भगवान उर्फ नरेंद्र मोदी ने ताली बजाई। पट्ठे अनुराग ठाकुर की पीठ थपथपांई। उन्होने भारत के लोगो से आव्हान किया कि सुनों मेरे इस सांसद का भाषण। यह इस सप्ताह की एक अनहोनी बात है। इसलिए क्योंकि मैंने पहले कभी नहीं सुना कि कोई प्रधानमंत्री पद की गरिमा को छोड़ एक सांसद के भाषण की मार्केटिंग करें। सो पहली बात, भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर धन्य हुए। उन्हे प्रधानमंत्री की वाह मिली। दूसरी बात देश का नेता विपक्ष राहुल गांधी ‘एक्सीडेंटल हिंदू’ करार। इतने पर भी संतोष नहीं तो भगवान ने राहुल गांधी की जात भी पूछवा ली।
सोचे, मोदी-संघ के ‘हिंदू ऑईडिया ऑफ इंडिया’ में झूठ की इस खेती पर! और वह भी संसद में! इससे कथित हिंदुओं ने भारत के उन सभी मोदी विरोधी हिंदुओं को ‘एक्सीडेंटल हिंदू’ की केटेगरी में डाला है जो मोदी-शाह, संघ के विरोधी है। मतलब 2024 के लोकसभा चुनाव में जिन 36.6 प्रतिशत हिंदुओं ने मोदी की भक्ति में वोट डाले वे सच्चे और नेचुरल हिंदू तथा बाकि 64.4 प्रतिशत वोट या तो ‘एक्सीडेंटल हिंदू’ या मुसलमान, ईसाई।
मतलब एक झटके में प्रधानमंत्री और उनकी जमात ने भारत में ‘हिंदुओं’ की संख्या को अल्पसंख्या में बदल डाला। और फिर संसद में, दरबार में यह भी पूछना कि तुम तो बिना जात के हो!
अनुराग ठाकुर या योगी आदित्यनाथ भाषणबाजी में ‘एक्सीडेंटल हिंदू’ या ‘जात’ के झूठ से विपक्षी नेता की खाट खड़ी करें, समझ आता है लेकिन देश का प्रधानमंत्री उसकी वाह करते हुए देशवासियों को आव्हान करें कि उसे सुनो तो मोदी का कैसा तो भगवान रूप और यह कैसा उनका हिंदूपना या हिंदू राष्ट्र! यदि राहुल गांधी, विपक्षी नेता या आलोचक मोदी का विरोध नहीं करें तो वे सच्चे, नेचुरल हिंदू माने जाएंगे अन्यथा ‘एक्सीडेंटल हिंदू’, नकली या गद्दार हिंदू!
मुझे सचमुच समझ नहीं आता कि सावरकर, मालवीय, हेडगेवार, गोलवलकर, श्यामाप्रसाद, वाजपेयी, आडवाणी, भागवत के हिंदू राजनैतिक ऑईडिया में नरेंद्र मोदी ने कैसे ऐसा दिमाग पाया जो आजाद भारत के इतिहास में एक तरफ हिंदुओं को ओबीसी, फारवर्ड, आदिवासी, दलित में जातिगत आधार पर बांटने की धुंआधार राजनीति कर रहे है वही दूसरी तरफ समग्र हिंदू समाज में असली-नकली, देशभक्त-देशद्रोही, पृथ्वीराज बनाम जयचंद, नेचुरल बनाम ‘एक्सीडेंटल हिंदू’ की नित नई श्रेणियां बनवा रहे है? तभी ज्ञात इतिहास में हिंदूओं को बांटने, तेरे-मेरे की लड़ाई, जात की लड़ाई के रिकार्ड तोड़ काम पिछले दस सालों में हुए है। वीपीसिंह ने मंडल की राजनीति की थी लेकिन उन्होने भी अपनी केबिनेट, अपने फैसलों को लेकर ऐसी प्रेस विज्ञप्तियां जारी नहीं कराई कि मंत्रिमंडल में फंला-फंला जाति के फंला-फंला नेता है। या वाजपेयी, आडवाणी, राजीव गांधी मेरे दुश्मन है तो मैं रघुवंशी हिंदू और मेरा विरोधी नकली ब्राह्यण है, या सिंधी या एक्सीड़ेटल हिंदू है!
सवाल है नरेंद्र मोदी खुद क्या है? वे कौन से हिंदू है? वे मानव हिंदू है या अजैविक भगवान है? हालिया लोकसभा चुनाव में उन्होने बनारस के घाट से दुनिया को खुद बताया कि वे भगवान है। भला कौन से भगवान? पेगंबर है या प्रभु यीशु या ब्रह्मा-विष्णु-महेश? लेकिन यदि माने कि वे एक हिंदू मानव है तो उन्होने अपने जीवन में बतौर हिंदू सौलह संस्कारों में क्या एक भी वह संस्कार धारा है जिसके होने से हिंदू हुआ जाता है? जिससे मनुष्य जन्म को वह भावना, वह दीक्षा प्राप्त होती है जिससे वह हिंदू नव-जन्म में दीक्षित होता है। मैंने तो नरेंद्र मोदी के जीवन चरित में कोई फोटो या ऐसा विवरण नहीं पढ़ा जिससे मालूम हो कि उनका उपनयन संस्कार हुआ है। एक विवाह संस्कार या सप्तपदी की घटना होने का सत्य जरूर दस साल पहले जाना था लेकिन उस संस्कार की कोई भावना नरेंद्र मोदी के जीवन में क्या व्यक्त हुई? क्या पितृ ऋण, मातृ ऋण, ऋषि ऋण (यदि संघ के गुरूओं का भी ऋण माने तब) के निर्वहन का नरेंद्र मोदी का कोई सत्य है? हाल में उनकी माता का देहांत हुआ लेकिन मैने तो नहीं जाना कि नरेंद्र मोदी ने तब सनातनी गृहस्थ हिंदू जीवन के अनिवार्य कर्मकांड किए या अपनी पत्नी को अपनी सास के प्रति उऋणता करने दी।
जाहिर है या तो नरेंद्र मोदी को भगवान मानों और मनुष्य जीवन ही महज ‘एक्सीडेंटल’। और इसमें हिंदू होना कहां और क्या?
मैं यह सब क्यों लिख रहा हूं? इसलिए क्योंकि मैंने चालीस साल की पत्रकारिता में एक क्षण भी कभी नहीं सोचा या माना कि गांधी और नेहरू हिंदू विरोधी या नकली, एक्सीडेंटल हिंदू थे। निश्चित ही इनकी विचारधारा अलग थी लेकिन इन्होने पूरे देश में, और खासकर उत्तर भारत की गुलाम आबादी में हिंदू चेतना पैदा की थी। राम का नाम, राम-राम कपड़े पहनने, रामराज्य, सुबह-शाम की प्रार्थना में रामधुन, वैष्णव जन तो… का वह मंत्र घर-घर पहुंचवाया था जिससे लोगों के दिल-दिमाग में स्वराज की जरूरत पैठी थी।
यह भी ज्ञात तथ्य है कि मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव, संजय, सोनिया, राहुल आदि का वंशवृक्ष कश्मीरी पंडित मिजाज का था। और संपन्नता, आधुनिकता, वैज्ञानिक दृष्टि के बावजूद परिवार सनातन धर्म के उन सभी संस्कारों को हमेशा धारे रहा जिसमें नेहरू ने स्वंय माता-पिता से तय हुए अरेंज रिश्ते में शादी की। उपनयन और विवाह-सप्तपदी संस्कारों से जहां हिंदू होना धारा वही उम्र भर गृहस्थ हिंदू जीवन की सभी जिम्मेवारियां निभाई। ऋषि, पितृ, देव और मनुष्य ऋण से उऋण हुए। नेहरू कर्मकांडी और दिखावी नहीं थे लेकिन आध्यात्मिक थे। उनकी बेटी इंदिरा गांधी का भी पारसी फिरोज गांधी से विवाह आनंद भवन में सभी संस्कारों के साथ था। मुझे ध्यान है कि नेहरू की मृत्यु के बाद उनकी इच्छा से ही इलाहाबाद में संगम में उनका अस्थि विर्सजन हुआ था। और याद करें, इंदिरा गांधी तथा राजीव गांधी की मृत्यु के बाद उनके अंतिम संस्कार की तस्वीरों को। हिंदू रीति-रिवाज से सब था। राहुल गांधी ने दोनों वक्त जनेऊ पहने अग्निदाह किया। राजीव गांधी और सोनिया गांधी का प्रेम विवाह था लेकिन इंदिरा गांधी और कश्मीरी पंडित परिवार की रीति में सनातनी संस्कारों से सप्तपदी की प्रतिज्ञाओं के साथ। और राजीव, सोनिया गांधी ने जिस गरिमा, गंभीरता से संस्कारों, कुल-परिवार की मान-मर्यादाओं में धर्म का निर्वहन किया था वह सच्चा हिंदू होना था या ‘एक्सीडेंटल हिंदू’?
पता है यह ‘एक्सीडेंटल’ शब्द कहां से आया है? एक बीएन खेर नाम के व्यक्ति हिंदू महासभा के अध्यक्ष हुआ करते थे। वे नेहरू के महा निंदक थे। उन्होने 1959 में नेहरू के संदर्भ में यह जुमला बोला था कि वे तो ‘एक्सीडेंटल हिंदू’ है। इस शब्द के साथ उन्होने नेहरू के 1929 के एक भाषण के हवाले बेतुकी यह मनगढ़ंत तुकबंदी बनाई थी कि नेहरू ने कहां है कि, ‘वे शिक्षा से ईसाई, संस्कृति से मुस्लिम और दुर्भाग्य से हिंदू है।‘
जबकि नेहरू ने कभी ऐसा कुछ भी नहीं कहां। लेकिन नेहरू विरोध के ये पुराने जुमले मूर्ख हिंदुओं के मानस में चिपकाए गए। फिर सोशल मीडिया का समय आया तो अजैविक भगवान के प्रोपेंगेंडा में ये झूठ देववाणी की तरह फैलाए गए। ध्यान रहे योगी आदित्यनाथ ने भी राहुल गांधी को ‘एक्सीडेंटल हिंदू’ कहा है। अब लोकसभा में ‘एक्सीडेंटल हिंदू’ जुमला बोला गया है। और खुद प्रधानमंत्री ने उसका अखिल भारतीय प्रचार बनाया है।