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विश्वासघात से बड़ा पाप कोई नहीं!

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने बहुत बड़ी बात कह दी। सब धर्माचार्यों को इस तरह सच बोलने का साहस दिखाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हिदू धर्म में पाप पुण्य का कॉन्सेप्ट है। और इसमें सबसे बड़ा पाप विश्वासघात है। बहुत सही बात। सभी धर्मों में अलग अलग शब्दों में यही कहा गया है। अहसान फरामोशी, अमानत में खयानत इस्लाम में बहुत बुरा माना गया है। शेक्सपियर का यह वाक्य तो दुनिया में सबसे ज्यादा दोहराया जाने वाला है यू टू ब्रूटस! तुम भी! ईसाइयों में ईसा मसीह को धोखा देने वाले यहूदा को कभी माफ नहीं किया।

पूरा मानव इतिहास भरा पड़ा है इस एक बुराई पाप की निंदा में। सेना में सुरक्षा बलों में सबसे ज्यादा गंभीर अपराध डबल क्रॉस को माना जाता है। दोनों तरफ के अधिकारी इसे कभी माफ नहीं करते हैं। अगर आप चाहें तो एक सच्ची घटना सुनाएं। जम्मू कश्मीर के कुछ पत्रकार दोस्तों को मालूम है। मिलिटेंसी में पत्रकारों की भी मशरूम ग्रोथ होती है। अखबारों को जरूरत होती है तो वह किसी भी स्थानीय आदमी को रख लेते हैं। जरूरी नहीं कि उन्हें लिखना पढ़ना भी आता हो।

एक नाम बाईलाइन में डालकर वे यह बताते थे कि हमारा संवाददाता भी फील्ड में है। उसे पहचान पत्र दे देते थे। और वह सब जगह घूमना शुरू कर देता था। कुछ खबर बताना हो तो फोन पर बोलकर बता देता था। तो ऐसे तमाम लोग आतंकवाद ग्रस्त क्षेत्रों में पत्रकार बन जाते थे। पंजाब में बने। जम्मू कश्मीर में। ज्यादातर तो अख़बार में नाम छपने और अधिकारियों से संपर्क बनाने में खुश रहते थे। मगर सुरक्षा एजेंसियां इन पर कड़ी नजर रखती थीं। इनसे सूचना लेने का काम भी करती थीं। लेकिन जैसा विश्वास वे प्रोफेशनल पत्रकारों पर करती थीं वैसा नहीं।

तो हां हम आपको जो बात बता रहे थे वह यह कि ऐसे ही एक बड़े हिंदी अख़बार के संवाददाता पर एक सुरक्षा बल को संदेह था। एक बार ज्यादा नाराज हो गए। सीमावर्ती इलाके का टूर था। सेना और अन्य सुरक्षा बल करवाते रहते थे। नियत्रंण रेखा पर थोड़ा सा पाकिस्तान के कब्जे वाले इलाके में भी घुमा लाते थे। उस दिन केवल एक पत्रकार को उस तरफ ले जा रहे थे। सुरक्षा बल के सभी बड़े अधिकारी उन दिनों दोस्त थे। काम की कद्र करते थे। तो थोड़ा अजीब लगा। उनसे पूछा। तो जो जवाब मिला वह दिल दहला देने वाला था। उन्हें उसके डबल एजेंट होने पर कुछ सबूत मिले थे। यह तो हम सहित दूसरे कुछ पत्रकारों को मालूम था कि उस पर निगाह है। और सुरक्षा बल उससे कुछ काम भी करवाते हैं। उसके उधर होने पर भी कुछ लोगों को संदेह था। जम्मू का स्थानीय निवासी था। पहले कभी पत्रकार नहीं रहा था। सीधा उस अख़बार ने आई कार्ड दे दिया था। उस दिन अफसर उसे उस तरफ ले जाकर कुछ करना चाह रहे थे। वहां अपने काउंटर पार्ट से भी उनकी कोई बात हुई थी। और शायद वे भी डबल क्रॉस को जान गए थे।

आप जिस टूर पर हों और वहां कुछ हो जाए। बहुत ही शॉक पहुंचाने वाली बात होती है। बड़ी मुश्किल से अपने अफसरों को समझाया। उन्होंने माफ किया। बड़ी बात थी। नहीं तो उनका कहना था कि एक बार हम उस तरफ से गोली चलाने वाले को छोड़ दें मगर डबल क्रॉस करने वाले को कभी नहीं। और हम ही नहीं वह भी नहीं। यहां बात को समझने के लिए यह बता दें कि सीमा पर दोनों देशों के सुरक्षा बल भी कुछ कुछ मामलों में जैसे डबल क्रॉस, स्मगलिंग पर सूचनाओं का आदान प्रदान करते रहते हैं।

तो सेना सुरक्षा बल से लेकर हर धर्म, मानवता सब जगह अंग्रेजी में बिट्रे, हिंदी में विश्वासघात उर्दू में गद्दारी बहुत बुरी बात नाकाबिले माफी मानी जाती है। शंकराचार्य ने इस पाप को महापाप बताकर धर्म और इतिहास की कई यादें दिला दी हैं। विभीषण राम का साथ देने के बावजूद आज भी खलनायक ही हैं। धर्माचार्यों का काम ही यह होता है कि वे आम धारणाओं, सामान्य सिद्धांतों से उपर उठकर नई स्थापना दें।

अविमुक्तेश्वरानंद इससे पहले भी बहुत बड़ी बात कह चुके हैं। जब उनसे एक प्रमुख एजेंसी के पत्रकार ने झूठ बोलता हुआ सवाल पूछा कि राहुल गांधी ने यह कहा है। शंकराचार्य जी ने कहा कि कौआ कान ले गया सुनकर पहले अपना कान देखो। कौए के पीछे मत भागो। हमने पूरा वीडियो मंगाकर देखा। राहुल ने वह बात कहीं कही नहीं है जो तुम कह रहे हो। राहुल गांधी ने कहीं हिंदू को हिसंक नहीं कहा। राहुल उन लोगों को कह रहे हैं जो नफरत फैलाते हैं। और राहुल ने नाम लेकर लोकसभा में साफ कहा कि बीजेपी आरएसएस और मोदी सरकार नफरत और हिंसा फैलाते हैं।

शंकराचार्य ने सारे झूठ का पर्दाफाश कर दिया। हिंदू, मुसलमान, ईसाई, सिख सबके धर्माचार्यों को इसी तरह सच बोलने से परहेज नहीं करना चाहिए। कभी कभी अप्रिय सत्य भी होता है। मगर बाद में उस धर्म के मानने वालों के लिए लाभदायक होता है। लेकिन लोग शंकराचार्य की बात को धर्म से ज्यादा राजनीति से जोड़कर देख रहे हैं। लेकिन यह राजनीति की बात नहीं है। मानवीय मूल्यों की है धर्म के उच्च सिद्दांतों की है। उद्धव ठाकरे ने अच्छी भली चल रही उनकी सरकार को गिराए जाने वाले लोगों के लिए खुद धोखेबाज शब्द का इस्तेमाल किया था।

राजनीति में ऐसे उदाहरण बहुत कम मिलते हैं जब किसी धोखा खाए आदमी ने इतने संयम और गरिमा से अपनी बात कही हो। जिन एकनाथ शिंदे और दूसरे लोगों को शिवसेना ने बनाया हो उनके इतने बड़े विश्वासघात के बावजूद उन्होंने किसी के लिए कठोर शब्द नहीं कहे। मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा मगर जनता उनकी मुरीद हो गई। महाराष्ट्र में एक से एक बड़े नेता मुख्यमंत्री रहे हैं। मगर उनका छोटा सा कार्यकाल लोगों में एक अलग छाप छोड़ गया। इसी का परिणाम है कि अभी लोकसभा चुनाव में भाजपा को सबसे बड़ा झटका यूपी के बाद महाराष्ट्र में ही लगा। जहां उसे 48 में से केवल नौ सीटें ही मिलीं। और मुख्यमंत्री, जो खुद को असली शिवसेना बताते हैं और चुनाव आयोग ने भी इसे मान लिया उनको उद्धव ठाकरे की शिवसेना से दो सीटें कम मिलीं। उद्धव के प्रभाव से ही इंडिया गठबंधन को वहां 30 सीटें मिली। एनडीए केवल 17 पर सिमट गया। और एक जो निर्दलीय जीता वह भी कांग्रेस में शामिल हो गया। महाराष्ट्र में इसी साल विधानसभा चुनाव होना हैं। और उसी में विश्वासघातियों का फैसला हो जाएगा।

भारतीय राजनीति में दो बड़े उदाहरण हैं। एक वीपी सिंह का। राजीव गांधी के साथ उन्होंने बहुत बड़ा धोखा किया। परिणाम वीपी सिंह अकेले होकर दुनिया से गए। दूसरा उदाहरण आडवाणी का। 1999 में सरकार बनी वाजपेयी के कारण। लोगों की उनके साथ सहानुभूति थी। मगर सरकार बनने के बाद उन्हें ही मुखौटा साबित किया जाने लगा। आडवाणी खुद को असली चेहरा बताने लगे। नतीजा उसके बाद आडवाणी लगातार अकेले और अवांछित होते चले गए। उदाहरण कुछ और भी हैं। संजय जोशी और तोगड़िया के। धोखा उन्हें भी तगड़ा मिला है। इसलिए विश्वासघात पर शंकराचार्य की बात बहुत महत्वपूर्ण है। और यह दूर तक जाएगी। कई नई कहानियां सामने आएंगी।

By शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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