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भारत-पाकिस्तान और सनी देओल

सनी देओल आजकल खूब ट्रोल हो रहे हैं। उन्हें काफ़ी भला-बुरा कहा जा रहा है। असल में, अपनी आगामी फिल्म ‘गदर 2’ के ट्रेलर लॉन्च के समय सनी देओल ने कहा कि भारत और पाकिस्तान के लोगों में एक-दूसरे के लिए नफ़रत की वजह सियासत है। उनका कहना था कि दोनों देशों की जनता नहीं चाहती कि हम आपस में लड़ें। आखिर दोनों तरफ के लोग निकले तो एक ही मिट्टी से हैं। सनी ने कहा कि झगड़े नहीं होने चाहिए। दोनों तरफ उतना ही प्यार है। और ये तो सियासी खेल है जो नफरतें पैदा करता है।

इस बयान से साफ़ है कि सनी सांसद ज़रूर बन गए, पर राजनीति नहीं सीख पाए। दिवंगत विनोद खन्ना के बाद सनी देओल ने ही भाजपा के लिए गुरदासपुर की लोकसभा सीट कांग्रेस से छीनी थी। लेकिन राजनीति में उनका मन नहीं लगता। इसलिए वे राजनीति से, यहां तक कि अपने चुनाव क्षेत्र से भी दूर ही रहते हैं। उनके राजनीतिक भविष्य को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं चलती रहती हैं। जिन सुनील जाखड़ को उन्होंने पिछले लोकसभा चुनाव में हराया था वे अब भाजपा में आ चुके हैं और प्रदेश अध्यक्ष हैं। ट्रेलर लॉन्च के अवसर पर सनी ने जो कुछ कहा, वह उनके लिए राजनीतिक तौर पर फिट नहीं बैठता। भारत और पाकिस्तान की जनता में कोई झगड़ा नहीं चाहता, ये वे कैसी बहकी-बहकी बातें कर रहे हैं!

यह कह कि आप फिल्म में भी यही देखेंगे, सनी देओल ने ‘गदर 2’ के निर्माता-निर्देशक अनिल शर्मा के लिए भी परेशानी खड़ी कर दी है। अपनी फिल्म के पक्ष में माहौल बनाने की खातिर अनिल ने हाल ही में कुछ थिएटरों पर ‘गदर: एक प्रेम कथा’ यानी इसका पहला भाग दो दशक बाद फिर से रिलीज़ किया था। दूसरे भाग में उनका बेटा उत्कर्ष भी है और उन्हें उम्मीद है कि यह फिल्म बेटे के करियर को गति देगी। लेकिन सनी के बयान के बाद लोग इस फ़िल्म के बायकॉट का अभियान चला रहे हैं।

बहरहाल, एक दिलचस्प बात यह है कि इसी हफ्ते ‘रॉकी और रानी की प्रेम कहानी’ के जरिये लंबे समय बाद बड़े परदे पर धर्मेंद्र दिखाई पड़े हैं। अब उनके बेटे सनी देओल की महत्वाकांक्षी फिल्म ‘गदर 2’ रिलीज़ हो रही है जबकि कुछ ही दिन में सनी के बेटे राजवीर की फ़िल्म ‘दोनों’ भी आने वाली है। राजवीर देओल के साथ यह पलोमा ठकेरिया की भी पहली फिल्म है जो पूनम ढिल्लों की बेटी हैं। राजश्री प्रोडक्शंस के बैनर की इस फिल्म में सूरज बड़जात्या के बेटे अविनाश बड़जात्या ने निर्देशन दिया है। यानी ताराचंद बड़जात्या के स्थापित किए इस संस्थान में तीसरी पीढ़ी काम संभालने जा रही है। ताराचंद बड़जात्या तो अब नहीं हैं, मगर सूरज को अपने बेटे की फिल्म का बेसब्री से इंतज़ार है। अब ज़रा धर्मेंद्र की सोचिए। उनके मूल और हेमा मालिनी वाले परिवार को मिला कर इतने लोग तो परदे पर आ ही चुके हैं कि वे अनिल और बोनी कपूर के खानदान से मुकाबला कर सकें। यह भी याद करने की कोशिश करिए कि किन्हीं पिता, पुत्र और पौत्र तीनों की फिल्में लगभग एक साथ रिलीज़ हुई हों, ऐसा पहले कब हुआ है। एक ही फिल्म में तीनों हों, यह तो कई बार हो चुका। लेकिन तीनों की अलग-अलग फिल्में एक महीने के वक्फ़े में आएं, यह एक दुर्लभ स्थित है।

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By सुशील कुमार सिंह

वरिष्ठ पत्रकार। जनसत्ता, हिंदी इंडिया टूडे आदि के लंबे पत्रकारिता अनुभव के बाद फिलहाल एक साप्ताहित पत्रिका का संपादन और लेखन।

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