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बनारस में आमने-सामने गांधी!

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बनारस में जमीन मुद्दे पर सर्व सेवा संघ अहिंसक संघर्ष का नया अध्याय गढ़ने में लगा है। विकास की चकाचौंध दर्शाने के चक्कर में सरकारी प्रशासन तंत्र वहां की जमीन हड़पने में लगा। महात्मा गांधी के जाने के बाद विनोबा भावे और उनके साथियों ने गांधी विचार के प्रसार-प्रचार के लिए बनारस में सर्व सेवा संघ-साधना केन्द्र बनाया था।

 गांधी विपक्ष के हैं तो पक्ष के भी हैं। सत्ता के हैं तो शासित के भी हैं। गांधी अगर विरोधी के हैं तो निर्विरोधी के भी हैं। कांग्रेस के गांधी हैं, तो भाजपा के व आप के भी गांधी हैं। समतावाद के गांधी हैं तो समाजवाद के भी। दक्षिणपंथी के गांधी हैं तो वामपंथी के भी। दलित के भी और सवर्ण के भी गांधी हैं। आस्तिक के गांधी हैं तो नास्तिक के भी हैं। आध्यात्म के गांधी हैं तो वस्तुवाद के भी। सेवानीति के गांधी हैं तो राजनीति के भी हैं। मानव के हैं तो समाज के भी गांधी हैं। सर्वपंथ प्रार्थना करने वाले के गांधी हैं तो सर्वोदय के लिए उपवास करने वाले के भी गांधी हैं। गांधी व्यक्ति भी हैं और महात्मा भी। यहां भी हैं और वहां भी। देश में हैं तो विदेश में भी हैं। यानी गांधी सर्वव्यापी हैं। और व्यक्तिवादी भी। संघर्ष में गांधी हैं तो सहमति में भी गांधी हैं।

“पहले वे तुमको अनदेखा करेंगे। फिर तुम पर हंसेंगे। तुमसे लड़ेंगे, तोड़-फोड़ व मार-पीट करेंगे। मगर फिर जीत तुम्हारी होगी।“ सत्य के आग्रह का यह मंत्र महात्मा गांधी ने न्यायपूर्ण, अहिंसक संघर्ष के लिए पूरे संसार को दिया। बेशक सत्य स्थापित होने में सहनशीलता और समय लगता है।

मगर सिर्फ समय से ही असत्य भी मिटता है। सत्य के लिए संघर्ष तो संयम, परिश्रम, त्याग और करुणा से ही हो सकता है। सत्याग्रह ही सत्य की कुंजी है। देश भर में दो अक्टूबर को गांधी जयंती नए होश, नए जोश और नए उत्साह में मनी। लेकिन आज गांधीजी के अहिंसा के विचार को विश्वशांति के लिए प्रस्तुत करने के बजाए सरकार कुशासन से पूर्ण-सत्ता कायम करने में ही लगी दिखती है।

बनारस में जमीन मुद्दे पर सर्व सेवा संघ अहिंसक संघर्ष का नया अध्याय गढ़ने में लगा है। विकास की चकाचौंध दर्शाने के चक्कर में सरकारी प्रशासन तंत्र वहां की जमीन हड़पने में लगा। महात्मा गांधी के जाने के बाद विनोबा भावे और उनके साथियों ने गांधी विचार के प्रसार-प्रचार के लिए बनारस में सर्व सेवा संघ-साधना केन्द्र बनाया था।

उत्तर रेलवे से नियमानुसार खरीदी जमीन का हस्तांतरण पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के प्रयास, डॉ राजेन्द्र प्रसाद की तकनीकी उपस्थिति और तत्कालीन रेलमंत्री जगजीवन राम की स्वीकृति से हुआ था। इसी परिसर में जेपी के प्रयास से एक विश्वस्तरीय शोध केन्द्र – गांधी विद्या संस्थान भी बना। प्रकाशन विभाग से गांधी, विनोबा, जेपी, जेसी कुमारप्पा, दादा धर्माधिकारी, जे कृष्णमूर्ति, धीरेन्द्र मजूमदार, आचार्य राममूर्ति, नारायण देसाई, ठाकुरदास बंग एवं आचार्य शिवानंद जैसे विद्वान मनीषियों की पुस्तकें छपती रही।

समाज में विचार के स्वतंत्र विकास में लगी संस्था पर सरकारी प्रशासन ने पिछले साल जुलाई-अगस्त में गैर कानूनी तरीके से जमीन पर कब्जा जमाया। प्रकाशन व शोध के काम में लगे लोगों के करने-रहने के भवन गिराए। वैचारिक विरासत को नष्ट किया। न्याय के लिए लड़ाई विरासत मुक्ति आंदोलन से शुरू हुई है। सौ-दिन का सत्याग्रह – ‘न्याय के दीप जलाएं’ 11 सितंबर को विनोबा जयंती पर शुरू हुआ। जो गांधी जयंती, जेपी पुण्यतिथि व जयंती, विनोबा पुण्यतिथि, सरदार पटेल जयंती व मानवाधिकार दिवस मनाते हुए 19 दिसंबर तक चलेगा।

कैसे भी अन्याय के विरोध में गांधी की अहिंसक लड़ाई प्रार्थना से शुरू और प्रार्थना पर ही समाप्त होती। दिन भर विरोध करने वालों का उपवास रहता। आपस में बातचीत होती। आते-जाते लोगों को मुद्दे के बारे में बताया जाता। यानी विचार, त्याग व करुणा के अलावा दृढ़ता से विरोध जताया जाता। नए लोगों को जुड़ने के लिए प्रेरित किया जाता। इसी तरह नए लोग नयी समझ, और नई दृढ़ता से अहिंसक आंदोलन चलाते। फिर शाम की प्रार्थना के बाद उपवास तोड़ा जाता। शाम ढलते अपने ठिकानों पर लौट कर अगले दिन की तैयारी होती। आज के बुल्डोजर राज में यह लड़ाई बेमानी और हास्यास्पद लग सकती है। लेकिन सत्य के आग्रह के लिए सभ्य समाज की ऐसी ही अहिंसक लड़ाई होनी चाहिए।

सत्याग्रह का संघर्ष कुछ के लिए लंबा, कष्ट व त्याग भरा तो रहता ही है लेकिन समाज के लिए शांति व सौहार्द भी लाता है। सत्ता को सदबुद्धि भी देता है। और अपनाए गए गैर कानूनी तरीकों को सुधारने की हिम्मत भी। बनारस में सत्ता के गांधी और समाज के गांधी आमने सामने हैं। वसमाज न्याय का दीप जलाए रखेगा। आशा सत्य और अहिंसा की जीत की रहेगी।

By संदीप जोशी

स्वतंत्र खेल लेखन। साथ ही राजनीति, समाज, समसामयिक विषयों पर भी नियमित लेखन। नयाइंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर।

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