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स्थानीय बनाम राष्ट्रीय मुद्दों का नैरेटिव

भारतीय जनता पार्टी को पांच राज्यों के विधानसभा के चुनाव में ऐसे भावनात्मक और संवेदनशील मुद्दों की तलाश है, जिनसे स्थानीय राजनीति और ठोस राजनीतिक मुद्दों पर से ध्यान हटाया जा सके। सही है कि जिन राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं उनमें से भाजपा की सरकार सिर्फ मध्य प्रदेश में है और राजस्थान व छत्तीसगढ़ में वह मुख्य विपक्षी है, जबकि तेलंगाना में जगह बनाने के लिए लड़ रही है। लेकिन केंद्र में पिछले साढ़े नौ साल से भाजपा की सरकार है और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं। उन्होंने देश की कमान संभालते समय बड़े वादे किए थे। लोग अच्छे दिन आने का इंतजार कर रहे थे। माना जा रहा था कि मोदी पूरे देश का कायाकल्प कर देंगे। सो, भले कई राज्यों में भाजपा विपक्ष में है लेकिन वहां भी उसे किसी न किसी स्तर पर सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है।

इसका एक कारण यह है कि सभी राज्यों में भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ रही है। मध्य प्रदेश में, जहां उसकी सरकार है वहां भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के चेहरे पर चुनाव नहीं लड़ा जा रहा है। पार्टी ने यह ऐलान नहीं किया है कि भाजपा जीती तो चौहान फिर से मुख्यमंत्री होंगे। वहां भी भाजपा सामूहिक नेतृत्व में और नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ रही है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में तो भाजपा विपक्ष में है। वहां उसने पुरानी परंपरा से हटते हुए बिना किसी का चेहरा पेश किए लड़ने का फैसला किया है। राजस्थान में वसुंधरा राजे और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह सक्रिय हैं लेकिन पार्टी ने उन पर दांव नहीं लगाया है। दोनों राज्यों में मोदी के चेहरे पर चुनाव हो रहा है। तभी दोनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद भाजपा को अंदर अंदर सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है। मध्य प्रदेश में तो दोहरी एंटी इन्कम्बैंसी हो गई है।

चूंकि राज्यों के चुनाव में भी नरेंद्र मोदी का चेहरा है और उनको या पार्टी को लग रहा है कि साढ़े नौ साल के शासन की एंटी इन्कम्बैंसी हो सकती है इसलिए ठोस राजनीतिक मुद्दों की बजाय राष्ट्रीय और भावनात्मक मुद्दे उठाए जा रहे हैं। विपक्ष पर हमला उनके कामकाज से ज्यादा इस बात के लिए किया जा रहा है कि उन्होंने ‘घमंडिया’ गठबंधन बनाया है और सनातन को खत्म करने के लिए काम कर रहे हैं। हकीकत यह है कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के पांच साल के राज के बावजूद भाजपा कोई बड़ा आंदोलन नहीं खड़ा कर पाई और न भ्रष्टाचार के बड़े मामले में नेताओं को उलझाया जा सका। दोनों राज्यों में कांग्रेस की सरकारों ने लोक कल्याण की अनगिनत योजनाएं घोषित कीं, जिन्हें पहले प्रधानमंत्री मोदी ने ‘मुफ्त की रेवड़ी’ कहा लेकिन जवाब में अब मध्य प्रदेश में उनकी सरकार वहीं काम कर रही है और बाकी राज्यों में भाजपा के नेता वैसे ही वादे कर रहे हैं, जैसे काम कांग्रेस की सरकार कर रही है। सामाजिक समीकरण में भी दोनों राज्यों के कांग्रेस नेता बड़े जातीय समूह का प्रतिनिधित्व करते हैं।

तभी ठोस राजनीतिक मुद्दों और सरकारों के कामकाज के बजाय सनातन का मुद्दा बनाया गया है। इसके जरिए हिंदू मतदाताओं को एकजुट करने का प्रयास हो रहा है। जी-20 शिखर सम्मेलन के जरिए केंद्र सरकार के अब तक के बाकी कामकाज और वादों को पीछे धकेल कर भारत की विश्वगुरू या विश्वमित्र की छवि का प्रचार किया जा रहा है। भारत और इंडिया की बहस चलाई जा रही है। हिंदी का प्रचार किया जा रहा है। ध्यान रहे पिछले 25 साल से मोदी की छवि हिंदू हृदय सम्राट वाली है। सो, सनातन और मोदी को भाजपा ने मिला दिया है। इसी तरह जी-20 सम्मेलन में समूचा फोकस मोदी के ऊपर रखा गया, जिससे लोगों में आसानी से यह मैसेज गया कि मोदी की वजह से देश को इतना सम्मान मिल रहा है। सो, पांचों राज्यों में यह नैरेटिव है कि मोदी से सनातन की रक्षा है, मोदी से भारत विश्वगुरू है, मोदी से भारत है और मोदी से हिंदी व हिंदू हैं।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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