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हसीना और मोदी में समानताएं!

सवाल है समानता की बात कैसे? इसलिए क्योंकि हर मोदी विरोधी हसीना के भागने में मोदी का भविष्य बूझ रहा है। भारत के पड़ौसी देश, वहा का मीडिया और मुसलमान यह मानते हुए है कि मोदी की पिठ्ठू हसीना भागी। सो शेख हसीना और नरेंद्र मोदी एक दूसरे के पर्याय है, यह धारणा आम है। हसीना के पतन में मोदी पर सोचना है। इसलिए क्यों न दोनों की समानताओं को बूझे! पहली बात हसीना वाजेद ‘लौह महिला’ वही नरेंद्र मोदी ‘छप्पन इंची छाती’ वाले! दोनों अपने देश में समर्थकों और दुश्मनों का विभाजन बनाने वाले। दोनों ने चुनाव आयोग और चुनावों की विश्वसनीयता पर शंका बनाई। लोगों में अविश्वास और नफरत का जहर घोला। लोकतंत्र की आड में दोनों की निरंकुशता के खिलाफ वैश्विक संगठनों, इंडेक्सों में बांग्लादेश व भारत की रैंकिंग गिरी तो अमेरिका, योरोपीय संघ जैसे सिरमौर लोकतांत्रिक समाजों में आलोचना व भर्त्सना।

ऐसे ही अभिव्यक्ति और मीडिया की आजादी को खत्म करने, पालतू बनाने में एक उन्नीस तो दूसरा बीस। तभी बांग्लादेश की सड़कों पर गुस्से में तमतमाएं नौजवानों का यह सवाल भारतीयों की भावना भी है कि प्रेस और मीडिया का काम सरकार की चापलूसी है या जनता की तकलीफों और समस्याओं को उठाना? हसीना ने 2018 में प्रेस, डिजिटल मीडिया को दबाने, मुश्किलों में डालने के एक्ट और कानून बनवाएं तो उसको फोलो करते हुए मोदी सरकार ने भी वैसे ही एक्ट बनाए। हसीना ने डिजिटल सेक्युरिटी एक्ट 2018 सहित मीडिया पर तलवार चलाने, उन्हे डराने, गुलाम बनाने के वे सारे काम किए जो मोदी सरकार के भी है। बांग्लादेश में हसीना ने विरोधी अखबार दैनिक दिनकाल के ताले लगवाएं। स्टेट विरोधी समाचारों के आरोपो में हसीना और उसके पीएमओ ने यू ट्यूब चैनल, वेबसाइटों को वैसे ही बंद करवाया जैसे मोदी सरकार करवाती है। हसीना ने दिशंबऱ 2022 में एकसाथ 191 वेबसाइटे बंद कराई थी।

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समानताओं में कैसे हसीना और मोदी एक सिक्के के दो पहलू है, यह दोनों के विकसित बांग्लादेश, विकसित भारत, डिजिटिल बांग्लादेश (2021 तक) डिजिटल भारत की कॉमन जुमलेबाजी के साथ योजनाओं में भी एक-दूसरे के फार्मूले चुराने से जाहिर है। आश्चर्य होगा कि 2008-2009 में हसीना ने ‘ए चार्टर फॉर चेंज’, विजिन-2021 या 1996-2001 में शेख हसीना की ‘आश्रय’ योजना मतलब प्रधानमंत्री आवास योजना, बुढ़ों-महिलाओं आदि को नकद पैसा बांटने और जीड़ीपी केंद्रीत विकास तथा इंफ्रास्ट्रक्चर के विशाल प्रोजेक्ट का जो म़ॉडल हसीना ने बनाया था वे बाद में मोदी सरकार के भी मंत्र थे। मानो बांग्लादेश से अजित डोवाल ने हसीना के प्रोग्राम दस्तावेज ला कर नरेंद्र मोदी और उनके पीएमओ को बांटे हो। हसीना भी घोषणा बहादुर और मोदी व हसीना एक से जुमले, फोकस, एप्रोच, योजनाए लिए हुए।

और हां, हसीना ने भी अपने प्रधानमंत्री दफ्तर के अधिकारियों, सलाहकारों से देश चलाया। उनकी पार्टी अवामी लीग वैसे ही आज्ञापालक, अनुशासित थी जैसे नरेंद्र मोदी ने भाजपा को बनाया है। हसीना ने पार्टी के नेताओं और उनके अनुभवों के बजाय पीएमओ के अफसरों, सलाहकारों और गैर-राजनीतिज्ञ टेक्नोक्रेंट से शासन चलाया।  इसलिए उनके मंत्रियों में भी मोदी के केबिनेट के हरदीप पुरी, वैष्णव, जयशंकर जैसे टेक्नोक्रेट नाम थे। क्रिकेट बोर्ड का अध्यक्ष भी हसीना की केबिनेट में था तो स्वास्थ्य मंत्री या वित्त, विदेश या सूचना मंत्रालय सब के मंत्री चेहरे दरबारी। हसीना ने लगातार सत्ता के अंहकार में अवामी लीग को जमीन से काट डाला। हसीना का विपक्षी नेताओं को जेल में डालने, विरोधी पार्टियों को चुनाव लड़ने लायक नही रहने देने का तरीका था और बेचारा विपक्ष चुनाव का बहिष्कार करने को मजबूर होता था। तभी 40-50 प्रतिशत के मतदान में हसीना येन-केन प्रकारेण अपने 30-40 प्रतिशत वोटो का फर्जीवाड़ा कर संसद में बहुमत पाती रही।

तभी सोचे नरेंद्र मोदी के लिए शेख हसीना कितनी अनुकरणीय रही होगी? मोदी की कार्यशैली, उनका पीएमओ, उनका मंत्रिमंडल, उनका विकास मॉडल, उनके जुमले, उनके क्रोनी पूंजीवाद, विपक्ष-मीडिया और एनजीओं को हैंडल करने के तरीकों तथा पूरी दुनिया में एक सी, निरंकुश इमेज बनाने की प्रतिस्पर्धा की समरूपताओं पर हम-आप जितना भी सोचे यह स्पष्ट लगेगा कि शेख हसीना सही में नरेंद्र मोदी-अमित शाह, अजित डोवाल, जयशंकर आदि के लिए रोल म़ॉडल थी! नरेंद्र मोदी मन ही मन मानते होंगे कि हसीना बांग्लादेशियों की देवी मां है। इसलिए उन्हे भगाने की साजिश विदेशी है।

सो समानता यह भी है कि जैसे मोदी अपने को भगवान, हिंदुओं का रक्षक मानते है वैसे ही लौह महिला शेख हसीना ने हमेशा अपने को अपराजेय और बांग्लादेश की नियति समझा। उन्होने अपनी और अपने खानदान की पूजा के वे तमाम स्मारक, व्यवस्थाएं, नैरेटिव बनाए, वह भक्ति बनाई जो नरेंद्र मोदी ने पिछले दस वर्षों में भारत में अपनी बनाई है। शेख हसीना ने देश में समर्थकों और विरोधियों के दो पाले बनाए। लोग या तो देशभक्त या देशद्रोही, आंतकी। उनके पतन की तात्कालिक चिंगारी यही थी जो उन्होने नौकरी, महंगाई, असमानता और बदहाली से तंग आई नौजवान आबादी को देशद्रोही, ‘रजाकर’ की गाली दी। और नौजवानों, विरोधियों ने कसम खा ली कि चलों ढ़ाका।

शेख हसीना ने वोट राजनीति में अपनी कब्र खोदते हुए विपक्ष, कट्टरपंथी मुसलमानों और आजादी-लोकतंत्र पसंद लोगों, एनजीओ, सिविल सोसायटी सबका साझा बनाया। वैसे ही जैसे भारत में नरेंद्र मोदी बनाते हुए है। तभी दोनों में समानता का एक पहलू नफरत का घनीभूत बिंदु भी है। मेरी मान्यता है कि बांग्लादेश उस बांग्ला मिजाज का प्रतिनिधी है जिसका अपना बौद्धिक बल है। तभी बांग्ला लोग पाकिस्तान के इस्लामी झंडे से पृथक हुए। वे अस्मिता, भाषा, मिजाज में प्रगतिशील है। मेरी यह भी मान्यता है कि बांग्लादेश के कायाकल्प में स्वंयसेवी संस्थाओं याकि एनजीओं का ऐतिहासिक रोल है। और हसीना ने इस एनजीओ जमात पर डंडा चलाने, सिविल सोसायटी को खत्म करने, उन्हे अरबन आंतकी करार दे कर जेल में डालने के वे सब पाप किए है जो नरेंद्र मोदी ने भारत में किए है। अपना मानना था और है कि जैसे अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता वैसे निरंकुश तानाशाह जब एक सरकार के बूते अंहकार के अह्म बह्मास्मी में शासन करता है तो होता वही है जो शेख हसीना का हुआ। साथ ही यह अखिरी सत्य भी कि तानाशाह जब भागता है या लोगों की हाय के साथ बेमौत मरता है तो उसको कंधा देने के लिए, उसके लिए रोने के लिए न देश की जनता होती है, न पार्टी (अवामी लीग) और उसके दरबारी मंत्री साथ होते है। और न ही ऐसे तानाशाह को अमेरिका या ब्रिटेन जैसे सभ्य समाजों में शरण मिलती है। बांग्लादेश में आज कथित 35-40 प्रतिशत वोटों वाली अवामी लीग, उसके नेता, मंत्री-सलाहकार सब चूहों की तरह बिलों में घुस कर अपनी जान बचाते फिर रहे है। क्या एक भी ऐसी कोई खबर सुनी कि अवामी लीग के नेता, कार्यकर्ता हसीना के लिए लड़ते हुए, आंसू बहाते या उनकी अच्छाईयां गिनाते हुए है?

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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