‘स्कैम 2003’ की स्क्रिप्ट लिखने में भी संजय सिंह से मदद ली गई है और निर्देशन तुषार हीरानंदानी का है जिन्होंने ‘सांड की आंख’ निर्देशित की थी।सना अमीन शेख, मुकेश तिवारी, भरत जाधव और शाद रंधावा को इस सीरीज़ से कुछ पहचान मिलेगी। ग़ज़ल गायक तलत अज़ीज़ को भी फायदा होगा जो अब अभिनय को गंभीरता से लेते दिखते हैं। मगर सबसे ज़्यादा लाभ तेल्गी बने गगन देव रियार को होगा। जितनी सहजता से उन्होंने इसे निभाया है उसके लिए हमारे जाने-माने कलाकारों को भी बहुत मेहनत करनी पड़ती।
परदे से उलझती ज़िंदगी
ख़्वाबों की कीमत क्या होनी चाहिए? ‘मेरे हिसाब से ख़्वाबों की कीमत ज़िंदगी से भी बढ़ कर होती है।‘ इस सवाल और इस जवाब के साथ हंसल मेहता की नई वेब सीरीज़ ‘स्कैम 2003: द तेल्गी स्टोरी’ की शुरूआत होती है जो बताती है कि हमारे सिस्टम में खामियों के अनेक सिस्टम छुपे हुए हैं। अगर कोई अपने लालच में सबको हिस्सेदार बनाने को तैयार हो तो वह बड़े आराम से इन सिस्टमों को भेद सकता है। कहना तो यह चाहिए कि ये छुपे हुए सिस्टम ऐसे लोगों को पनाह देने को तैयार बैठे हैं। इसीलिए घोटालों को रोकना बहुत मुश्किल है। छोटे या बड़े स्तर पर वे चलते ही रहते हैं, क्योंकि वे हमारे हालात, हमारे सपनों और हमारी तिकड़मों का नतीजा हैं। और इनमें से कुछ भी बदलने वाला नहीं है।
अब्दुल करीम तेल्गी की गरीबी और उसके ख्वाबों ने उसे बहुत सारी तिकड़में सिखा दीं। उसने सबको हिस्सा दिया और रास्ते बनते चले गए। वह बीकॉम था, मगर हम जानते हैं कि डिग्रियां मिलने का मतलब रोजगार मिलना नहीं होता। इसलिए महाराष्ट्र सीमा के करीब कर्नाटक के खानापुर में अब्दुल करीम तेल्गी ट्रेनों में फल बेचता था। एक खरीदार को उसने जिस कागज़ में संतरे दिए वह उसकी डिग्री की फोटोकॉपी था। मामला भांप कर उस व्यक्ति ने तेल्गी को मुंबई बुलाया। तेल्गी ने वहां उसके गेस्ट हाउस में काम किया। फिर सऊदी अरब जाकर कुछ कमाई की। लौटा तो फिर काम का टोटा था। उसने लोगों को विदेश भेजने के लिए फर्जी दस्तावेज बनाने शुरू किए और पकड़ा गया।
हवालात में एक नया दोस्त बना जिसके साथ उसने स्टांप पेपर छापने शुरू किए। यह एक मामूली शुरूआत थी जो धीरे-धीरे इतनी बड़ी हो गई कि सरकार खलबला उठी। इसे तीस हजार करोड़ का घोटाला बताया जाता है जिसमें अनेक छोटे-बड़े अफसर और नेता लोग, सब हिस्सेदार थे। मकोका के तहत 2007 में तेल्गी को तीस साल की सज़ा सुनाई गई और 202 करोड़ का जुर्माना हुआ। जेल में उसका स्वास्थ्य बिगड़ता चला गया और 2017 में मुंबई के एक अस्पताल में उसकी मौत हुई। कहते हैं, उसे एड्स था।
कई न्यूज चैनलों में रहे और उन दिनों क्राइम रिपोर्टिंग करने वाले संजय सिंह ने ‘तेल्गी स्कैम: रिपोर्टर की डायरी’ नामक किताब लिखी थी। यह सीरीज़ उसी पर आधारित है। हंसल मेहता की ‘स्कैम 1992’ भी सुचेता दलाल और देबाशीष बसु की लिखी ‘द स्कैम: हू वन, हू लॉस्ट, हू गॉट अवे’ पर और फिर ‘स्कूप’ भी पूर्व पत्रकार जिग्ना वोरा की अपने जेल के संस्मरणों पर लिखी ‘बिहाइंड बार्स इन बायकुला’ पर बनी थी। पिछले साल आई उनकी फिल्म ‘फ़राज़’ भी ढाका के डिप्लोमेटिक एरिया के एक रेस्तरां पर हुए आतंकी हमले पर आधारित थी। साफ है कि हंसल को घोटालों, अपराध और आतंक की वास्तविक कहानियां ज्यादा आकर्षित करती हैं। बहरहाल, ‘स्कैम 2003’ की स्क्रिप्ट लिखने में भी संजय सिंह से मदद ली गई है और निर्देशन तुषार हीरानंदानी का है जिन्होंने ‘सांड की आंख’ निर्देशित की थी।
सना अमीन शेख, मुकेश तिवारी, भरत जाधव और शाद रंधावा को इस सीरीज़ से कुछ पहचान मिलेगी। ग़ज़ल गायक तलत अज़ीज़ को भी फायदा होगा जो अब अभिनय को गंभीरता से लेते दिखते हैं। मगर सबसे ज़्यादा लाभ तेल्गी बने गगन देव रियार को होगा। जितनी सहजता से उन्होंने इसे निभाया है उसके लिए हमारे जाने-माने कलाकारों को भी बहुत मेहनत करनी पड़ती। गगन लंबे समय से नाटकों में लेखन, निर्देशन और अभिनय करते रहे हैं। उन्होंने अभिषेक चौबे की फिल्म ‘सोनचिरिया’ और मीरा नायर की ‘अ सूटेबल बॉय’ और फिर ‘मॉनसून वेडिंग’ में भी काम किया था। लेकिन उन्हें लोग जानते नहीं थे। अब सब जानेंगे। उनकी चर्चा ‘स्कैम 1992’ के प्रतीक गांधी से भी ज्यादा होने वाली है क्योंकि इस सीरीज़ के आधे एपीसोड सोनी लिव बाद में रिलीज़ करेगा।
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