यूनिवर्स का उद्देश्य दर्शकों के वास्तविक सरोकारों पर आधारित कथ्य और मनोरंजन देना नहीं है। ये तो दर्शकों को एक फ़र्ज़ी और उत्तेजक दुनिया में ले जाने के लिए गढ़े गए हैं। कमाई बढ़ाने के एक और तरीके के तौर पर। जिस तरह का मनोरंजन हमारे बड़े फिल्मकार पहले से चला रहे थे, उसी को इन यूनिवर्स ने एक संगठित शक्ल और दिशा दी है। दूसरी ओर, दर्शकों को कुछ नया, कुछ रचनात्मक या उनके सुख-दुख से जुड़ा मनोरंजन देने वाली फ़िल्मों का हश्र देखिए।
परदे से उलझती ज़िंदगी
सलमान खान ‘राधे’, ‘अंतिम’ और ‘किसी का भाई किसी की जान’ का ग़म भुला सकें, इसके लिए ‘टाइगर-3’ का चलना बहुत ज़रूरी है। और केवल चलने से काम नहीं चलेगा। उसे ज़्यादा चलना होगा, क्योंकि सलमान की और यशराज फ़िल्म्स के स्पाई यूनिवर्स की फ़िल्म जब तक बॉक्स ऑफ़िस पर कई सौ करोड़ नहीं कमा ले, तब तक हिट नहीं कहलाती। इस यूनिवर्स की पहली फ़िल्म थी ‘एक था टाइगर’ जो 2012 में आई थी। इस फ़िल्म के अंत में इसके सीक्वल का संकेत दिया गया था जो कि पांच साल बाद 2017 में ‘टाइगर ज़िंदा है’ की शक्ल में आया। उसके भी छह साल बाद उसकी तीसरी कड़ी ‘टाइगर-3’ आई है। इस बीच इस यूनिवर्स की ‘वॉर’ और ‘पठान’ भी आ चुकी हैं। ये पांचों फ़िल्में ज़बरदस्त एक्शन से ओतप्रोत हैं, बल्कि जासूसी से ज्यादा ये एक्शन फिल्में लगती हैं। इतनी कि आदित्य चोपड़ा चाहते तो इसे स्पाई की बजाय एक्शन यूनिवर्स का नाम भी दे सकते थे, लेकिन एक्शन पर तो कुछ दूसरे फ़िल्मकार भी लगातार काम कर रहे हैं। उनसे अलग और विशिष्ट दिखने के लिए स्पाई यूनिवर्स नाम ज़्यादा कारगर पाया गया।
एक ज़माने में जासूसी उपन्यासकार ओम प्रकाश शर्मा के नायकों जगन और जगत की अलग-अलग सीरीज़ छपती थीं, लेकिन कुछ उपन्यासों में वे एक साथ भी आए। बाद में ऐसा सुरेंद्र मोहन पाठक ने भी किया, जब उनका पत्रकार-जासूस सुनील कुमार चक्रवर्ती एक उपन्यास में सुरेंद्र सिंह सोहल उर्फ़ विमल से टकरा गया जो कि एक नेगेटिव हीरो है और जिसकी सीरीज़ अलग चलती है। उसी तरह स्पाई यूनिवर्स के हीरो लोग भी एक-दूसरे की सीरीज़ में आते-जाते रहते हैं। मसलन ‘पठान’ में शाहरुख खान की मदद के लिए ‘टाइगर’ सलमान भी पहुंच गए। पहुंचे ही नहीं, उन्होंने ‘पठान’ से वादा भी लिया कि जरूरत पड़ने पर तू भी मेरी मदद को आएगा। उस वादे को ‘टाइगर-3’ में शाहरुख एक कैमियो के जरिये पूरा करेंगे। ये कैमियो का चक्कर छोड़, शाहरुख और सलमान को पूरी तरह साथ-साथ देखने की दर्शकों की आकांक्षा ‘टाइगर वर्सेज़ पठान’ में पूरी होगी। और उसके बाद कभी शाहरुख या सलमान ‘वॉर’ सीरीज़ की किसी कड़ी में भी दिख सकते हैं जैसे कि ऋतिक रोशन ‘टाइगर-3’ में दिखने वाले हैं। इसी तरह ‘पठान’ या ‘टाइगर’ की किसी कहानी में टाइगर श्रॉफ़ को भी यह मौका मिल सकता है।
कलाकारों की तरह इस यूनिवर्स के निर्देशक भी इधर से उधर आते-जाते रहते हैं। पहली ‘वॉर’ के निर्देशक सिद्धार्थ आनंद थे जिनसे ‘पठान’ भी निर्देशित कराई गई जबकि ‘वॉर-2’ में अयान मुखर्जी निर्देशन दे रहे हैं। ‘एक था टाइगर’ के निर्देशक कबीर खान थे, ‘टाइगर ज़िंदा है’ में उनकी जगह अली अब्बास ज़फर आ गए और अब ‘टाइगर-3’ के निर्देशक हैं मनीष शर्मा। ‘बैंड बाजा बारात’, ‘दम लगा के हइसा’ और ‘सुई-धागा’ जैसी फ़िल्मों की पृष्ठभूमि वाले मनीष शर्मा पहली बार स्पाई यूनिवर्स का हिस्सा बन रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि इस यूनिवर्स की अब तक की पांचों फ़िल्मों को खुद यशराज फ़िल्म्स के मालिक आदित्य चोपड़ा ने लिखा है। मतलब, स्पाई यूनिवर्स में आदित्य केवल पैसा ही नहीं लगा रहे, बल्कि उसके मूल रचयिता भी वही हैं। और दूसरी भाषाओं में भी रिलीज़ करके या फिर नए कलाकारों के जरिए वे इसे फैलाते जा रहे हैं। जैसे ‘टाइगर-3’ में इमरान हाशमी भी हैं जबकि ‘वॉर-2’ में जूनियर एनटीआर और कियारा आडवाणी भी होंगे।
इस यूनिवर्स में अभी हम नायकों को ही एक-दूसरे की सीरीज़ में हिस्सेदारी करते देख रहे हैं। भविष्य में इसकी हीरोइनें भी अपनी-अपनी सीरीज़ की सीमाएं लांघ सकती हैं। हॉलीवुड के मार्वल यूनिवर्स की तर्ज पर रचे गए स्पाई यूनिवर्स में इस तरह की अनेक संभावनाएं हैं। आदित्य चोपड़ा की फ़िल्मकारी का एक पहलू यह भी है कि ‘टाइगर’ सीरीज़ में हीरो सलमान खान एक रॉ एजेंट हैं जबकि हीरोइन कटरीना कैफ़ ज़ोया नाम की पाकिस्तानी एजेंट हैं। इसी तरह ‘पठान’ में दीपिका पादुकोण यानी रूबीना भी एक एजेंट हैं और यह साफ़ नहीं है कि वह असल में किस देश से हैं। संभव है कि स्पाई यूनिवर्स हमें कभी आगे चल कर बताए कि वह भी पाकिस्तानी एजेंट हैं। ध्यान रहे, हीरोइन को पाकिस्तानी दिखाना उसी रूमानियत का एक्सटेंशन है जो यशराज फ़िल्म्स की ख़ासियत रही है।
बहरहाल, ग्यारह साल पहले जब पहली ‘टाइगर’ आई थी तब किसी ने नहीं सोचा था कि यह भारतीय सिनेमा के सबसे महंगे यूनिवर्स का प्रारंभ है। मगर हमारी फ़िल्मों का यह कोई अकेला यूनिवर्स नहीं है। ‘ज़रा हट के ज़रा बच के’ वाले दिनेश विजन भी अपना ‘हॉरर कॉमेडी यूनिवर्स’ चला रहे हैं जिसमें उनके पार्टनर हैं ‘स्त्री’ और ‘भेड़िया’ के निर्देशक अमर कौशिक। फ़िलहाल इस यूनिवर्स का प्रभाव क्षेत्र सीमित नज़र आता है। शायद इसीलिए दिनेश विजन एक और यूनिवर्स शुरू करने जा रहे हैं। इसका नाम अरैबियन नाइट्स यूनिवर्स होगा। इसमें उनकी निर्माण कंपनी मैडॉक फ़िल्म्स ‘अलीबाबा और चालीस चोर’ भी बनाएगी और अलादीन की कहानियों के अलावा सिंदबाद की कहानियां भी फ़िल्माएगी।
रोहित शेट्टी का कॉप यूनिवर्स भी अपने पूरे निखार पर है और क्या पता, कभी यह स्पाई यूनिवर्स को टक्कर देता दिखाई दे। सन 2011 में अजय देवगन को लेकर बनी ‘सिंघम’ से इसकी शुरूआत हुई थी। उसके बाद 2014 में ‘सिंघम रिटर्न्स’ आई। फिर रणवीर सिंह के साथ ‘सिम्बा’ 2018 में और अक्षय कुमार को लेकर ‘सूर्यवंशी’ 2021 में बनी। अब ‘सिंघम’ की तीसरी कड़ी ‘सिंघम अगेन’ बन रही है जिसमें ‘सिम्बा’ वाला रणवीर सिंह का पात्र संग्राम भालेराव भी होगा। यानी ये जो अजय देवगन, अक्षय कुमार और रणवीर सिंह के पात्र हैं, वे एक-दूसरे की सीरीज़ में आते-जाते रह सकते हैं। ‘सिंघम अगेन’ में अवनि कामत यानी करीना कपूर तो लौट ही रही हैं, पहली बार इस यूनिवर्स में दीपिका पादुकोण भी दिखेंगी। वे भी एक पुलिस अफ़सर बनेंगी। रोहित शेट्टी ने हाल में अपने कॉप यूनिवर्स की सबसे क्रूर और हिंसक पुलिस अफ़सर के तौर पर उनके पात्र का परिचय कराया। इसका अर्थ यह हुआ कि हमारे कुछ कलाकार एक से ज़्यादा यूनिवर्स के हिस्से हो सकते हैं।
रोहित शेट्टी हों या आदित्य चोपड़ा, दोनों ने ही अपने यूनिवर्स तब घोषित किए जब उनसे संबंधित दो-तीन फ़िल्में रिलीज़ हो चुकी थीं। लेकिन फ़िल्मों के मामले में हमेशा आगे रहा दक्षिण इस काम में भी तेज निकला। वहां के फ़िल्मकार लोकेश कनगराज ने 2019 में कार्ति को लेकर ‘कैथी’ बनाई तो उसके साथ ही अपने एलसीयू यानी लोकेश सिनेमैटिक यूनिवर्स का ऐलान भी कर दिया। एक ही सीरीज़ में कुछ फ़िल्में बनाना उनके दिमाग में पहले से था। यह ड्रग्स के खिलाफ लड़ाई की सीरीज़ है जिसकी दूसरी कड़ी ‘विक्रम’ पिछले साल आई जिसमें कमल हासन, विजय सेतुपति और फ़हाद फ़ासिल थे जबकि तीसरी कड़ी ‘लियो’ डेढ़ महीने पहले रिलीज़ हुई है और अभी भी थिएटरों में है। इसमें मुख्य भूमिका विजय ने की है। लोकेश पहले ही जता चुके हैं कि इस सीरीज़ में एक ऐसा पड़ाव आएगा जब इस यूनिवर्स के सभी प्रमुख पात्र एक जगह जुटेंगे। मगर उससे पहले लोकेश ‘कैथी-2’ और ‘विक्रम-2’ बनाएंगे। सूर्या जैसे कई और बड़े कलाकार इस यूनिवर्स में शामिल होने वाले हैं।
हो सकता है कि जूनियर एनटीआर की तरह भविष्य में सूर्या या पृथ्वीराज सुकुमारन या दक्षिण के कोई और बड़े कलाकार यशराज के स्पाई यूनिवर्स में आ जाएं। मगर क्या सूर्या ऐसे किसी भी यूनिवर्स में ‘जय भीम’ जैसी बेहतरीन फ़िल्म दे पाएंगे। बिलकुल नहीं, क्योंकि इन यूनिवर्स का उद्देश्य दर्शकों के वास्तविक सरोकारों पर आधारित कथ्य और मनोरंजन देना नहीं है। ये तो दर्शकों को एक फ़र्ज़ी और उत्तेजक दुनिया में ले जाने के लिए गढ़े गए हैं। कमाई बढ़ाने के एक और तरीके के तौर पर। जिस तरह का मनोरंजन हमारे बड़े फिल्मकार पहले से चला रहे थे, उसी को इन यूनिवर्स ने एक संगठित शक्ल और दिशा दी है।
दूसरी ओर, दर्शकों को कुछ नया, कुछ रचनात्मक या उनके सुख-दुख से जुड़ा मनोरंजन देने वाली फ़िल्मों का हश्र देखिए। ‘12वीं फ़ेल’ ने फिर भी अच्छा प्रदर्शन किया है, लेकिन कुछ समय पहले हम ‘भीड़’ और ‘अफ़वाह’ जैसी ज़रूरी फ़िल्मों को बुरी तरह पिटते देख चुके हैं। उनके बाद ‘घूमर’ का कुछ नहीं बना। और अभी-अभी हमने ‘सजनी शिंदे का वायरल वीडियो’, ‘शास्त्री विरुद्ध शास्त्री’, ‘मंडली’ और ‘थ्री ऑफ़ अस’ को मुंह की खाते देखा। ये सब आम लोगों और आम ज़िंदगी की कहानियां थीं। दर्शकों की अपनी दुनिया की कहानियां। मगर बड़ी और महंगी फ़िल्में इन छोटी फ़िल्मों को पर्याप्त थिएटर तक नहीं मिलने देतीं। वे आपको आपकी दुनिया में नहीं रहने देना चाहतीं। वहां से निकाल कर आपको अपने यूनिवर्स में ले जाना चाहती हैं।