‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ का एक डायलॉग काफ़ी हिट हुआ था जिसमें वो हर किसी को न घबराने की सलाह देते हुए कहते थे ‘टेंशन लेने का नहीं – देने का’।… एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करने वाली 26 वर्षीय चार्टर्ड अकाउंटेंट ऐना मात्र चार महीने की नौकरी में यह दबाव इतना बढ़ गया कि इस दबाव ने ऐना की जान ले ली।… हर युवा व वरिष्ठ कर्मचारी को ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ फ़िल्म से सीख लेते हुए ‘टेंशन न लेने’ की आदत डाल लेनी चाहिए।
संजय दत्त की बहुचर्चित फ़िल्म ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ का एक डायलॉग काफ़ी हिट हुआ था जिसमें वो हर किसी को न घबराने की सलाह देते हुए कहते थे ‘टेंशन लेने का नहीं – देने का’। परंतु शायद उस फ़िल्म में दिये गये संदेश को कुछ लोग गंभीरता से नहीं ले सके। इसीलिए वे मामूली से तनाव को इतना बढ़ा लेते हैं कि वह कभी-कभी जानलेवा भी साबित हो जाता है। इस फ़िल्म ने कठिन परिस्थितियों को गंभीरता से न लेने की सलाह दी। परंतु आजकल के ‘वर्क प्रेशर’ व प्रतिस्पर्धा के चलते हर दूसरा व्यक्ति तनाव में दिखाई देता है। इस तनाव का असर न सिर्फ़ उसकी सेहत पर पढ़ता है बल्कि उसके पारिवारिक जीवन में भी तनाव पैदा हो जाता है।
पिछले दिनों सोशल मीडिया पर पुणे की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करने वाली 26 वर्षीय चार्टर्ड अकाउंटेंट ऐना सेबेस्टियन की माँ की चिट्ठी काफ़ी चर्चा में रही। भारत में इस कंपनी के अध्यक्ष को लिखे अपने पत्र में ऐना की माँ ने इस बात का उल्लेख किया कि किस तरह उनकी पुत्री पर कंपनी ने काम का दबाव बनाया हुआ था। मात्र चार महीने की नौकरी में यह दबाव इतना बढ़ गया कि इस दबाव ने ऐना की जान ले ली। इस दबाव का एक स्पष्ट उदाहरण तब भी दिखा जब ऐना के अंतिम संस्कार में कंपनी में काम करने वाले सहकर्मी भी नहीं पहुँचे। जैसे ही ऐना की माँ का यह पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, वैसे ही इस बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम कर चुके पूर्व कर्मचारियों ने अपने भयानक अनुभव भी साझा किए। जैसे ही मामले ने तूल पकड़ा वैसे ही कंपनी की ओर से ‘वर्क प्रेशर’ का खंडन किया गया। इसके साथ ही सरकार ने भी इस मामले में जाँच बैठा दी है।
ऐना की मृत्यु ने आज के कॉर्पोरेट जगत में कई सवाल खड़े कर दिये हैं। इस दुखद घटना के बाद कई तरह की प्रतिक्रियाएँ भी आ रही हैं। दरअसल ‘वर्क प्रेशर’ के बढ़ते हुए तनाव के कारण दुनिया भर से ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं जहां प्रतिस्पर्धा की दौड़ में आगे रहने के चलते कई लोगों को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा है। चीन में एक व्यक्ति ने लगातार 104 दिनों तक बिना किसी छुट्टी के काम किया और अंततः शरीर के कई अंगों की विफलता के कारण उसकी मौत हुई। वहाँ की अदालत ने उस व्यक्ति की कंपनी को उसकी मौत का 20 प्रतिशत तक ज़िम्मेदार ठहराया। वहीं अमरीका के एक बैंक कर्मचारी की मृत्यु का कारण भी उसके काम का दबाव ही बना। ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जहां कर्मचारियों से अधिक काम करवाने के चलते ऐसे हादसे हो रहे हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आँकड़ों के अनुसार दुनिया भर में काम के दबाव व तनाव के चलते प्रतिवर्ष क़रीब 7.50 लाख लोगों की मृत्यु होती है। ऐसा इसलिए होता है कि अधिक काम करने का सीधा प्रभाव आपकी सेहत पर पड़ता है। काम का तनाव लेने से मनुष्य में ह्रदय रोग, डायबिटीज़ व स्ट्रोक जैसी घातक बीमारियों की संभावना बढ़ जाती है। इतना ही नहीं आज के सूचना प्रौद्योगिकी के दौर में जब हम घंटों कंप्यूटर के सामने बैठ कर काम करते हैं तो हमारे जोड़ो में जकड़न, कमर में दर्द, सरदर्द, आँखों में थकान, जैसे प्रारंभिक लक्षण भी दिखाई देते हैं। तनाव के चलते हमारे शरीर में ऐसे रसायन पैदा हो जाते हैं जो रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल को भी बढ़ा देते हैं। इसलिए हम चिड़चिड़े भी हो जाते हैं।
तनाव के चलते जब गाड़ी चलाकर हम अपने दफ़्तर से घर या घर से दफ़्तर जा रहे होते हैं तो ऐसे में दुर्घटना होने की संभावना भी बढ़ जाती है। मोबाइल फ़ोन और ईमेल के चलते हम हर समय अपने काम से जुड़े रहते हैं इसलिए हमें काम से आराम नहीं मिल पाता। ऐसे तनाव का सीधा अनुभव आपको उस समय होता होगा जब आपके मोबाइल पर आपके बॉस का फ़ोन बजता होगा। आप यदि अपने घर पर हों और परिवार के साथ समय बिता रहे हों, तभी आपके बॉस का फ़ोन बजे तो आपके चेहरे पर एक अजीब से तनाव की झलक मिल जाती है। ऐसे में पारिवारिक सुख को भी झटका लगता है।
जानकारों के अनुसार, सप्ताह में 55 घंटे या उससे अधिक काम करने वालों में तनाव बढ़ने की संभावना अधिक होती है। यह तनाव अन्य बीमारियों को बढ़ावा देता है। परंतु इसका मतलब यह नहीं है कि आपको कामयाब होने के लिए कम मेहनत करनी चाहिए। बिना मेहनत के किसी को कामयाबी नहीं मिलती। इसलिए हमें परिश्रम और अतिश्रम के बीच एक को चुनना चाहिए। परिश्रम किया जाए तो एक सीमा के तहत ही किया जाए। आपको अपने शरीर की क्षमता अनुसार ही काम करना चाहिए। समय-समय पर अपने स्वास्थ्य की जाँच भी करवाते रहना चाहिए। इसके साथ ही नियमित रूप से तनाव-मुक्ति के कई साधन, जैसे योगा, ध्यान, भजन, मनोरंजन आदि का भी सहारा लेना चाहिए।
वहीं अगर इम्प्लॉयर की बात करें तो उन्हें भी अपने लक्ष्य की पूर्ति के चलते कर्मचारियों पर दबाव बनाना पड़ता है। परंतु यह दबाव भी एक सीमा तक ही दिया जाए। आज हमारे समाज को काम और आराम के बीच एक संतुलन बनाने की ज़रूरत है। वरना ऐना सेबेस्टियन जैसे कई और होनहार कर्मचारियों को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ेगा। आजकल के युवा भी जल्द कामयाबी पाने के चक्कर में काम और आराम में संतुलन नहीं बना रहे हैं। इसका सीधा असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। इसलिए हर युवा व वरिष्ठ कर्मचारी को ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ फ़िल्म से सीख लेते हुए ‘टेंशन न लेने’ की आदत डाल लेनी चाहिए।