असंभव है! मैंने लुटियन दिल्ली की 45 साला पत्रकारिता में असंख्य अहंकारी सत्तावान देखे। इंदिरा गांधी को कलंकित और गोलियों से छलनी होते देखा। भूतो न भविष्यति जैसे छप्पर फाड़ बहुमत की जीत वाले राजीव गांधी को हारते देखा। चरण सिंह, वीपी सिंह, देवीलाल की सत्ता भूख व घमंड का लावारिस अंत देखा। परिंदा पार नहीं होने देने के अहंकार वाले मुलायम सिंह यादव का हस्र देखा। अटल बिहारी वाजपेयी-प्रमोद महाजन के शाइनिंग इंडिया और कभी नहीं हारने के गुमान की बेमौत मौत देखी। तो पहली बात, सत्ता हमेशा अंधा बनाए रहती है। दूसरी बात हिंदुओं की तासीरकी है। गुलामी, भयाकुलता, भूख व भक्ति वाली प्रजा के हिंदू राजा को न शासन समझ आता है और न उनके शासन में बुद्धि का मान बना हुआ होता है। मैं तो साला साहेब बन गया की सत्ता मनोदशा में विनम्रता-समझ, सलाह-मशविरे की गुंजाइश जीरो बनी होती है। राजा भगवान का अवतार इसलिए वही अकेला रक्षक तथा सर्वज्ञ!
तभी आश्चर्य नहीं जो नौ वर्षों से नरेंद्र मोदी व अमित शाह का गंवार अहंकार अति का कीर्तिमान है। सोचें, अमित शाह पर। अपने को वे चाणक्य जैसा धुरंधर राजऋषि कहला रहे थे लेकिन इन नौ वर्षों में क्या हुआ? डराओ, खरीदो याकि कभी चाता-भतीजे को लड़वाओ, कभी पार्टी को तोड़ो, कभी नेताओं-विधायकों को खरीदो वाली फूहड़-बेशर्म राजनीति! क्या ये चाणक्य के सूत्र हैं? चाणक्य ने अत्याचारी नंद वंश का खात्मा किया और उसकी जगह भारत के इतिहास का सर्वाधिक बहादुर, विशाल साम्राज्य बनाने वाले चंद्रगुप्त मौर्य की प्रतापी-सफल राजनीति बनाई तो साथ ही सुशासन की व्यवस्था बनवाई। और वह सब कुछ वीरता के साथ था। क्या चाणक्य की रीति-नीति में पीठ पीछे वार करने, तिकड़मों, ईडी-सीबीआई-कोतवालों के छापों से प्रजा या विरोधियों को डराने, फंसाने तथा समाज में झूठ की गंगोत्रियां बनवाने याकि समाज के आचरण व नैतिक मूल्यों, संस्कारों की ऐसी-तैसी करने जैसे सूत्र हैं?
खैर, चाणक्य हिंदुओं के स्वर्णकाल के आदर्श थे, उनकी बजाय मौजूदा कलियुगी वक्त में सावरकर और कांग्रेस के सरदार पटेल से भी अमित शाह अपनी तुलना करवाते है। पर इसमें भी सोचें, क्या सावरकर की जीवनगाथा, उनके हिंदू राजनीतिक दर्शन में यह थ्योरी है जो राज हिंदुओं का लेकिन राजनीति देश के भीतर पानीपत की लड़ाई करवाने की करनी है। याकि हिंदू सत्ता का सूत्र भी अंग्रेजों की तरह बांटो और राज करो वाला। हिंदुओं के सियासी जातीय अखाड़े बनवाओ। कैबिनेट को जातीय पहचान दो। हाई कोर्ट से आरक्षण के फैसले करवाओ या बदलवाओ! हिंदू बनाम मुस्लिम, हिंदू बनाम ईसाई, हिंदू बनाम आदिवासी, आदिवासी बनाम आदिवासी, फॉरवर्ड बनाम दलित जैसी नस्ली-जातीय खुन्नस-लड़ाइयां करवाओ और फिर छोटे-छोटे क्षेत्रीय पानीपत मैदान बनवा कर चुनाव जीतो! सावरकर वीर थे। वे हिंदू राजनीति, हिंदू राष्ट्र और हिंदुओं के सनातनी सत्य पर वैश्विक पहचान तथा गरिमा बनवाने की जिद्द के योद्धा थे। लेकिन अमित शाह ने अपनी राजनीति से नौ वर्षों में हिंदू राजनीति का क्या अर्थ बनवाया? झूठ की राजनीति के असंख्य बबूल बीज बोए। वोट के लिए हिंदुओं को बांटा। ऐसे-ऐसे भ्रष्ट, सत्ताखोर, अवसरवादी-परिवावादी लोगों की फौज बना कर राजनीति व राज सजाया हैं, जिनका एकमेवमकसद है सत्ताखोरी व दलाली। ऐसे अवसरवादी लोगों के लिए मणिपुर कल जलता हो तो आज जले।
तभी विचारें, वीर सावरकर और सरदार पटेल दोनों पर? क्या कोई कल्पना कर सकता है कि ये वह होने देते जो आज मणिपुर में है? क्या सावरकर और सरदार पटेल अपनी राजनीति व सत्ता के लिए हिमंता बिस्वा, बीरेंद्र सिंह, अजित पवार, प्रफुल्ल पटेल, ओपी राजभर, चिराग पासवान जैसों को हनुमान बनाते? क्या सावरकर अपने हिंदू राष्ट्र को सीबीआई-ईडी-कोतवालों द्वारा संचालित बनवाते? वे क्या हिंदुओं को भयाकुल या भक्तिमान बना कर झूठ और प्रोपेंगेडा से शासन करते? सोचे और ईमानदारी से सोचे कि सावरकर और सरदार पटेल हजार साल की गुलामी के बाद बने भारत राष्ट्र का कैसे शासन संभालते? क्या वे लोगों की आजादी, संस्थाओं की स्वतंत्रता-गरिमा, मीडिया, बुद्धि-ज्ञान-विज्ञान और लोकतंत्र का पोषण करते या इनकी जड़ों में मट्ठा डालते?
तभी सवाल है इस तरह सोचना क्या अमित शाह के लिए संभव है? मैं नरेंद्र मोदी और अमित शाह के चेहरे देख कई बात सोचता हूं कि इन्हें बूझता क्यों नहीं कि ये क्या कर रहे हैं! गुजरात दंगों ने मोदी की एक वैश्विक इमेज बनाई थी। तब से अब तक जो हुआ है उसमें उनकी पुण्यता व देश-कौम का नैतिक-भौतिक-सामाजिक- सांस्कृतिक, सभ्यतागत निर्माण क्या है? दुनिया में मोदी को ले कर पहले से बनी हुई धारणा और बिगड़ी है या नहीं? भूल जाएं विश्व कूटनीति में गले लगने के उनके फोटोओं को। वह सब 140 करोड़ लोगों की संख्या के देश की वजह से है।
सोचें, ईश्वर ने मोदी-शाह की क्या गजब जन्मपत्री बनाई लेकिन बावजूद इसके इनके कर्म कैसे हैं? देश को फल कैसा मिलता हुआ है? हां, मैंने सन् 2015 में मोदी-जेटली-शाह के सत्ता अहंकार को बूझ कर लिखा था कि ये सत्ता से जब हटेंगे तो हिंदू राजनीति और संघ परिवार को वैश्विक तौर पर ऐसा बदनाम व घृणित बना कर जाएंगे कि हिंदुओं की पीढ़ियों के लिए जवाब देना मुश्किल होगा।
बहरहाल, अमित शाह को अपनी सलाह है। वे अपने को कितना ही महाबली मानें या बनाएं उनके लिए प्रधानमंत्री का पद दूर होता जा रहा है। उन्हें कथित सरदार पटेल या सावरकर की विरासत के सर्वज्ञ उत्तराधिकारी के नाते न वोट मिलने हैं और न नरेंद्र मोदी उन्हें प्रधानमंत्री बना कर गद्दी छोड़ेंगे। वे भले पूरी भाजपा को अपनी कठपुतली बना लें, गडकरी, शिवराज सिंह, राजनाथ सिंह, जेपी नड्डा, योगी आदित्यनाथ आदि सबकी छुट्टी करवा कर अपनी टोली से पूर्वोत्तर भारत, राजभर से उत्तर प्रदेश, चिराग पासवान से बिहार, शिंदे-पवार-फड़नवीस से महाराष्ट्र आदि प्रदेशों में चाहे जैसी फौज बनाएं न तो इनमें से कोई उन्हें वोट दिला सकता है और न राजनीतिक-नैतिक पुण्यता मिलेगी। उन्होंने जो मकड़जाल बनाया है वह जहां खुद उनके लिए आत्मघाती होगा तो नरेंद्र मोदी के लिए भी! ऐसा अगले साल हो या पांच साल बाद, लेकिन होगा वही जो अहंकार और अति के अंत में हमेशा होता आया है। इसमें मणिपुर का गृहयुद्ध टर्निंग प्वाइंट है।