आदिपुरुष’का हल्ला बहुत हुआ। मगर फिल्म फिल्म दर्शकों में वह सम्मान नहीं जीत सकती जिसकी आकांक्षा में इसे बनाया गया है। बल्कि पहले ही दिन दर्शकों ने जो प्रतिक्रिया दी उससे बॉक्स आफ़िस पर भी इसकी उम्मीदें थोड़ी सिकुड़ गई हैं। वीएफ़एक्स का आधिक्य इस छह सौ करोड़ से ऊपर की फिल्म को किसी वीडियो गेम जैसे अहसास में बदल देता है। गीत बेहतर हैं, पर विजुअल बेहद मामूली हैं और संवाद तो इस अजब फिल्म की सबसे बड़ी समस्या हैं। संभव है, दक्षिण की भाषाओं में संवाद कुछ गरिमामय हों, लेकिन हिंदी में इतने घटिया हैं कि आप सोचने पर मजबूर हो जाएं कि मनोज मुंतशिर ने आखिर ऐसा क्यों किया।
परदे से उलझती ज़िंदगी
एसएस गिल प्रसार भारती के पहले सीईओ थे। उससे पहले वे मंडल आयोग के सचिव रहे थे। उन्हें 1982 में दिल्ली में हुए उन एशियन गेम्स का सेक्रेटरी जनरल बनाया गया था जिनके साथ देश में टीवी यानी दूरदर्शन रंगीन हुआ। 1985 में रिटायरमेंट के समय गिल साहब सूचना और प्रसारण सचिव थे। उन्होंने ही ‘हम लोग’ के साथ टीवी सीरियलों की शुरूआत की थी। फिर उन्होंने ही बड़े निर्माताओं को बुला कर दूरदर्शन के लिए धारावाहिक बनाने का प्रस्ताव दिया था। ‘रामायण’, ‘महाभारत’ और ‘डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया’ जैसे सीरियल उनकी इसी पहल की देन थे।
रामायण पर और भी सीरियल बने हैं, लेकिन याद रामानंद सागर की ‘रामायण’ को ही किया जाता है। उसमें काम करके अरुण गोविल और दीपिका चिखलिया जैसे हमेशा के लिए राम और सीता बन गए। परदे पर इन दोनों की निभाई किसी और भूमिका का जिक्र आपको कहीं सुनाई नहीं देगा। गोविल कहते हैं कि कई लोग तो उन्हें पहचानते ही उनके पांव छूने लगते हैं। इस सम्मान के संकोच में उन्हें सिगरेट छोड़नी पड़ी। दर्शकों के इसी सम्मान ने दीपिका चिखलिया को पश्चिमी ढंग के कपड़े पहनने या ग्लैमरस भूमिकाएं करने से रोका। यहां तक कि अपने पति के साथ भी रोमांटिक अंदाज़ के कुछ फोटो उन्होंने सोशल मीडिया पर डाले तो कई दर्शकों ने कहा कि यह सब आपको शोभा नहीं देता।
‘आदिपुरुष’ जिस स्तर पर और जिस बड़े बजट में बनाई गई उससे लग रहा था कि भविष्य में प्रभास और कृति सैनन के लिए भी ऐसी बंदिशें पैदा हो सकती हैं। मगर फिल्म रिलीज़ होने के बाद लगता है कि वह ख़तरा टल गया है। यह फिल्म दर्शकों में वह सम्मान नहीं जीत सकती जिसकी आकांक्षा में इसे बनाया गया है। बल्कि पहले ही दिन दर्शकों ने जो प्रतिक्रिया दी उससे बॉक्स आफ़िस पर भी इसकी उम्मीदें थोड़ी सिकुड़ गई हैं। रामायण के कुछ अंशों को लेकर इसकी कहानी बुनी गई है। इसमें राम को राघव, सीता को जानकी, लक्ष्मण को शेष, रावण को लंकेश और हनुमान को बजरंग कहा गया है। मगर दूसरे नाम रखने से क्या तात्पर्य है, कोई समझ नहीं पाता। इन पात्रों की पारंपरिक छवि भी इस फिल्म में नहीं है। और दर्शक उनकी नई छवि से तादात्म्य नहीं बिठा पाते।
प्रभास और कृति के अलावा लंकेश बने सैफ, बजरंग की भूमिका में मराठी अभिनेता देवदत्त नागे और शेष के पात्र में सनी सिंह सहित कई कलाकारों ने उनसे जो कहा गया उसमें खासी मेहनत की है। लेकिन ओम राउत का निर्देशन, फिल्म का संपादन और स्पेशल इफ़ेक्ट्स आदि सब भटके हुए और निरुद्देश्य लगते हैं। अंतिम युद्ध इतना खींचा गया है कि यूक्रेन और रूस का युद्ध लगने लगे और आप किसी भी तरह उसके खात्मे की कामना करने लगें। वीएफ़एक्स का आधिक्य इस छह सौ करोड़ से ऊपर की फिल्म को किसी वीडियो गेम जैसे अहसास में बदल देता है। गीत बेहतर हैं, पर विजुअल बेहद मामूली हैं और संवाद तो इस अजब फिल्म की सबसे बड़ी समस्या हैं।
संभव है, दक्षिण की भाषाओं में संवाद कुछ गरिमामय हों, लेकिन हिंदी में इतने घटिया हैं कि आप सोचने पर मजबूर हो जाएं कि मनोज मुंतशिर ने आखिर ऐसा क्यों किया। 1917 की ‘लंका दहन’ के बाद रामायण पर अपने यहां अड़तालीस फिल्में बन चुकी हैं। उनमें से शायद ही किसी ने दर्शकों को इतना निराश किया होगा जितना यह फिल्म करती है। ‘आदिपुरुष’ रामायण को आधुनिक बनाने का प्रयास कहा जा रहा है, मगर यह एक मर्यादा हीन आधुनिकता है।
हिंदू सेना नाम के एक संगठन ने दिल्ली हाईकोर्ट में ‘आदिपुरुष’ के खिलाफ याचिका दायर की है। उसकी शिकायत है कि इस फिल्म ने रामायण, भगवान राम और हमारी संस्कृति का मज़ाक बना दिया। नेपाल में इस फिल्म का इस बात पर विरोध हुआ कि इसमें जानकी को भारत की बेटी कहा गया है। काठमांडू के मेयर बालेन शाह ने इस संवाद को हटाने की मांग की और वहां इस फिल्म का प्रदर्शन रोक दिया गया। फिल्म के मुख्य निर्माता टी सीरीज़ के भूषण कुमार ने यह मांग मान ली और यह संवाद हटा दिया गया। मगर उसके बाद मांग की गई कि केवल नेपाल नहीं, बाकी जगह भी यह संवाद हटाया जाए। दूसरी तरफ ऐसे भी लोग हैं जो इस फिल्म की आलोचना सुनने को बिलकुल तैयार नहीं।
हैदराबाद के एक थिएटर के बाहर एक दर्शक को कुछ लोगों ने इसलिए पीट डाला कि वह मीडिया के सामने फिल्म की और प्रभास की भूमिका की खामियां बता रहा था। अब देखिए, स्थिति कितनी दिलचस्प है। कहा जाता है कि ईश्वर के रूप अनेक हैं और कोई नहीं जानता कि कब कहां किस रूप में भगवान मिल जाएं। लेकिन ईश्वर की भक्ति, श्रद्धा और श्रद्धालुओं के भी असंख्य रूप हैं। जिन्होंने यह फिल्म बनाई वे राम के भक्त हैं। यह जताने के लिए उन्होंने हर थिएटर में हनुमान जी के लिए एक सीट रिजर्व कर दी। इसी प्रकार वे जो फिल्म को अदालत में चुनौती दे रहे हैं वे भी राम के भक्त हैं और वे भी जिन्होंने नेपाल में इसकी रिलीज़ में रोड़े अटकाए। हैदराबाद के उस थिएटर में जो व्यक्ति पिट रहा था वह कोई राम के प्रति अश्रद्धा के कारण फिल्म में खोट नहीं निकाल रहा था। वह तो फिल्म की परिपूर्णता चाहता था। और जो उसे पीट रहे थे, वे सब भी इस फिल्म, प्रभास और राम की श्रद्धा से प्रेरित थे।
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