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भाजपा के चुनावी मुद्दों की कमी

भारतीय जनता पार्टी अपने चुनावी मुद्दे आगे करने और नैरेटिव बनाने के लिए जानी जाती थी। नरेंद्र मोदी और अमित शाह दोनों अपने मुद्दों पर विपक्ष को खींच कर लाते थे। भाजपा के तय किए मुद्दे पर चुनाव लड़े जाते थे। लेकिन ऐसा लग रहा है कि मुद्दों का सूखा हो गया है। भाजपा के पास कोई मुद्दा नहीं दिख रहा है, जिस पर उसको चुनाव लड़ना है। अच्छे दिन से लेकर महंगाई और भ्रष्टाचार पर मार का मुद्दा गायब हो गया है। अब इन मुद्दों पर भाजपा खुद ही घिर जाती है। विश्व गुरू का एजेंडा भी चल नहीं रहा है हालांकि प्रधानमंत्री मोदी बासी कढ़ी में उबाल लाने में जुटे हैं। तभी लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद रूस, पोलैंड और यूक्रेन की दौड़ लगा चुके हैं और अब अमेरिका जाने वाले हैं। लेकिन कुल मिला कर भाजपा के पास मुद्दों का अकाल है।

इसके उलट यह स्थिति है कि उसको विपक्षी पार्टियों के गठबंधन ‘इंडिया’ के तय किए एजेंडे पर रोज प्रतिक्रिया देनी पड़ती है। विपक्षी पार्टियों ने संविधान और आरक्षण का मुद्दा अभी छोड़ा नहीं है। कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियां लोकसभा चुनाव के नतीजों से उत्साहित होकर संविधान बचाने और आरक्षण की रक्षा करने की राजनीति अब भी कर रहे हैं। इस बीच पता नहीं सरकार में किसने लैटरल एंट्री के जरिए एक साथ 45 पदों पर नियुक्ति का विज्ञापन निकालने की सलाह दी। इसे सरकार ने वापस ले लिया लेकिन विपक्ष यह मैसेज बनवाने में कामयाब हुआ कि केंद्र की मोदी सरकार आरक्षण खत्म करना चाहती है। इसी तरह अनसूचित जाति यानी एससी और अनुसूचित जनजाति यानी एसटी के आरक्षण में वर्गीकरण के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी भाजपा की चुप्पी का बड़ा मैसेज दोनों समूहों में जा रहा है। केंद्र सरकार ने क्रीमी लेयर के मामले में स्थिति स्पष्ट कर दी लेकिन वर्गीकरण के मामले पर चुप रही। इसे लेकर 21 अगस्त को भारत बंद हुआ, जिसे कई राज्यों में बड़ी सफलता मिली। अब भाजपा इस मसले पर भी सफाई देती फिर रही है।

महाराष्ट्र और हरियाणा में उसकी चुनी हुई सरकार है और जम्मू कश्मीर पिछले छह साल से बिना विधानसभा के है और सीधे केंद्र सरकार के हाथ में कमान है। उससे पहले 2014 से 2018 तक भाजपा पीडीपी के साथ सरकार में थी। महाराष्ट्र में ढाई साल को छोड़ दें तो पिछले साढ़े सात तक भाजपा की सरकार रही है और हरियाणा में 10 साल से भाजपा की सरकार है। सो, तीनों राज्यों में भाजपा के खिलाफ एंटी इन्कम्बैंसी है, जिसका जवाब उसे देना पड़ रहा है। विपक्ष ने विकास नहीं होने और भ्रष्टाचार का मुद्दा बनाया है। इन तीनों राज्यों में विपक्ष को घेरने के लिए भाजपा के पास कोई मुद्दा नहीं है। जम्मू कश्मीर में भाजपा जरूर यह पूछ रही है कि कांग्रेस बताए कि अनुच्छेद 370 पर उसका क्या रुख है।

असल में कांग्रेस ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ तालमेल कर लिया है, जिसके बाद कश्मीर घाटी में भाजपा को इन दोनों पार्टियों के बहुत अच्छा प्रदर्शन करने का अंदाजा है। सो, वह कांग्रेस को अनुच्छेद 370 पर घेर रही है। लेकिन उसको पता है कि इस मुद्दे पर ज्यादा शोर हुआ तो घाटी की 47 सीटों पर भाजपा के हाथ कुछ भी नहीं लगेगा। इस मुद्दे के आधार पर वह जम्मू में अच्छा प्रदर्शन करेगी तब भी 43 में से कितनी सीटें जीत पाएगी? इसी तरह हरियाणा में 10 साल के राज की एंटी इन्कंबैंसी कम करने के लिए मुख्यमंत्री पद से मनोहर लाल खट्टर को हटाया गया लेकिन उनको केंद्र में दो भारी भरकम मंत्रालय देकर मंत्री बनाया गया है। वे अब भी हरियाणा में सक्रिय हैं, जिससे एंटी इन्कम्बैंसी खत्म करने का दांव कामयाब नहीं हो रहा है। विपक्ष 10 साल की विफलता और किसानों के मुद्दों को पकड़े हुए है। भाजपा की नई बनी सांसद कंगना रनौत ने किसान आंदोलन पर बेहद आपत्तिजनक बयान देकर और किसानों को नाराज किया है। और जाति गणना का विरोध करके भी कंगना ने भाजपा को मुश्किल में डाला है। सो, कोई मुद्दा बनाने की बजाय भाजपा जवाब देने में ही उलझी है।

झारखंड में जरूर हेमंत सोरेन की पांच साल की सरकार को घेरने का प्रयास भाजपा कर रही है लेकिन वहां भी भाजपा को समझ में नहीं आ रहा है कि वह आदिवासी राजनीति को साधे या गैर आदिवासी राजनीति के रास्ते पर चले। इस बीच कांग्रेस, जेएमएम और राजद गठबंधन ने आदिवासी विरोध, आरक्षण, संविधान आदि का मुद्दा बनाया हुआ है। वहां भी विपक्ष ज्यादा आक्रामक और हमलावर दिख रहा है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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