भले ही पंजाब में ड्रग्स-चिट्टे के कई आंतरिक कारण हो या यह स्थानीय पुलिस-राजनीतिज्ञों की मिलीभगत से भी फलफूल रहा हो, परंतु इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि इसे बढ़ावा देने में सीमापार बैठी देशविरोधी शक्तियों का बड़ा हाथ है। पंजाब के डीजीपी गौरव यादव के अनुसार, “पंजाब में नशे की तस्करी के पीछे पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) का हाथ है। भारत में नार्को-आतंकवाद के पीछे यह मुख्य भूमिका में है।“
पंजाब में नशे का संकट किसी से छिपा नहीं है। हाल ही में राज्य पुलिस ने नशीले पदार्थों की तस्करी करने वाले एक बड़े गिरोह का भंडाफोड़ किया है और 9,000 ड्रग्स तस्करों को चिन्हित करने का दावा किया है। यह कार्रवाई तब हुई है, जब बीते दिनों सूबे में नशीली दवाओं की ओवरडोज से 14 लोगों की मौत हो गई। इस घटनाक्रम पर घिरते ही मुख्यमंत्री भगवंत मान ने नशा तस्करों से सांठगांठ को खत्म करने की रणनीति के तहत सूबे के दस हजार पुलिसकर्मियों के तबादले के आदेश दे दिए। मुख्यमंत्री मान का कहना है कि पुलिस दोस्ती और रिश्तेदारियों से ऊपर उठकर काम करें।
बकौल मुख्यमंत्री, अगर किसी भी पुलिसकर्मी की नशा तस्करी में या तस्करों से भागीदारी मिली, तो उसे तुरंत प्रभाव से बर्खास्त कर दिया जाएगा। उन्होंने पंजाब पुलिस के महानिदेशक (डीजीपी) से कहा कि जिस भी व्यक्ति को नशा बेचते पकड़ा जाए, एक हफ्ते के अंदर उसकी संपत्ति जब्त कर ली जाए और यदि इसे लेकर कानून में कोई संशोधन की जरूरत हो, तो वह भी बताएं। निसंदेह, मान सरकार का यह कदम अभूतपूर्व और स्वागतयोग्य है। परंतु क्या इसमें ईमानदारी बरती जाएगी? क्या तबादले से नशे का संकट दूर हो जाएगा?
पंजाब के युवाओं में नशा कितना भीतर घुस चुका है, यह सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो के साथ इस बात से भी साफ है कि पिछले कुछ वर्षों से यहां ड्रग्स बरामदगी में 560 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। 2017 में जहां 170 किलोग्राम हेरोइन की खेप पकड़ी गई थी, तो वही 2023 में यह आंकड़ा 1,350 किलोग्राम तक पहुंच चुका था। इस साल लगभग 500 किलोग्राम नशीले पदार्थ जब्त किए जा चुके हैं।
पंजाब में नशे से हालिया 14 मौतें कोई नई घटना नहीं है। पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय को गत वर्ष दिसंबर में सौंपी रिपोर्ट में राज्य पुलिस विभाग ने पंजाब में नशीली दवाओं से संबंधित मौतों के बारे में चौंकाने वाले आंकड़े पेश किए थे। इसके अनुसार, पंजाब में 2020-23 तक नशीली पदार्थों के ओवरडोज के कारण 266 मौतें दर्ज की गईं थी। इसमें बठिंडा सबसे अधिक 38, तरनतारन 30, फिरोजपुर 19, अमृतसर (ग्रामीण) 17, लुधियाना पुलिस कमिश्नरेट 14, फरीदकोट 13, मोगा 17, मुक्तसर 10 और फाज़िल्का 14 में मामले सामने आए थे। नशे से मौत के आंकड़ों को जांचने से पता चलता है कि कुछ क्षेत्रों में संकट गंभीर होता जा रहा है। उदाहरणस्वरूप, मोगा में 2022-23 में 15 मौत के मामले दर्ज किए गए थे, जो कुछ साल पहले तक सिर्फ 2 थे। इसी तरह बठिंडा में 2022-23 में नशे से 23 मौतें दर्ज हुई, जो इससे दो वर्ष पहले 15 थी।
पंजाब में नशे का असर उसके पड़ोसी राज्य हरियाणा में दिखने लगा है। यहां 2013-19 के बीच लगभग 15 लाख नशे के मामले सामने आए थे, जिसमें 90 प्रतिशत हिस्सेदारी पंजाब सीमा से सटे आठ जिलों— सिरसा, फतेहाबाद, पंचकूला, अंबाला, यमुनानगर, कुरुक्षेत्र, कैथल और हिसार की थी। इसमें भी सिरसा सबसे ऊपर है। पिछले साल ही हरियाणा पुलिस ने नशीले पदार्थ संबंधित एनडीपीएस कानून के तहत 3757 मामले दर्ज करते हुए 5350 लोगों को गिरफ्तार किया था। तब इनके पास से जांचकर्ताओं को कुल 33 हजार कि.ग्रा. से अधिक पोस्त की भूसी, लगभग पांच हजार कि.ग्रा. गांजा, 590 कि.ग्रा. चरस आदि बरामद हुआ था।
भले ही पंजाब में ड्रग्स-चिट्टे के कई आंतरिक कारण हो या यह स्थानीय पुलिस-राजनीतिज्ञों की मिलीभगत से भी फलफूल रहा हो, परंतु इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि इसे बढ़ावा देने में सीमापार बैठी देशविरोधी शक्तियों का बड़ा हाथ है। पंजाब के डीजीपी गौरव यादव के अनुसार, “पंजाब में नशे की तस्करी के पीछे पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) का हाथ है। भारत में नार्को-आतंकवाद के पीछे यह मुख्य भूमिका में है।“ उन्होंने कहा, “वर्ष 2019 से अब तक सीमापार से 906 ड्रोन भेजे जा चुके हैं। इस साल भी अब तक पंजाब पुलिस ने बीएसएफ के साथ मिलकर 247 ड्रोन में से 101 को मार गिराया है।“
वर्तमान पंजाब नशे के साथ जिस अलगाववाद और मजहबी कट्टरता से जकड़ा हुआ है, उन सभी के तार प्रत्यक्ष-परोक्ष तौर पर पाकिस्तान से जुड़े है। इस इस्लामी देश का मकसद— वर्ष 1971 के युद्ध में भारत से मिली शर्मनाक हार का बदला लेना और कश्मीर के अतिरिक्त पंजाब को अस्त-व्यस्त करके भारत की वैश्विक स्थिति को कमज़ोर करना है। यह सब उसके वैचारिक चिंतन, जोकि ‘काफिर-कुफ्र’ से प्रेरित है— उसके मुताबिक भी है। पाकिस्तानी सत्ता-अधिष्ठान, इसके लिए अपने पूर्व राष्ट्रपति और तानाशाह जनरल मुहम्मद ज़िया-उल-हक़ की भारत-विरोधी सैन्य-नीति “भारत को हज़ार ज़ख्म देना” को आगे बढ़ा रहा है। भारतीय पंजाब के संबंध में वर्ष 2004 में आईएसआई के पूर्व महानिदेशक हामिद गुल ने कहा था, “पंजाब को अस्थिर रखना, पाकिस्तानी फौज के लिए बिना किसी लागत के एक अतिरिक्त डिवीजन रखने के बराबर है।”
यह ठीक है कि 1980 के दशक में कांग्रेस के तत्कालीन नेतृत्व ने अपने सियासी विरोधियों पर बढ़त पाने के लिए ब्रितानी सह-उत्पाद खालिस्तान नैरेटिव को हवा दी। परंतु पाकिस्तान के साथ कनाडा, ब्रिटेन और अमेरिका में मौजूद अलगाववादी आज भी इसके सबसे बड़े पोषक बने हुए है। इसका दुष्परिणाम भारत— सैन्य ऑपरेशन ब्लूस्टार के साथ सैकड़ों मासूमों सहित प्रधानमंत्री रहते श्रीमती इंदिरा गांधी (1984) और पंजाब के बतौर मुख्यमंत्री सरदार बेअंत सिंह (1995) की निर्मम हत्याओं के रूप में झेल चुका है।
तब सुपरकॉप कंवरपाल सिंह गिल को पंजाब में अलगाववाद के खात्मे के लिए खुली छूट दी गई थी, जिसमें उन्हें ‘ऑपरेशन ब्लैक थंडर’ के तहत हजारों उग्रवादियों को समाप्त करने में सफल मिली थी। कुछ उसी प्रकार की आक्रमक नीति पंजाब में नशे के सौदागरों को जड़ से मिटाने के लिए अपनानी होगी।
पंजाब के वर्तमान डीजीपी गौरव यादव कहते हैं कि पुलिस महकमे में कुछ मुलाजिम ‘काले भेड़’ हैं, जिनपर कार्रवाई की जा रही है। क्या इस पृष्ठभूमि में पंजाब पुलिस की विशेष टास्क फोर्स, सूबे को नशा-मुक्त बनाने में सफल होगी?