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आवारा पशु की बढ़ती समस्या

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दुनिया भर में केवल नीदरलैंड ही एक ऐसा देश है जहां पर आपको आवारा कुत्ते नहीं मिलेंगे। यहाँ की सरकार द्वारा चलाए गये एक विशेष कार्यक्रम के तहत वहाँ के हर कुत्ते को सरकार द्वारा इकट्ठा कर उसकी जनसंख्या नियंत्रण करने वाले टीके लगाए जाते हैं। रेबीज़ जैसी बीमारियों से बचाव का टीकाकरण किया जाता है। नीदरलैंड सरकार ने एक अनूठा नियम लागू किया।

बीते सप्ताह एक दुर्घटना का पता चला जो कि दिल्ली से सटे गुरुग्राम की थी। गुरुग्राम में जिस तरह प्रॉपर्टी के दाम आसमान छू रहे हैं उससे यह बात तो तय है कि अधिक से अधिक लोग इस उपनगर का रुख़ कर रहे हैं। परंतु यदि वहाँ का प्रशासन नागरिकों को अहम सुविधाएँ प्रदान करने में नाकाम है तो फिर इतनी महँगी प्रॉपर्टी को ख़रीदना कितना जायज़ है। बरसात में गुरुग्राम के दिल दहलाने वाले दृश्य हर किसी ने देखे होंगे।

इसी तरह एक और समस्या है जो पूरे देश में फैली हुई है। फिर वो चाहे दिल्ली एनसीआर हो, मुंबई हो या केरल का छोटा शहर, आवारा पशु की समस्या एक ऐसी समस्या है जिससे निदान पाना सरकार की एक बड़ी ज़िम्मेदारी व प्राथमिकता होनी चाहिए।

कुछ दिन पहले हमारे एक परिचित, गुरुग्राम में अपने मित्रों के घर से दावत के बाद देर रात नियंत्रित गति से अपनी गाड़ी से दक्षिण दिल्ली के अपने घर आ रहे थे। तभी अचानक एक काले रंग की गाय से उनकी गाड़ी टकरा गई। टक्कर गाड़ी के कई काँच टूटे और गाड़ी को काफ़ी नुक़सान हुआ। उस सुनसान सड़क पर स्ट्रीट लाइट के न होने से यह टक्कर हुई। जैसे-तैसे करके यह श्रीमान अपने घर पहुँचे।

अगले दिन जब यह क़िस्सा साझा हुआ तो हर किसी के मन में यही सवाल उठा कि सरकारें आवारा पशुओं के लिए कुछ करती क्यों नहीं? अंदाज़ा लगाइए कि यदि इनकी जगह कोई दुपहिया वाहन वाला होता तो उसकी क्या स्थिति होती। आए दिन हम यह सुनते हैं कि आवारा पशु, फिर वो चाहे गाय – बैल हों या आवारा कुत्ते, आम नागरिकों को कितना नुक़सान पहुँचाते हैं। परंतु सरकार चाहे राज्य की हो या केंद्र की, इस समस्या पर आँखें मूँद कर बैठी है।

ऐसा नहीं है कि सरकार को इस समस्या के बारे में पता नहीं है या इसका उपाय नहीं कर सकती। आपको याद होगा कि पिछले वर्ष जी20 शिखर सम्मेलन की तैयारी में देश की राजधानी दिल्ली को दुल्हन की तरह सजाया गया। केंद्र और दिल्ली की सरकार ने इस सम्मेलन को कामयाब करने की दृष्टि से हर वो कदम उठाए जिससे कि इसमें शिरकत करने वाले विदेशी मेहमानों को किसी भी तरह की असुविधा न हो। इसके साथ ही दिल्ली के कुछ इलाक़ों से आवारा पशुओं को हटाने के आदेश भी जारी हुए थे, जिसे पशु प्रेमियों के विरोध के चलते रद्द किया गया। आदेश का विरोध कर, पशु प्रेमियों ने इसे आवारा पशुओं के हित में बताया है। परंतु यहाँ सवाल उठता है कि इस समस्या से छुटकारा कैसे मिले?

शहरों में आवारा कुत्तों व गौवंश की समस्या हर दिन बढ़ती जा रही है। आम जनता को हर गली मोहल्ले में आवारा कुत्तों व गौवंश से खुद को बचा कर निकलना पड़ता है। यदि इन पशुओं से बचने के लिए हम इन्हें लाठी, डंडा या पत्थर का डर दिखाते हैं तो पशु प्रेमी इसका विरोध करते हैं। कुछ जगहों पर तो ये लोग नागरिकों को पुलिस की कार्यवाही की धमकी तक दे देते हैं। परंतु क्या कभी किसी पशु प्रेमी ने इस समस्या का हल खोजने की कोशिश की है? क्या कारण है कि आवारा पशुओं की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है?

जी-20 शिखर सम्मेलन से पहले जब दिल्ली नगर निगम ने यह आदेश दिया कि आवारा पशुओं को कुछ इलाक़ों से हटा कर किसी सुरक्षित स्थान पर भेजा जाएगा, तो लगा कि यह एक अच्छी पहल है। जिस तरह देश भर में कई सामाजिक संस्थाएँ गौवंश की सुरक्षा कि दृष्टि से गौशाला चलाती हैं। उसी तरह क्यों न आवारा कुत्तों के लिए भी ‘डॉग शेल्टर’ जैसी कोई योजना बनाई जाए जहां आवारा कुत्तों को एक सुरक्षित माहौल में रखा जाए। यहाँ पर इन बेज़ुबानों के इलाज की भी उचित व्यवस्था हो। जिन भी पशु प्रेमियों को इन बेज़ुबानों के प्रति अपना वात्सल्य दिखाने की कामना हो वे समय निकाल कर वहाँ नियमित रूप से जाएँ और न सिर्फ़ उनको ख़ाना खिलाए बल्कि उनके साथ समय भी बिताएँ। ऐसा करने से न तो किसी पशु पर अत्याचार होगा और न ही ऐसे आवारा पशुओं से किसी आम नागरिक को कोई ख़तरा होगा।

दुनिया भर में केवल नीदरलैंड ही एक ऐसा देश है जहां पर आपको आवारा कुत्ते नहीं मिलेंगे। यहाँ की सरकार द्वारा चलाए गये एक विशेष कार्यक्रम के तहत वहाँ के हर कुत्ते को सरकार द्वारा इकट्ठा कर उसकी जनसंख्या नियंत्रण करने वाले टीके लगाए जाते हैं। रेबीज़ जैसी बीमारियों से बचाव का टीकाकरण किया जाता है। नीदरलैंड सरकार ने एक अनूठा नियम लागू किया। किसी भी पालतू पशु की दुकान से ख़रीदे गये कुत्तों पर वहाँ की सरकार भारी मात्रा में टैक्स लगती है। वहीं दूसरी ओर यदि कोई भी नागरिक इन बेघर पशुओं को गोद लेकर अपनाता है तो उसे आयकर में छूट मिलती है।

इस नियम के लागू होते ही लोगों ने अधिक से अधिक बेघर कुत्तों को अपनाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे नीदरलैंड की सड़कों व मोहल्लों से आवारा कुत्तों की संख्या घटते-घटते बिलकुल शून्य हो गई। दुनिया भर के पशु प्रेमी संगठनों ने इस कार्यक्रम को सबसे सुरक्षित और असरदार माना है। इस कार्यक्रम से न सिर्फ़ आवारा कुत्तों की जनसंख्या पर रोक लगती है बल्कि आम नागरिकों को भी इस समस्या से निजाद मिलता है।

मामला केरल का हो, मुंबई का हो, दिल्ली एनसीआर का या और कहीं का हो, देश भर से ऐसी खबरें आती हैं जहां कभी किसी बच्चे को, किसी डिलीवरी करने वाले को या किसी बुजुर्ग को इन आवारा पशुओं का शिकार होना पड़ता है। अगर कोई अपने बचाव में कोई कदम उठाए तो पशु प्रेमी या गौ रक्षक बवाल खड़ा कर देते हैं। यदि हर शहर के पशु प्रेमी संगठित हो कर भारत सरकार को नीदरलैंड जैसा मॉडल अपनाने सुझाव दें तो वो दिन दूर नहीं जब हमारा देश भी आवारा पशुओं से मुक्त हो जाएगा।

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By रजनीश कपूर

दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्यूरो के प्रबंधकीय संपादक। नयाइंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर।

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