राज्य-शहर ई पेपर पेरिस ओलिंपिक

हर राज्य में भाजपा को नुकसान!

हां, किसी भी राज्य में भाजपा की सीटें नहीं बढ़ेंगी। उसे हर राज्य में नुकसान है। इस नुकसान को प्रति राज्य दो-चार सीट का मानें या आठ-दस सीटों का, कम-ज्यादा सभी राज्यों में है। भाजपा को हर उस राज्य में नुकसान होता हुआ है, जहां 2019 में मोदी की आंधी थी। जैसा मैंने पिछले सप्ताह लिखा, मेरी कसौटी राजस्थान है। मैं वहां भाजपा को चार सीटों का नुकसान बूझ रहा हूं। और राजस्थान में इतना भी नुकसान होना उन सभी राज्यों में भाजपा के लिए खतरे की घंटी है, जहां 2019 में उसकी जीत का वोट मार्जिन कुछ सौ वोटों से 50 हजार वोटों के बीच में था। सवाल है ऐसा क्यों होना चाहिए? इसलिए कि एक तो वोटिंग कम हो रही है। दूसरे, पूरे देश में मुस्लिम वोटों सहित दलित-आदिवासी और जातीय समीकरणों में यह कंफ्यूजन नहीं है कि मोदी को हराने के लिए बसपा को वोट दें या सपा-कांग्रेस को, नीतीश को वोट दें या लालू-कांग्रेस को। न महाराष्ट्र में कंफ्यूजन है और न बंगाल-ओडिशा में। तीसरा कारण लोगों में अपनी जिंदगी की चिंता पैदा होना है। मतलब महंगाई, बेरोजगारी जैसी बातें। इन सबसे बड़ा एक फैक्टर भाजपा के सीटिंग सांसदों के खिलाफ एंटी इंकम्बैंसी वाली नाराजगी या नए नौसखिए उम्मीदवारों के प्रति बेरूखी में लोकल जातीय समीकरणों व स्थानीय मुद्दों का हावी होना है। इन सबके कारण मोदी का जादू सिर चढ़ कर बोलता हुआ नहीं है।

इसलिए गुजरात, मध्य प्रदेश, छतीसगढ, राजस्थान, उत्तराखंड, हिमाचल, हरियाणा, दिल्ली के आठ राज्यों में 2019 की बंपर मार्जिन वाली भाजपा की 115 सीटों में रूखे-फीके चुनाव से कम ही सही लेकिन कुछ न कुछ नुकसान (जैसे राजस्थान में चार सीट, दिल्ली में एक-दो, हरियाणा में तीन-चार सीटों का) नुकसान निश्चित है। मगर इनसे अधिक उन बड़े राज्यों में भारी नुकसान है, जहां भाजपा ने 2019 में बहुत कम मार्जिन से सीटें जीती थी।

दूसरे शब्दों में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, बिहार, ओडिशा, बंगाल, झारखंड की 273 सीटों पर भाजपा इसलिए ज्यादा फंसी है क्योंकि इन प्रदेशों में 2019 में जीती सीटों में से बहुत सीटों पर चुनाव मात्र 181 वोटों से मतलब 0.0 प्रतिशत से दो, तीन, चार, आठ, दस  प्रतिशत वोट के अंतर से जीती थी। एक उदाहरण उत्तर प्रदेश है।

इस हकीकत को नोट करें। नरेंद्र मोदी की सुपर आंधी के बावजूद यूपी में भाजपा-सहयोगी की जीती 64 सीटों में से ऐसी 13 सीटें थी जो भाजपा ने 181 वोट (0.0 प्रतिशत, मछलीशहर) 4,729 वोट (0.4 प्रतिशत, मेरठ) और कई अन्य सीटें 15, 22 या 28 या 35 हजार के मार्जिन से जीती थी। इन सीटों पर तीसरा उम्मीदवार जीत के अंतर से बहुत ज्यादा वोट लिए हुए था। मतलब यूपी में करीबी मुकाबले (close contest) की ये सीटें हैं। सो, पहली बात भाजपा की जीती 64 सीटों में से तेरह पर तो कांटे का मुकाबला निश्चित है।

फिर इनके सहित यूपी में ऐसी कोई 27-28 सीटें हैं, जिनमें ओवरऑल भाजपा का कुछ हजार वोटों याकि 10 प्रतिशत वोट से कम अंतर पर जीतना था। ये सीटे हैं- मुजफ्फरनगर (0.6 प्रतिशत), कन्नौज (1.1 प्रतिशत), चंदौली (1.3 प्रतिशत), बलिया (1.6 प्रतिशत), बागपत (2.2 प्रतिशत), रामपुर (2.5 प्रतिशत), फिरोजाबाद (2.7 प्रतिशत), बस्ती (2.9 प्रतिशत), संत कबीरनगर (3.4 प्रतिशत), भदोही (4.2 प्रतिशत), कौशाम्बी (4.7 प्रतिशत), बंदायू (1.7 प्रतिशत), बांदा (5.7 प्रतिशत), अमेठी (5.8 प्रतिशत), सीतापुर (5 प्रतिशत), रॉबर्ट्संगज (5.5 प्रतिशत, अपना दल), इटावा (6 प्रतिशत) फैजाबाद, (6 प्रतिशत), मुरादाबाद (7.8 प्रतिशत), मोहनलालगंज (7 प्रतिशत), कैसरगंज (8.3 प्रतिशत), नगीना (9.8 प्रतिशत), मिशरिख (8.8 प्रतिशत), कुशीनगर (नौ प्रतिशत), कैराना (8.2 प्रतिशत), खिरी (10.2 प्रतिशत), आंवला (10.8 प्रतिशत) और बाराबंकी (9.5 प्रतिशत) सीटों को भाजपा ने 2019 में कम मार्जिन से जैसे-तैसे जीता था।

सो, पहली बात, यूपी में भाजपा को गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान जैसी छप्पर फाड़ (लाखों वोटों के अंतर वाली) बहुमत से जीती सीटें पहले से ही कम हैं। इसलिए मुकाबला कांटे का होना स्वाभाविक है। कह सकते हैं यूपी में राममंदिर का भारी असर होगा। निश्चित ही होगा। लेकिन वह ब्राह्मण, बनिया, राजपूत और हार्डकोर मोदीभक्तों पर होगा। और इनकी वोट डालने में 2019 जैसी दिलचस्पी नहीं है यह मेरठ, नोएडा, गाजियाबाद जैसी जगह हो चुके मतदान से जाहिर है। दूसरी बात आश्चर्यजनक रूप से पश्चिम यूपी की तरह पूर्वी उत्तर प्रदेश में ही भाजपा की कम मार्जिन वाली सीटें अच्छी खासी हैं। इनमें वहां बगल के बिहार के प्रभाव में व जातीय समीकरणों की तासीर वाली गणित से राम मंदिर की हवा फुस्स हो, लोकल इश्यू हावी हो, यह मुमकिन है।

इस विश्लेषण का अर्थ यह नहीं है कि भाजपा पिछली 62 सीटों से लुढ़क कर 40-50 पर जा पहुंचेगी। अपना तर्क सिर्फ इतना है कि यूपी में भाजपा की सीटें बढ़ेंगी नहीं। वह कम होंगी। और इसके साथ फीके चुनाव, सीटिंग उम्मीदवार से नाराजगी के मूड में भाजपा यदि यूपी में आठ-दस सीटें भी गंवा बैठे तो भाजपा का अपना आंकड़ा 250 सीटों से नीचे होगा। ऐसा होना महाराष्ट्र, कर्नाटक, बिहार, ओडिशा, बंगाल, झारखंड की 2019 की भाजपा जीत की गणित से भी पुष्ट है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *