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उम्मीदों के साये में निराश कांग्रेसी

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और नफ़रत की जगह मोहब्बत की दुकान की शुरूआत कर कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव में क्या हासिल कर पाती है यह अलग बात है पर कल तक जो कांग्रेसी कांग्रेसी चोला उतार भगवा चोला पहनने को बेताब थे कम से कम उन्हें धैर्य मिला है। दिल्ली के कई कथित वरिष्ठ कांग्रेसी जो भाजपा में शामिल होने का मन बना चुके थे अब वही नेता अपनी चुनावी ज़मीन तैयार करने में लगे हैं। ये अलग बात रही कि कांग्रेस से मुंहु मोड़ते इन नेताओं में कुछ को ईडी,और सीबीआई डर था तो किसी को दंगा-फ़साद में लिपट जाने का डर था। नो डाउट कि 2014 और 2019 की तुलना में भाजपा का ग्राफ़ नीचे आया है। या यूँ समझिए कि इस दौरान जो लोग पहले घर पर आते ही यह कहते थे कि टीवी अमन करो मोदी आ रहे हैं या वे जो मोदी की चाय पर चर्चा सुनने के लिए काम धंधा छोड़ कुर्सी पर आ बैठते थे वे आज या तो चुप बैठ गए हैं या फिर उनकी संख्या काफ़ी कम हो चली है।

और तो और इस फ़ेहरिस्त में ऐसे भाजपाई भी हैं जो पार्टी में अपनी मौजूदगी दिखाने के लिए कार्यक्रम में जाते हैं और फ़ोटो सोशल मीडिया पर डाल कर ज़िम्मेदारी से मुक्त हो लेते हैं। अब भला कोई यह कहे कि पार्टी को इसकी जानकारी नहीं होती तो इसे भ्रम ही मानिए । हालातों का जायज़ा लेने के बाद ही संघ और भाजपा ने 2024 के चुनाव के लिए अपनी राजनीति,रणनीति बदली है। इसी के चलते पार्टी के चंद नेताओं की एक टीम ने वाकायदा एक लिस्ट तैयार की है जिसमें कांग्रेस सहित दूसरी पार्टियों के निराश और ऐसे नेताओं के नाम शामिल हैं हैं या तो सत्ता सुख पाने की ज़रूरत महसूस हो रही है या फिर उन्हें अंदर हो जाने की आशंका है। दूसरी तरफ़ भाजपा भी इस बार ऐसे नेताओं को ही टिकट देने के मूड में बताई जा रही है जो जीत दर्ज कर सकें। इसी के चलते जहां पार्टी में नेताओं की रद्दोबदल शुरू की है वहीं दूसरी तरफ़ चुनावी मैदान में राज्यसभा सदस्यों और नए चेहरों को उतारने की क़वायद की जानी है ताकि पार्टी से वोटरों नाराज़गी दूर की जा सके। चर्चा तो है कि पार्टी इस चुनाव में तक़रीबन 150 मौजूदा नेताओं के टिकटों में फेरबदल करेगी।

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By ​अनिल चतुर्वेदी

जनसत्ता में रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव। नया इंडिया में राजधानी दिल्ली और राजनीति पर नियमित लेखन

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