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चीन में मुस्लिम, ईसाई, तिब्बती सभी का चीनीकरण!

रमजान से पहले चीन के शीर्ष वामपंथी नेता मा शिंगरुई ने इसका संकेत देते हुए कहा है, ‘शिनजियांग में मुसलमानों का चीनीकरण अपरिहार्य हो गया है’। यह पहली बार नहीं है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने इस्लाम को लेकर ऐसी बात कही हो। इससे पहले चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी इस्लाम के साथ बौद्ध और ईसाइयत के भी चीनीकरण पर बल दिया था।

चीन की साम्राज्यवादी मानसिकता ने इस्लाम को भी नहीं बख्शा। वहां वर्षों से मुस्लिम, जोकि चीन के कुल आबादी का डेढ़ प्रतिशत भी नहीं है— उनकी मजहबी-सांस्कृतिक पहचान को राजकीय अभियान चलाकर समाप्त कर रहा है। औपनिवेशिक चिंतन से ग्रस्त चीन अपने भीतर और बाहर किसी अन्य सभ्यता को बर्दाश्त नहीं कर सकता।

चीन के शिनजियांग में उइगर मुस्लिम अपनी मजहबी मान्यताओं के प्रति कट्टरता के साथ प्रतिबद्ध है, इस कारण उनकी चीनी पहचान गौण रहती है। इसलिए चीन अपने अधिनायकवादी दर्शन से प्रभावित होकर चीनी मुस्लिमों के खिलाफ राजकीय संघर्ष को और धार देने की तैयारी कर रहा है। रमजान से पहले चीन के शीर्ष वामपंथी नेता मा शिंगरुई ने इसका संकेत देते हुए कहा है, ‘शिनजियांग में मुसलमानों का चीनीकरण अपरिहार्य हो गया है’।

यह पहली बार नहीं है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने इस्लाम को लेकर ऐसी बात कही हो। इससे पहले चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी इस्लाम के साथ बौद्ध और ईसाइयत के भी चीनीकरण पर बल दिया था। हालिया घटनाक्रम को यदि सरल शब्दों में समझा जाए, तो इसका अर्थ यह हुआ कि चीन जिस प्रकार पिछले कुछ वर्षों से मजहबी कट्टरता-विरोधी अभियान के अंतर्गत अपने मुस्लिम नागरिकों का दमन कर रहा है, उसे वह और भी भयावह रूप देगा।

चीन में यह सब एकाएक नहीं हुआ है। जब से शी जिनपिंग ने चीनी राष्ट्रपति की कमान संभाली है, तब से वहां इस्लाम के चीनीकरण और आतंकवाद-अलगाववाद-विरोधी उपक्रम के नाम पर विशेषकर वर्ष 2017 से उइगर मुसलमानों पर अत्याचार बढ़ गए है। गत वर्ष 26 अगस्त को शी ने शिनजियांग का दौरा किया था। तब उन्होंने स्थानीय प्रशासन को “कड़ी मेहनत से हासिल की गई सामाजिक स्थिरता” को बनाए रखने और “अवैध मजहबी गतिविधियों” को नियंत्रित करने के प्रयासों को और अधिक मजबूती देने के साथ चीनी राष्ट्र, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और “चीनी विशेषताओं वाले समाजवाद” को सशक्त करने हेतु “सांस्कृतिक पहचान की समस्या” को हल करने का निर्देश दिया था।

अर्थात् अगस्त 2023 तक शिनजियांग में जो कुछ हो चुका था, उससे चीनी राष्ट्रपति शीन जिनपिंग पूरी तरह ‘संतुष्ट’ नहीं थे। इसके बाद अब बीजिंग में चीन के वार्षिक संसदीय सत्र के अवसर पर क्षेत्रीय पार्टी प्रमुख मा जिंगरुई ने 7 मार्च 2024 को प्रेसवार्ता करते कहा, “हर कोई जानता है कि शिनजियांग में इस्लाम का चीनीकरण करने की जरूरत है, यह एक अपरिहार्य प्रवृत्ति है।”

विभिन्न अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों के अनुसार, यहां वर्ष 2017 से लगभग दो-तिहाई अर्थात् 16,000 मस्जिदों को ढहाया या फिर उन्हें क्षतिग्रस्त करके उनका स्वरूप को बदला जा चुका है। शिनजियांग में उइगर मुस्लिमों को उनकी मजहबी मान्याताओं जैसे दाढ़ी बढ़ाने, कुरान पढ़ने, इस्लामी नाम रखने, हिजाब/बुर्का/जालीदार टोपी पहनने आदि पर पूर्ण प्रतिबंध है। एक रिपोर्ट के अनुसार, 10 से 20 लाख उइगर मुस्लिमों और अन्य अल्पसंख्यक समुदाय को शिनजियांग में स्थापित शिविरों में जबरन रखा गया है, जहां उन्हें अपना मजहब छोड़ने, मार्क्सवाद का अध्ययन करने और कारखानों में काम करने के लिए प्रताड़ित किया जाता है।

संयुक्त राष्ट्र को शिनजियांग क्षेत्र में जबरन चिकित्सा उपचार, जबरन श्रम, यौन-लिंग आधारित हिंसा, प्रजनन अधिकारों के उल्लंघन और पूजास्थलों के विनाश के सबूत मिल चुके है। परंतु इन आरोपों नकारता है। शिनजियांग के वरिष्ठ सांसद वांग मिंगशान के अनुसार, “हमने आतंकवादी गतिविधियों पर कड़ी कार्रवाई की है, आतंकवाद के विभिन्न रूपों से निपटने के लिए आतंकवाद विरोधी कानून जारी और लागू किए हैं।”

मुस्लिम दमन केवल शिनजियांग तक सीमित नहीं है। गत वर्ष मई में दक्षिण-पश्चिम चीन में युन्नान प्रांत में एक मस्जिद को गिराने पहुंचे चीनी अधिकारियों पर स्थानीय मुस्लिमों ने हमला कर दिया था। ह्यूमन राइट वाच नामक मानवाधिकार संगठन की चीनी कार्यवाहक निदेशक माया वांग का कहना है कि, “मस्जिदों को बंद करना, नष्ट करना और उनका पुनर्निर्माण करना चीन में इस्लाम पर अंकुश लगाने के व्यवस्थित प्रयास का हिस्सा है।”

साम्राज्यवादी चीन केवल इस्लाम का ही दमन कर रहा है, ऐसा भी नहीं है। चीन के पूर्व राष्ट्रपति माओत्से तुंग की सांस्कृतिक क्रांति के बाद से तिब्बत में बौद्ध अनुयायी भी चीन के निशाने पर है। वर्तमान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के कार्यकाल में भी तिब्बती लोंगो की आस्था और उनकी परंपराओं पर कुठाराघात करते हुए बौद्ध प्रतिमाओं को नष्ट किया जा रहा है। कई तिब्बती मठों को हानि पहुंचाई गई है, तो बौद्ध भिक्षुओं पर भी कई तरह के प्रतिबंध लगाए गए हैं।

गत दिनों दक्षिण-पश्चिमी सिचुआन प्रांत में चीनी अधिकारियों ने 100 से अधिक तिब्बती बौद्ध भिक्षुओं को इसलिए गिरफ्तार कर लिया, क्योंकि वे यांग्त्जी नदी पर बन रहे हाइपरबोलिक आर्क बांध के कारण अपने छह बौद्ध मठों को स्थानांतरित करने का विरोध कर रहे थे।

चीन का व्यवहार और उसकी नीतियां किसी भी स्थापित खांचे के अनुकूल नहीं है। सर्वमान्य परिभाषा के अनुसार, चीन एक साम्यवादी देश है, जहां सीसीपी का निरंकुश शासन है। विरोधाभास की पराकाष्ठा देखिए कि चीन की आर्थिकी एक रूग्ण पूंजीवाद से ग्रस्त है। वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए चीन अपने विनिर्माण उत्पादों की कीमत को कम से कम रखने का प्रयास करता है।

सस्ते उत्पाद बनाने की कोशिश में चीन में श्रमबल का भीषण शोषण किया जाता है। अधिकांश चीनी कारीगर एक यांत्रिक जीवन जीते है। अब चूंकि चीन साम्यवादी होने के साथ साम्राज्यवादी भी है, इसलिए उसका भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों के साथ विवाद होता रहता है।

वास्तव में, चीन में मुस्लिमों का राजकीय दमन कोई आश्चर्यजनक घटनाक्रम नहीं है। चीन अपनी अधिनायकवादी मानसिकता के अनुरूप, किसी भी गैर-चीनी सभ्यता के प्रति सहनशील नहीं है। विडंबना है कि भारत में लोकतंत्र और मानवाधिकार के स्वयंभू झंडाबरदार, जो अक्सर फिलीस्तीन आदि मुद्दे पर आंदोलित होते रहते है— वे चीन के मामले में या तो मौन रहते है या फिर उसका प्रत्यक्ष-परोक्ष समर्थन करते है।

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By बलबीर पुंज

वऱिष्ठ पत्रकार और भाजपा के पूर्व राज्यसभा सांसद। नया इंडिया के नियमित लेखक।

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