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एक्जिट पोल वालों की होशियारी

समय के साथ हर व्यक्ति और संस्थान भी सीखते हैं। सो, एक्जिट पोल करने वाली एजेंसियों और उन्हें दिखाने वाले मीडिया समूहों ने भी बहुत कुछ सीख लिया है। तभी इस बार एक्जिट पोल इस अंदाज में दिखाए गए हैं कि नतीजे कुछ भी आएं उनका श्रेय लिया जा सके। ज्यादातर एजेंसियों ने कंफ्यूजन पैदा किया है। दो चीजें बहुत साफ देखने को मिली हैं। पहली यह कि इस बार न्यूनतम और अधिकतम का दायरा सबने बड़ा दिया है। पहले चार से 10 का दायरा होता था, जिसे इस बार 12 से 22 तक कर दिया गया है। इसके ऊपर से मार्जिन ऑफ एरर होता है, जिसके बारे में चैनलों पर कहा गया कि वह एक से दो फीसदी नहीं, बल्कि सात से आठ फीसदी हो सकता है। हर बार एकतरफा नतीजों की भविष्यवाणी करने वाली एक एजेंसी ने तो प्लस-माइनस 12 सीटों का रखा हुआ है।

हालांकि इस होशियारी के बावजूद हर बार की तरह एक्जिट पोल का रूझान भाजपा की ओर ही है। वैसे भी कहा जाता है कि एक्जिट पोल में भाजपा शायद ही कभी हारती है। अगर दो-तीन एजेंसियां भाजपा को हारती हुई बताएंगी तो छह-सात उसकी जीत की या करीबी मुकाबले की भविष्यवाणी जरूर करेंगी और यह आज की बात नहीं है, नब्बे के दशक के आखिर में जब एक्जिट पोल शुरू हुए थेतब भी भाजपा ज्यादा चुनाव नहीं जीतती थी लेकिन एक्जिट पोल में उसे जीतता हुआ दिखाया जाता था।

बहरहाल, पांच राज्यों में मतदान के बाद आए एक्जिट पोल के आंकड़ों के मुताबिक हिंदी पट्टी के तीन राज्यों- मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर है तो तेलंगाना में कांग्रेस और बीआरएस के बीच कांटे की टक्कर है। एक या दो एजेंसियों ने ही किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिलने या किसी पार्टी की बड़ी जीत की भविष्यवाणी की है। बाकी एजेंसियों ने मामूली बहुमत या त्रिशंकु विधानसभा का अनुमान जताया है। सर्वे एजेंसियों और मीडिया समूहों ने यह सावधानी इसलिए बरती है क्योंकि पिछले कुछ समय से ज्यादातर राज्यों के असली नतीजे एक्जिट पोल से अलग आ रहे हैं और इससे पार्टियों के साथ साथ आम लोगों का भरोसा भी इनसे उठ रहा है।

इसी साल मई में हुए कर्नाटक विधानसभा के एक्जिट पोल और वास्तविक नतीजों के अंतर को देख कर समझा जा सकता है कि एजेंसियों ने क्यों इतनी होशियारी बरती है। कर्नाटक में मतदान खत्म होने के बाद 11 मई को आए एक्जिट पोल के नतीजों में चार एजेंसियों- टाइम्स नाऊ-ईटीजी, इंडिया टीवी-सीएनएक्स, इंडिया टुडे-एक्सिस माई इंडिया और न्यूज 24-टुडेज चाणक्य ने कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिलने की बात कही थी, जबकि दो एजेंसियों, न्यूज नेशनल- सीजीएस और सुवर्णा-जन की बात ने भाजपा को सबसे बड़ी पार्टी बनने की भविष्यवाणी की थी। इनके अलावा एबीपी-सी वोटर्स, रिपब्लिक-पी मार्क, टीवी 9- पोल स्टार्ट, जी न्यूज-मैट्रिज आदि ने त्रिशंकु विधानसभा की संभावना जताई थी। अगर सभी एक्जिट पोल के आधार पर पोल ऑफ पोल्स बनाएं तो 11 मई 2023 को कहा गया था कि भाजपा को 92, कांग्रेस को 106 और जनता दल एस को 23 सीटें मिलेंगी। यानी पोल ऑफ पोल्स के मुताबिक कर्नाटक में त्रिशंकु विधानसभा बनने वाली थी। लेकिन कांग्रेस को 113 के बहुमत आंकड़े की जगह 136 सीटें मिलीं। यह सिर्फ कर्नाटक की बात नहीं है, बल्कि ज्यादातर राज्यों के एक्जिट पोल में ऐसे ही नतीजे आते हैं। पश्चिम बंगाल के 2021 के चुनाव में कई सर्वे एजेंसियां भाजपा की सरकार बनवा रही थीं। सो, इन सबसे सबक लेकर एजेंसियों ने इस बार होशियारी की है।

सबसे पहले न्यूज 24-टुडेज चाणक्य की होशियारी देखिए। उसने राजस्थान में कांग्रेस को 101 सीट दी है लेकिन प्लस-माइनस 12 सीट कहा है। इसका मतलब है कि कांग्रेस को 89 सीटें भी मिल सकती हैं और 113 भी। दूसरी ओर भाजपा को उसने प्लस-माइनस 12 के साथ 89 सीटें दी हैं, जिसका मतलब है कि उसको न्यूनतम 77 और अधिकतम 101 सीट भी मिल  सकती है। इस तरह उसने दोनों को बहुमत मिलने का अनुमान जता दिया है। मध्य प्रदेश में भाजपा को बड़ा बहुमत मिलने की संभावना जताई है लेकिन वहां भी प्लस-माइनस 12 सीटों का रखा है। दोनों जगह एजेंसी ने मार्जिन ऑफ एरर 10 फीसदी का रखा है।

इसी तरह इंडिया टुडे-एक्सिस माई इंडिया ने न्यूनतम और अधिकतम का अंतर बहुत बड़ा रखा है, जिसका मकसद यह होता है कि इसके बीच कहीं न कहीं तो सीटें आ जाएंगी। मिसाल के तौर पर उसने मध्य प्रदेश में भाजपा को न्यूनतम 140 और अधिकतम 162 सीट मिलने का अनुमान जताया है तो कांग्रेस को न्यूनतम 68 से अधिकतम 90 सीट की भविष्यवाणी की है। वहां न्यूनतम और अधिकतम का अंतर 22 सीट का है। राजस्थान में एजेंसी ने न्यूनतम और अधिकतम का अंतर 20 सीट का रखा है। उसके मुताबिक कांग्रेस को 86 से 106 और भाजपा को 80 से 100 सीटें मिल सकती हैं। छत्तीसगढ़ में सिर्फ 90 सीटों की विधानसभा है लेकिन वहां भी एजेंसी ने न्यूनतम और अधिकतम का अंतर 10 सीट का रखा है यानी 10 फीसदी से भी ज्यादा का। मध्य प्रदेश में जहां भाजपा के प्रचार की वजह से नतीजों पर सस्पेंस बना है वहां इंडिया टीवी-सीएनएक्स ने भी न्यूनतम और अधिकतम के बीच 19 सीटों का अंतर रखा है। हालांकि वह भी इंडिया टुडे की तरह कांग्रेस को बुरी तरह से हरा रही है।

ऐसा लग रहा है क सर्वे एजेंसियों और मीडिया समूहों ने संतुलन बनाने की कोशिश भी की है। तभी जो दो एजेंसियां और मीडिया समूह मध्य प्रदेश में कांग्रेस को बुरी तरह से हरा रहे हैं वे राजस्थान में कांग्रेस को जीता रहे हैं। इंडिया टुडे-एक्सिस माई इंडिया और इंडिया टीवी-सीएनएक्स ने मध्य प्रदेश में कांग्रेस को सौ से नीचे रखा है और भाजपा को पूर्ण बहुमत दिया है। लेकिन राजस्थान में दोनों ने कांग्रेस को भाजपा से बड़ी पार्टी बताया है। संभव है कि धारणा बदलने के लिए ऐसा किया गया हो क्योंकि आम धारणा में मध्य प्रदेश में कांग्रेस ज्यादातर बेहतर थी। अब दो चैनल कह रहे हैं कि वहां भाजपा को भारी बहुमत मिलेगा। तभी इन सर्वेक्षणों के बाद कमलनाथ को कांग्रेस कार्यकर्ताओं से अपील करनी पड़ी कि वे अपना मनोबल बनाए रखें। इन सर्वेक्षणों से कांग्रेस कार्यकर्ताओं का हौसला टूटा। तो दूसरी ओर राजस्थान के सर्वे से भाजपा कार्यकर्ताओं पर कोई फर्क नहीं पड़ा है। वे जीत के भरोसे में हैं। तभी दोनों की मंशा पर सवाल खड़े होते हैं।

इसके अलावा ज्यादातर सर्वे एजेंसियों और मीडिया समूहों ने सावधान बरतते हुए हर जगह कांटे की टक्कर दिखा दी है। पांचों राज्यों- मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में कांटे की टक्कर बताई गई है। या तो विधानसभा त्रिशंकु बन रही है या किसी पार्टी को बहुत मामूली बहुमत मिल रहा है। ऐसे सर्वे में गलत साबित होने का चांस खत्म होता जाता है। इसमें गलत तभी साबित हुआ जा सकता है, जब किसी पार्टी को बहुत बड़ा बहुमत मिल जाए।

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By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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