पिछले एक साल से भारतीय कुश्ती चित होने की कगार पर खड़ी है। फेडरेशन अध्यक्ष ब्रज भूषण शरण सिंह पर लगे यौन शौषण के आरोपों और तमाम उठा पटक के बाद भी हालात सुधारे नहीं सुधर पा रहे। हालांकि फेडरेशन के चुनाव हो गए हैं लेकिन अब चुने गए पदाधिकारियों और खेल मंत्रालय के बीच तनातनी चल रही है। अनुराग ठाकुर और संजय सिंह नाम के दो पहलवान ताल ठोक कर एक दूसरे को चुनौती देने उतर चुके हैं।
अर्थात कुश्ती पर धोबी पछाड़ का खतरा मंडरा रहा है। हालांकि भारतीय ओलंपिक संघ द्वारा तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया लेकिन विवाद है की बढ़ता जा रहा है, जिसके चलते कुश्ती में असमंजस का माहौल बना हुआ है। इसमें दो राय नहीं कि महिला पहलवानों के आक्रोश और धरना प्रदर्शन के बाद से बालिकाओं के अखाड़े प्रभावित हुए हैं तो दूसरी तरफ प्रमुख अखाड़ों में भी पहले सा उत्साह देखने को नहीं मिलता।
दिल्ली, महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब, कर्नाटक, यूपी आदि प्रदेशों के छोटे बड़े अखाड़े यथावत चल रहे हैं लेकिन पहलवानों और गुरु खलीफाओं में एक अलग प्रकार का डर समा गया है। कुछ अखाड़ों के कोच और पहलवान कह रहे हैं कि भले ही कुश्ती फेडरेशन के बड़े लड़ते भिड़ते रहें लेकिन कुश्ती पर कोई असर नहीं पड़नेवाला।
दूसरी तरफ एक वर्ग है जिसे महिला कुश्ती का भविष्य खतरे में नजर आता है। कारण, देश की चैंपियन महिला पहलवानों का राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर विलाप और विरोध प्रदर्शन गंभीर विषय माना जा रहा है। एक सर्वे से पता चला है कि कुश्ती की लोकप्रियता का ग्राफ गिर रहा है। बहुत से माता पिता अपने बच्चों को अन्य खेलों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।
बेशक, कुछ अखाड़ों पर विवाद का असर साफ नजर आ रहा है। महिला पहलवानों की संख्या घटी है। लेकिन सकारात्मक सोच रखने वाले गुरु खलीफा बदलाव को क्षणिक मानते हैं। उनके अनुसार कुश्ती की लोकप्रियता पर कभी विराम नहीं लग सकता। अधिकांश कुश्ती पंडितों की राय में खेल मंत्रालय, कुश्ती फेडरेशन और आईओए को यह नहीं भूलना चाहिए कि घर की लड़ाई में कुश्ती पर संकट गहरा सकता है और जल्दी ही कोई हल नहीं निकला तो विश्व कुश्ती संस्था भारतीय फेडरेशन पर प्रतिबंध भी लगा सकती है। बेहतर होगा फेडरेशन अध्यक्ष संजय सिंह खेल मंत्री को चैलेंज न करें।