पहला प्रमाण योगी आदित्यनाथ की डावांडोल कुर्सी का स्थिर होना है। केशव प्रसाद मौर्य ठंड़े पड़ गए हैं। नरेंद्र मोदी ने यूपी के सभी उपचुनावों की जीत का दारोमदार मुख्यमंत्री पर छोड़ा है। उपचुनावों में यदि भाजपा जीती तो योगी छह-आठ महीने और मुख्यमंत्री बने रहेंगे नहीं तो चार राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद उनकी छुट्टी। उधर भाजपा के नए अध्यक्ष का जहां सवाल है उसकी नियुक्ति टली रहेगी। यों शनिवार को पदाधिकारियों की बैठक है। विधानसभा चुनावों की तैयारी के नाम पर मोदी-शाह पार्टी में एक औपचारिक विचार-विमर्श होता हुआ दिखलाएंगे। संभव है इस मौके का फायदा उठा कर अमित शाह अपनी पंसद के किसी पदाधिकारी को कार्यकारी अध्यक्ष बना दें। विधानसभा चुनावों के लिए अंतरिम फैसला करवा के उसे चुनाव बाद फिर पूर्णकालिक अध्यक्ष बना देंगे।
इसका अर्थ है मोदी-शाह और संघ में अध्यक्ष को ले कर जस की तस संवादहीनता है। मोदी-शाह ने अपनी तह तीन नाम तय नहीं किए और न संघ ने विचार कर अपनी राय दी। कहने को बांग्लादेश के संकट को ले कर संघ के नंबर दो दत्तात्रेय और भाजपा प्रभारी अरूण कुमार की रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात और बैठक हुई। पर मुद्दा बांग्लादेश में हिंदुओं की दशा का था। बाद में अमित शाह के घर जो बैठक हुई उसमें दत्तात्रेय नहीं थे और अरूण कुमार व पदाधिकारियों में विधानसभा चुनावों को ले कर चर्चा हुई बताते हैं। अध्यक्ष के नाते शिवराज सिंह चौहान और देवेंद्र फड़नवीस दो ही संघ के लिए अनूकूल नाम हैं लेकिन अपने को यह संभव नहीं लगता कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह उस चेहरे को अध्यक्ष बनने देंगे, जिससे भाजपा में संघ की राय का रूतबा लौटे।
बहरहाल, सवाल है जम्मू कश्मीर, हरियाणा और इनके चुनाव के बाद महाराष्ट्र और झारखंड में मोदी-शाह कितनी ताकत झोंकेंगे? इन राज्यों में भाजपा की जीत के क्या अवसर हैं? अपने को फिलहाल अवसर नहीं दिखते। बावजूद इसके चुनाव अधिसूचना से पहले तक भाजपा सभी तरफ, खासकर हरियाणा और झारखंड में कांग्रेस के भीतर तथा झारखंड में कांग्रेस और हेमंत सोरेन के एलायंस को कमजोर बनाने, तोड़ फोड़ की रणनीति पर काम करेगी। भाजपा की उम्मीदों का प्राथमिक टारगेट झारखंड है। झारखंड और हरियाणा में से उसे एक न एक राज्य को जीतना है ताकि यह मैसेज नहीं बने कि चारों राज्यों में सूपड़ा साफ हुआ।
लेकिन इन चुनावों में मुद्दों और घोषणाओं के नाते भाजपा कुछ नया बोले, नई रेवड़ियां और नया नैरेटिव बनाए, यह संभव नहीं लगता। इसलिए क्योंकि इन चारों में लड़ाई का केंद्र प्रादेशिक चेहरे हैं। चुनाव उद्धव ठाकरे, हेमंत सोरेन, भूपिंदर सिंह हुड्डा और उमर अब्दुल्ला की धुरी पर ही होगा। भाजपा के लिए जम्मू कश्मीर में चुनाव इसलिए कुछ संभला है क्योंकि हिंदू बहुल जम्मू में आंतकी घटनाओं के नैरेटिव से वहां मतदाताओं का रूझान कांग्रेस और उनकी सहयोगी पार्टियों के लिए बने, यह आसान नहीं है। यदि जम्मू में सभी भाजपा विरोधियों का साझा नहीं हुआ और घाटी में उमर अब्दुल्ला, इंजीनियर राशिद व महबूबा मुफ्ती ने एलायंस बन कर चुनाव नहीं लड़ा तो भाजपा विधानसभा क्षेत्रों के नए परिसीमन से कुछ अनहोनी कर सकती है। मगर यह दूर की कौड़ी है। भाजपा की मुख्य मुसीबत महाराष्ट्र है और महाराष्ट्र में ही यह फैसला होगा कि विपक्ष कितना एकजुट है और सन् 2025 उथल पुथल का है या नहीं?