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छतीसगढ में कांग्रेस का सब परफेक्ट

राज्यों में कांग्रेस की सर्वाधिक मजबूत और तालमेल वाली तैयारी छतीसगढ़ में है। कांग्रेस आलाकमान ने समझदारी से पहले ही प्रदेश नेताओं का झगड़ा सुलटाया। भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव में विवाद था तो पार्टी आलाकमान ने दखल कर टीएस सिंहदेव को उप मुख्यमंत्री बनवाया। उनकी नाराजगी दूर कराई नतीजतन उम्मीदवार तय होने के बाद यह स्थिति है जोछत्तीसगढ़ में कांग्रेस के टिकट बंटवारे की सबसे ज्यादा तारीफ सिंहदेव कर रहे हैं।

छत्तीसगढ़ में उम्मीदवार चयन का काम आसानी से हुआ। सारे नेता एक ही जहाज में अपनी सूची लेकर दिल्ली आए और मंजूरी करा कर लौटे। तेलंगाना में भी कांग्रेस ने लगभग आधी टिकटें एक साथ घोषित कर दीं। रेवंत रेड्डी और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एन उत्तम रेड्डी और दूसरे नेताओं ने साझा प्रयास से उम्मीदवारों की सूची तैयार की। जिस दिन राहुल गांधी मिजोरम प्रचार के लिए पहुंचे उसी दिन कांग्रेस ने एक साथ 40 में से 39 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी। टिकट बंटवारे के बाद कुछ जगहों पर विरोध हुआ लेकिन वह पहले के मुकाबले बहुत कम था क्योंकि सबने पूरी पारदर्शिता रखी।

फिर यों भी छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के लिए लड़ाई अपेक्षाकृत आसान है। नया राज्य बनने के बाद वहां कांग्रेस ने पहली सरकार बनाई थी लेकिन 2003 में हारने का जो सिलसिला शुरू हुआ वह 2018 तक चला। हालांकि इन 15 सालों में कांग्रेस ने कभी भी अपना पारंपरिक वोट नहीं गंवाया। सीटें उसको भले कम आईं लेकिन हर बार भाजपा और उसके वोट में दो से तीन फीसदी का ही अंतर रहा। पिछले चुनाव में तस्वीर बदल गई। कांग्रेस ने 10 फीसदी वोट के अंतर से भाजपा को हराया। 15 साल के राज की एंटी इन्कबैंसी भाजपा पर भारी पड़ी थी। उसके बाद से भाजपा की प्रदेश की राजनीति कमजोर ही होती गई है क्योंकि 15 साल तक मुख्यमंत्री रहे रमन सिंह को बिल्कुल हाशिए में डाल दिया गया और उनकी जगह कोई नया नेता भी उभरा।

नेतृत्व की कमी के कारण ही चुनाव से ठिक पहले भाजपा ने फिर रमन सिंह को तरजीह दी। उन्हे उनकी पारंपरिक राजनांदगांव सीट से उम्मीदवार बनाया गया। लेकिन पांच साल के राज में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जिस तरह से काम किया है या जैसी राजनीति की है उससे उनके खिलाफ जनता में नाराजगी नहीं दिख रही है। लम्बे समय तक जो स्थिति मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की दिख रही थी वह छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की दिख रही है। उन्होंने गाय, गोबर, गोमूत्र आदि की राजनीति भी की है और राम वन गमन पथ भी बनवा रहे हैं।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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