राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

गीता प्रेस का योगदान अतुलनीय

सन 1926 से लगातार प्रकाशित हो रहे कल्याण पत्रिका के आद्य संपादक नित्यलीलालीन भाईजी श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार थे, जो स्वयं कई दुर्लभ ग्रन्थों के प्रकाशक, भाष्यकार व टिप्पणीकार रहे हैं। गीता प्रेस की पुस्तकें पढ़-पढ़ कर बड़े हुए प्रतिष्ठित व्यक्तियों का कहना है कि सनातन हिन्दू धर्म की गीता प्रेस ने जो सेवा की है, वह अतुलनीय है। आज अगर सामान्य जन श्रीमद्भगवदगीता , श्रीरामचरित मानस सहित, पुराण, उपनिषद आदि अनेक दिव्य शास्त्र और ग्रन्थ बहुत कम मूल्य पर प्राप्त करके उनका अध्ययन कर रहे हैं, तो इसका श्रेय गीताप्रेस को ही है।

गीता प्रेस गोरखपुर के शताब्दी वर्ष समारोह के समापन कार्यक्रम में प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि गीता प्रेस विश्व का ऐसा इकलौता प्रिंटिंग प्रेस है, जो सिर्फ संस्था नहीं, बल्कि जीवंत आस्था है। मानव मूल्यों को बचाने के लिए गीता प्रेस जैसी संस्थाएं जन्म लेती हैं। गीता प्रेस का कार्यालय करोड़ों-करोड़ लोगों के लिए किसी मंदिर से कम नहीं है। इसके नाम और काम में भी गीता है। जहां गीता है वहां साक्षात कृष्ण भी हैं। वहां करुणा है, ज्ञान का बोध भी है, हां विज्ञान का शोध भी है। यहां सब वासुदेवमय है। यहां की किताबों ने घर-घर में संस्कृति और विरासत पहुंचाई।

प्रधानमन्त्री मोदी ने कहा कि सावन का पवित्र माह, इंद्र देव का आशीर्वाद, संतों की कर्मस्थली, ये गोरखपुर की गीता प्रेस। जब संतों का आशीर्वाद फलीभूत होता है, तब ऐसे संस्थान बनते हैं। मोहनदास करमचन्द गांधी भी गीताप्रेस आये थे। मुझे बताया गया कि गांधी जी ने सुझाव दिया था कि कल्याण पत्रिका के लिए विज्ञापन न लिया जाए। आज भी कल्याण पत्रिका गांधी जी के सुझाव का पालन कर रही है। गीता प्रेस से करोड़ों पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।

ये पुस्तकें लागत से कम मूल्य पर बिकती हैं। घर-घर पहुंचाई जाती है। आप कल्पना करिए कितने ही लोगों को इन किताबों ने कितने समर्पित नागरिकों का निर्माण किया। मैं ऐसे लोगों को प्रणाम करता हूं। गीता प्रेस भारत को जोड़ती है। देशभर में इसकी 20 शाखाएं हैं। देशभर के हर रेलवे स्टेशन पर गीता प्रेस का स्टॉल देखने को मिलता है। 1600 प्रकाशन होते हैं। गीता प्रेस एक भारत श्रेष्ठ भारत को प्रतिनिधित्व देती है।

सत्य है कि पुरातन भारतीय साहित्य के अध्येताओं के लिए गीता प्रेस गोरखपुर के परिचय की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि गीता प्रेस गोरखपुर अपनी भारतीय आध्‍यात्‍म‍िक ग्रन्थों के प्रकाशन के लिए विश्‍वविख्‍यात है। रामायण, पुराण, उपनिषद आदि ग्रन्थों के साथ ही अनेक दुलर्भ ग्रन्थों और प्राचीन भारत के ऋषियों -मुनियों की कथाओं के संरक्षक व प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर हैं। हनुमान प्रसाद पोद्दार द्वारा स्थापित की गई गीता प्रेस के द्वारा हिन्दू धर्म से सम्बन्धित साहित्य दशकों से प्रकाशित किये जाने के कारण इसकी पहुंच हर सनातन परिवार में बन चुकी है। यह प्रतिवर्ष तमाम धार्मिक पुस्तकों तथा अन्यान्य ग्रन्थों को प्रकाशित करती है। इस प्रकाशन की कल्याण नामक वार्षिक विशेषांक व मासिक पत्रिका काफी लोकप्रिय है।

सन 1926 से लगातार प्रकाशित हो रहे कल्याण पत्रिका के आद्य संपादक नित्यलीलालीन भाईजी श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार थे, जो स्वयं कई दुर्लभ ग्रन्थों के प्रकाशक, भाष्यकार व टिप्पणीकार रहे हैं। गीता प्रेस की पुस्तकें पढ़-पढ़ कर बड़े हुए प्रतिष्ठित व्यक्तियों का कहना है कि सनातन हिन्दू धर्म की गीता प्रेस ने जो सेवा की है, वह अतुलनीय है। आज अगर सामान्य जन श्रीमद्भगवदगीता , श्रीरामचरित मानस सहित, पुराण, उपनिषद आदि अनेक दिव्य शास्त्र और ग्रन्थ बहुत कम मूल्य पर प्राप्त करके उनका अध्ययन कर रहे हैं, तो इसका श्रेय गीताप्रेस को ही है। कलकत्ता के गोविन्द भवन से संचालित होने वाली गीता प्रेस के प्रबंधक, संचालक कहीं से कोई चन्दा या दान नहीं लेते। उन्हें कागज़ पर कोई अनुदान अर्थात सब्सिडी प्राप्त नहीं होती, उन्हें किसी प्रकार का कोई सरकारी सहायता भी प्राप्त नहीं होता, उस पर हैरतनाक बात यह है कि गीता प्रेस की पुस्तकों में कोई विज्ञापन भी छापी नहीं जाती। उनमें किसी जीवित व्यक्ति का चित्र नहीं छापा जाता।

गीता प्रेस की पुस्तकें लागत मूल्य से साठ प्रतिशत तक कम मूल्य पर बेची जाती हैं। आज के स्वार्थी युग में क्या संसार में त्याग और तपस्या का ऐसा कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिल सकता है। लेकिन स्वाधीन भारत में सर्वाधिक समय तक यहाँ के बहुसंख्यकों को बेवकूफ बनाकर सत्ता में सतासीन रहने वाली पार्टी कांग्रेस ने आज इस संस्था को को 2021 का गांधी शांति पुरस्कार देने का विरोध कर अपने भारत, भारतीय और भारतीयता के विरोधी चरित्र को पुनः उजागर कर दिया है। गीताप्रेस के द्वारा प्रकाशित ग्रन्थों का पाठ व प्रवचन कर-कर के अनेक बाबा और महाराज करोड़पति बन चुके है। गीता प्रेस द्वारा किया गया धर्म का प्रचार किसी संत महात्मा, किसी मंदिर ट्रस्ट से कम नहीं है।

उल्लेखनीय है कि 1923 में अपने स्थापना काल से अब तक एक दिन के लिए भी बंद नहीं होने वाले प्रतिष्ठान गीताप्रेस में हिन्दी और संस्कृत समेत 15 भाषाओं में धार्मिक ग्रन्थों का प्रकाशन होता है। गीता प्रेस गोरखपुर के प्रारंभ होने की कहानी भी कम रोचक नहीं है। राजस्थान के चुरू में सन् 1885 में खूबचन्द्र अग्रवाल के परिवार में जन्मे जयदयाल गोयन्दका ने गीता तथा अन्य धार्मिक ग्रन्थों का गहन अध्ययन करने के बाद अपना जीवन धर्म-प्रचार में लगाने का संकल्प लिया, और कोलकाता में गोविन्द-भवन की स्थापना की। गीता-प्रचार अभियान के दौरान जब उन्होंने देखा कि गीता की शुद्ध प्रति मिलनी मुश्किल व दूभर है, तो उन्होंने गीता को शुद्ध भाषा में प्रकाशित करने के उद्देश्य से सन 1923 में गोरखपुर में गीता प्रेस की स्थापना की।

उन्हीं दिनों भाई जी के संज्ञा से विभूषित उनके मौसेरे भाई हनुमान प्रसाद पोद्दार उनके सम्पर्क में आए तथा वे गीता प्रेस के लिए समर्पित हो गए। उन्होंने गीता तत्व विवेचनी नाम से गीता का भाष्य किया। उनके द्वारा रचित तत्व चिन्तामणि, प्रेम भक्ति प्रकाश, मनुष्य जीवन की सफलता, परम शांति का मार्ग, ज्ञान योग, प्रेम योग का तत्व, परम-साधन, परमार्थ पत्रावली आदि पुस्तकों ने धार्मिक-साहित्य की अभिवृद्धि में अभूतपूर्व योगदान किया है।

उल्लेखनीय है कि गीता प्रेस ने 100 वर्ष की शानदार यात्रा तय की है। आज देश स्वाधीनता के 75 वर्ष पूरे होने का अमृत उत्सव मना रहा है। विगत 75 वर्षों में आज तक कोई प्रधानमंत्री गीता प्रेस में नहीं आया। ऐसी स्थिति में 2024 लोकसभा चुनाव के नजरिए से प्रधानमन्त्री का गोरखपुर दौरा अहम माना जा रहा है। कहा जा रहा है कि उनका यह दौरा पूर्वांचल की 26 लोकसभा सीटों पर भी असर डालने वाला है। समारोह में राज्‍यपाल आनंदीबेन पटेल और मुख्यमंत्री योगी की उपस्थिति में प्रधानमन्त्री का गीता प्रेस पर एक डाक्‍यूमेंट्री चलचित्र और गीता प्रेस में रखी पहली छपाई मशीन को देखना हिन्दुत्व के मुद्दे को सिर्फ प्रभावी बनाने के लिए है। घर-घर में अपनी जगह बना चुकी गीता प्रेस के जरिए प्रधानमन्त्री पर सॉफ्ट हिन्दुत्व का संदेश देने के आक्षेप कसे जा रहे हैं। लेकिन यह भी सत्य है कि गीता प्रेस की हर घर तक पहुंच है।

शायद ही कोई हिन्दू घर हो, जहां गीता प्रेस की पुस्तकें न हों। अथवा वह गीता प्रेस का नाम न जानता हो। गीता प्रेस भारतीय शास्त्रों, विशेषकर हिन्दू धर्म ग्रन्थों को प्रकाशित करने वाला संसार का सबसे बड़ा प्रकाशन संस्था अर्थात पब्लिशिंग हाउस है। यह अब तक लगभग 93 करोड़ धार्मिक पुस्तकें प्रकाशित कर चुका है। उसमें 16.21 करोड़ श्रीमद्भागवत गीता, 11.73 करोड़ तुलसी दास कृत रामचरितमानस, 2.58 करोड़ पुराण और उपनिषद शामिल हैं। 2022 में 100 करोड़ रुपए टर्नओवर रहा। यही कारण है कि गीता प्रेस को हाल ही में 2021 का गांधी शांति पुरस्कार देने की घोषणा हुई है।

परन्तु देश में अपने प्रत्येक नीतियों, योजनाओं पर विपक्ष के विरोध का सामना करने वाली केंद्र सरकार की यह घोषणा भी विपक्ष के विरोध के केंद्र में आने से बच नहीं सकी। गीता प्रेस को 2021 का गांधी शांति पुरस्कार देने पर कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा था- केंद्र सरकार का यह फैसला सावरकर और नाथूराम गोडसे को सम्मान देने जैसा है। इन तमाम विवादों के बीच प्रधानमन्त्री मोदी का कोई बयान सामने नहीं आया। ऐसे में स्वयं प्रधानमन्त्री मोदी का गीता प्रेस पहुंचकर गीता प्रेस के प्रति सम्मान प्रदर्शित करना विपक्ष को करारा जवाब दिए जाने के रूप में देखा जा रहा है।

Tags :

By अशोक 'प्रवृद्ध'

सनातन धर्मं और वैद-पुराण ग्रंथों के गंभीर अध्ययनकर्ता और लेखक। धर्मं-कर्म, तीज-त्यौहार, लोकपरंपराओं पर लिखने की धुन में नया इंडिया में लगातार बहुत लेखन।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें