षा वापस करने का निर्देश दिया। यह निर्देश आने के बाद आप के नेता इस ट्रैप में फंस गए और कहने लगे कि केजरीवाल को परेशान करने के लिए उनकी सुरक्षा हटाई जा रही है। जैसे ही आप ने यह कहा, भाजपा हमलावर हुई और उसने याद दिलाया कि केजरीवाल ने चुनाव से पहले कहा था कि वे आम आदमी हैं और उनको या उनके किसी नेता को सुरक्षा की जरुरत नहीं है लेकिन उन्होंने दो दो राज्यों की सुरक्षा ले रखी है और एक राज्य की सुरक्षा हटाने पर चिल्ला रहे हैं।
केजरीवाल के आम आदमी पार्टी के नैरेटिव को ध्वस्त करने में ‘शीशमहल’ का विवाद बहुत कारगर हुआ। केजरीवाल जब पहली बार मुख्यमंत्री बने तो नीली वैगन आर गाड़ी से चलते थे और बार बार कहते थे कि वे गाड़ी नहीं लेंगे, बंगला नहीं लेंगे और सुरक्षा नहीं लेंगे। लेकिन बाद में उन्होंने बड़ी गाड़ियां लीं, सुरक्षा ली और अपने रहने के लिए जो बंगला चुना छह, फ्लैग स्टाफ रोड का उसके रेनोवेशन पर करोड़ों रुपए खर्च किए। पहले कहा गया कि 50 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं लेकिन बाद में सीएजी की लीक हुई रिपोर्ट के आधार पर बताया गया है कि कम से कम 33 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। अगर केजरीवाल ने आम आदमी बनने के नाम पर बड़े दावे नहीं किए होते तो ये नैरेटिव नहीं चलता। लेकिन उनका दावा ही उलटा पड़ गया। जवाबी दांव में उनकी पार्टी के सांसद संजय सिंह पत्रकारों को नए बन रहे पीएम एन्क्लेव दिखाने पहुंचे। उन्होंने बहुत बढ़ चढ़ कर दावा किया कि 15 एकड़ में कितने सौ करोड़ में पीएम का बंगला बन रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि पीएम मोदी के पास छह हजार जोड़ी से ज्यादा कपड़े और जूते हैं।
‘शीशमहल’ के साथ साथ शराब घोटाले में केजरीवाल के जेल जाने का नैरेटिव भी बना। इस तरह उनके ईमानदार और आम आदमी होने की जो धारणा बनाई गई थी वह धारणा खंडित हुई। हालांकि पता नहीं उसका कितना असर झुग्गी, रिसेटलमेंट और अनधिकृत कॉलोनियों में हुआ लेकिन कम से कम धारणा के स्तर पर यह आम आदमी पार्टी और निजी तौर पर अरविंद केजरीवाल के लिए बड़ा झटका था। केजरीवाल ने अपनी छवि मुफ्त की चीजें बांटने वाले नेता की बनाई थी। तभी वे चुनाव में रेवड़ी पर चर्चा कर रहे थे। लेकिन उसमें भी अब कोई अनोखापन नहीं रह गया है। इस बात को भाजपा ने घर घर पहुंचाया।
एक बड़ा नैरेटिव आम आदमी पार्टी ने पिछले 10 साल में यह बनाया था कि दिल्ली के उप राज्यपाल काम नहीं करने दे रहे हैं। केंद्र की मोदी सरकार के कहने पर उप राज्यपाल काम में रोड़ अटका रहे हैं यह नैरेटिव दिल्ली में घर घर आम आदमी पार्टी ने ही पहुंचाया था। यह बैकफायर कर गया। दिल्ली में आप समर्थकों के एक बड़े वर्ग में यह सोच बनी कि जब केंद्र सरकार काम नहीं करने दे रही है तो फिर केजरीवाल को जिताने से क्या फायदा होगा? फिर सरकार बन गई तो पांच साल लड़ाई चलती रहेगी क्योंकि केंद्र में तो मोदी की सरकार बन गई है। दिल्ली के लोगों ने ही मोदी की पार्टी को सभी सात सीटें जिताईं। जाहिर है मतदाताओं का एक समूह ऐसा है, जो लोकसभा में भाजपा को और विधानसभा में आम आदमी पार्टी को वोट देता है। वह वर्ग इस नैरेटिव से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ। चुनाव के बीच केजरीवाल को यह बात समझ में आई कि लड़ते रहने और काम नहीं करने देने के नैरेटिव से नुकसान हो रहा है तो उन्होंने कहना शुरू किया कि इस बार अगर दिल्ली के लोगों ने जीता दिया तो डर कर उप राज्यपाल काम करने देंगे, अड़ंगा नहीं लगाएंगे। पता नहीं यह डैमेज कंट्रोल कितना कारगर हुआ?