भारत के राजनीतिक एकीकरण और 1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय गृह मंत्री के रूप में महत्वपूर्ण कार्य करने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म भारत के गुजरात प्रदेश के नडियाद नामक स्थान में एक लेवा पटेल पाटीदार परिवार झावेरभाई पटेल एवं लाडबाई देवी की चौथी संतान के रूप में उत्पन्न वल्लभ भाई की शिक्षा प्रमुख रूप से घर और फिर स्वाध्याय से ही हुई। उन्होंने 22 वर्ष की अवस्था में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की थी।
31 अक्टूबर- सरदार पटेल जयंती
लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई झावेरभाई पटेल की 148वीं जयंती आज 31 अक्टूबर 2023 को पूरा देश राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मना रहा है। सरदार वल्लभभाई पटेल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष में अग्रणी भूमिका निभाने वाले ऐसे भारतीय राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने न केवल भारत के स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद राष्ट्र के राजनीतिक एकीकरण में महत्वपूर्ण निभाई, बल्कि देश के प्रथम उप प्रधानमंत्री के रूप में तत्कालीन ज्वलंत मुद्दों को सुलझाकर राष्ट्र के एकता को और सुदृढ़ किया। जिसके कारण वे आज भी सभी राजनीतिक दलों के लिए पूजनीय हैं। फिर भी यह आरोप हमेशा लगता ही रहता है कि इतिहास में जान- बूझकर सरदार पटेल को वह स्थान प्रदान नहीं किया गया, जिसके वे हकदार थे।
स्वतंत्र भारत में अधिकांश समय तक देश में सत्तासीन रहने वाली कांग्रेस की सरकारों में वे कभी चर्चा में, सार्वजनिक विमर्श में नहीं आए। और न ही उनके जीवन के महत्वपूर्ण कार्यों को ऐतिहासिक महत्व के रूप में पुनर्मूल्यांकन करने की कोशिश ही की गई। कारण चाहे जो भी हों, लेकिन यह सच है कि देश में भारतीय जनता पार्टी के 2014 में सत्ता में आने के बाद परिस्थितियाँ बदल रही हैं, और धीरे- धीरे इतिहास के पन्नों पर छाई धूल हटती जा रही है। इससे संबंधित अनेकानेक ऐतिहासिक जानकारियां सामने आ रही हैं। जिसके कारण भारतीयों के दिलों में सरदार पटेल का कद स्टेचू ऑफ यूनिटी के समान कद्दावर होता जा रहा है।
भारत के राजनीतिक एकीकरण और 1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय गृह मंत्री के रूप में महत्वपूर्ण कार्य करने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म भारत के गुजरात प्रदेश के नडियाद नामक स्थान में एक लेवा पटेल पाटीदार परिवार झावेरभाई पटेल एवं लाडबाई देवी की चौथी संतान के रूप में उत्पन्न वल्लभ भाई की शिक्षा प्रमुख रूप से घर और फिर स्वाध्याय से ही हुई। उन्होंने 22 वर्ष की अवस्था में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। उनकी इच्छा वकील बनने की थी। 36 वर्ष की अवस्था में वह अपने इस सपने को पूरा करने के लिए इंग्लैंड गए और माध्यमिक धर्मशाला मंदिर में प्रवेश लिया। उन्होंने अपने 36 महीने के कोर्स को सिर्फ 30 महीनों में ही पूरा कर लिया। वह भारत में वापस आने के बाद अहमदाबाद के एक सबसे सफल बैरिस्टर बने। मोहनदास करमचंद गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में कूद पड़े।
स्वतन्त्रता आन्दोलन में सरदार पटेल के सबसे पहले योगदान के रूप में 1918 में भयंकर सूखे की चपेट में आने के बाद भी लगान में अत्यधिक वृद्धि किए जाने के कारण गुजरात के खेड़ा खंड डिवीजन में हुई संघर्ष में पटेल को मिली सफलता को स्मरण किया जाता है। वहाँ के किसानों द्वारा भारी कर में छूट की मांग का पटेल ने नेतृत्व किया था, और किसानों को कर न देने के लिए प्रेरित किया था। पहले तो इसे अंग्रेज शासक मानने को तैयार नहीं थे। लेकिन अंततः किसानों के इस आंदोलन के आगे अंग्रेज सरकार को झुकना पड़ा और उस वर्ष करों में राहत दी गई। वर्ष 1928 में किसानों के लगान में तीस प्रतिशत वृद्धि किए जाने के कारण गुजरात में हुए एक अन्य प्रमुख किसान आंदोलन का नेतृत्व भी वल्लभभाई ने किया। और लगान वृद्धि का जमकर विरोध किया। पहले तो सरकार ने इस सत्याग्रह आंदोलन को कुचलने के लिए कठोर कदम उठाए। लेकिन बाद में आंदोलन से विवश होकर उसे 22 प्रतिशत लगान वृद्धि को घटाकर 6.03 प्रतिशत करना पड़ा। इससे किसानों को भारी राहत हुई।
इस सत्याग्रह आंदोलन के सफल होने के बाद वहाँ की महिलाओं ने वल्लभभाई पटेल को सरदार की उपाधि प्रदान की। इससे उनकी ख्याति दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती ही गई, और वे समस्त भारतीयों के हृदय के सरदार बन देश के सर्वमान्य नेता हो गए। जिसके कारण स्वाधीनता प्राप्ति के बाद देश के प्रथम प्रधानमंत्री के दौड़ में वे पहले स्थान पर थे, और प्रधानमंत्री के रूप में अधिकांश प्रान्तीय कांग्रेस समितियाँ पटेल के पक्ष में थीं, लेकिन मोहनदास करमचंद गांधी की इच्छा का सम्मान करते हुए उन्होंने प्रधानमंत्री पद की दौड़ से अपने को दूर रखा, और नेहरू का समर्थन किया। उन्हें उपप्रधान मंत्री एवं गृह मंत्री का कार्य सौंपा गया। किन्तु इसके बाद भी नेहरू और पटेल के सम्बन्ध तनावपूर्ण ही रहे। जिसके कारण कई अवसरों पर दोनों को ही अपने पद का त्याग करने की धमकी देनी पड़ी थी।
15 दिसम्बर 1950 को दिल का दौरा पड़ने के कारण सरदार पटेल के निधन हो जाने के बाद नेहरू का कांग्रेस के अन्दर विरोध अत्यंत कम हो गया, और वे मनमानी करने के लिए स्वतंत्र हो गए। बाद में उन्होंने सरदार पटेल के अथक प्रयासों के बाद एकीकृत किए गए भारत के महत्वपूर्ण अंग को हिन्दी- चीनी भाई -भाई कहकर सीमा की 40 हज़ार वर्ग गज भूमि चीन को सौंप दिया और देश के सीमांत क्षेत्रों में एक शत्रु सदियों के लिए बना देश के सिर पर बिठा लिया।
देश के गृह मंत्री के रूप में सरदार पटेल की पहली प्राथमिकता देशी रियासती राज्यों को भारत में मिलने की थी। इस कार्य को उन्होंने अपनी प्रतिभा के बल पर बिना रक्तपात के ही सम्पादित कर दिखाया। सिर्फ हैदराबाद स्टेट के आपरेशन पोलो के लिए ही उनको सेना भेजनी पड़ी। भारत के एकीकरण में उनके इसी महान योगदान के लिए उन्हें भारत का लौह पुरूष के रूप में जाना जाता है। उल्लेखनीय है कि भारत विभाजन के समय भारत में 562 देशी रियासतें थीं। इनका क्षेत्रफल भारत का 40 प्रतिशत था। सबके आपस में अपने- अपने विवाद थे, अपनी- अपनी लड़ाइयाँ थीं। लेकिन भारत को राजनीतिक एकीकरण प्रदान करने के उद्देश्य से सरदार पटेल ने स्वतंत्रता के पूर्व से ही वीपी मेनन के साथ मिलकर कई देशी राज्यों को भारत में मिलाने के लिए कार्य आरम्भ कर दिया था।
उन्होंने देशी राजाओं को यह समझाया कि स्वाधीन भारत में स्वायत्तता देना सम्भव नहीं होगा। इसलिए उन्हें अपने राज्य का भारत में विलय कर देना चाहिए। परिणामस्वरूप जम्मू -कश्मीर, जूनागढ तथा हैदराबाद स्टेट, तीन राज्यों को छोड़ कर शेष सभी रजवाड़ों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर आजाद मुल्क बनाना चाहते थे। चारों ओर से भारतीय भूमि से घिरी और पाकिस्तान से दूर सौराष्ट्र के समीप एक छोटी रियासत जूनागढ़ के नवाब ने अपनी मजहबी फितरत के कारण 15 अगस्त 1947 को पाकिस्तान में विलय की घोषणा कर दी। राज्य की बहुसंख्यक हिन्दू जनता भारत में विलय चाहती थी। इसलिए राज्य के सर्वाधिक जनता हिंदुओं के द्वारा नवाब के विरुद्ध विरोध का स्वर अत्यंत तेज हो गया, तो भारतीय सेना जूनागढ़ में प्रवेश कर गई। नवाब भागकर पाकिस्तान चला गया और 9 नवम्बर 1947 को जूनागढ भी भारत में मिल गया। फरवरी 1948 में वहाँ जनमत संग्रह कराया गया, जो भारत में विलय के पक्ष में रहा।
इसी तरह चारों ओर से भारतीय भूमि से घिरी हैदराबाद भारत की सबसे बड़ी रियासत थी। वहाँ के निजाम उस्मान अली ने पाकिस्तान के प्रोत्साहन से स्वतंत्र राज्य का दावा किया और अपनी सेना में वृद्धि करने लगा। विदेशों से हथियार आयात कर अपनी हथियारों में बढ़ोतरी करने लगा। उस समय भारत ने हैदराबाद से स्टैंड स्टिल एग्रीमेंट कर लिया। हैदराबाद में 85 प्रतिशत हिन्दू थे, लेकिन प्रशासन में 90 प्रतिशत मुसलमान काबिज थे। एक वर्ष के लिए स्टैंडस्टिल एग्रीमेंट होने के बावजूद सरदार पटेल को पता चला कि निजाम पाकिस्तान से दोस्ती बढ़ा रहा है। उनके कराची पोर्ट को इस्तेमाल करने का एग्रीमेंट करने जा रहा है। और पाकिस्तान को बिना ब्याज के बीस करोड़ का कर्ज देने वाला है। पाकिस्तान उस पैसे से भारत के साथ कश्मीर की जंग में इस्तेमाल करने करने के लिए हथियार खरीद वाला था।
इधर निजाम के द्वारा भी भारत से टक्कर लेने के लिए मुस्लिम रजाकारों का संगठन मजलिस ए इत्तिहादुल मसलिमीन (एम आई एम) बनाने की खबर मिली तो पटेल ने शीघ्र प्रतिक्रिया स्वरूप निजाम को नवम्बर महीने तक के लिए लागू एग्रीमेंट की याद दिलाई। इस पर निजाम ने पैसे की मदद तो पाकिस्तान को रोक दी, लेकिन एक नई जंग छेड़ दी। मजलिस ए इत्तिहादुल मसलिमीन नामक मुस्लिमों के संगठन के रजाकार कहे जाने वाले सिपाही हैदराबाद को खलीफा के राज्य के तौर पर स्थापित करना चाहते थे। संगठन के मुखिया कासिम रिजवी ने दो लाख ऐसे रजाकारों को सैन्य ट्रेनिंग देनी शुरू की, जो हैदराबाद रियासत के लिए अपनी जान दे सकें। इधर राज्य के बहुसंख्यक हिन्दू यह सोचकर हाल- बेहाल, परेशान थे कि हैदराबाद के भारत में विलय नहीं होने से उनका भविष्य क्या होगा? रजाकारों ने हिंदुओं के विरुद्ध हिंसा छेड़ दी, हिंदुओं पर कहर ढाना शुरू कर दिया। चतुर्दिक हिंदुओं के खिलाफ हिंसा, हत्या, दंगे, बलात्कार, लूट -पाट, आगजनी होने लगी।
1948 के जुलाई- अगस्त के माह तक हैदराबाद राज्य में हत्या, बलात्कार, लूट, दंगों की संख्या में निरंतर वृद्धि होते रहने से पटेल ने सितम्बर के पहले सप्ताह में भारतीय सेना के उच्चाधिकारियों के साथ बैठक रखी, जबकि नेहरू पुलिस एक्शन के खिलाफ थे। लेकिन पटेल ने नेहरू की राय को दरकिनार करते हुए एक्शन लेने का मूड बना लिया और आर्मी को हरी झंडी दिखा दी। पटेल के आदेश पर भारतीय सेना हैदराबाद को आजाद कराने के लिए 13 सितम्बर 1948 को हैदराबाद में प्रवेश कर गई। तीन दिनों के बाद 17 सितम्बर को निजाम ने रेडियो पर अपनी पराजय की घोषणा कर आत्मसमर्पण कर दिया। और नवम्बर 1948 में भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। एमआईएम के चीफ रिजवी को भी गिरफ्तार कर लिया गया था। रिजवी को उम्रकैद अथवा पाकिस्तान चले जाने की सजा दी गई। वह पाकिस्तान चला गया, लेकिन पूरी तरह जाने से पहले से उसने हैदराबाद में अब्दुल वाहिद ओवैसी को एमआईएम की जिम्मेदारी सौंप दी। ओवैसी ने उसमें ऑल इंडिया शब्द जोड़कर एआईएमआईएम बना दिया। एमआईएम ही वर्तमान का असदुद्दीन ओवैसी संगठन एआईएमआईएम है, जिसे आज भी ओवैसी परिवार ही चला रहा है।
नेहरू ने कश्मीर मामले को यह कहकर अपने पास रख लिया कि यह समस्या एक अंतर्राष्ट्रीय समस्या है। नेहरू कश्मीर समस्या को संयुक्त राष्ट्रसंघ में ले गए। जिसके कारण अलगाववादी ताकतों को कश्मीर की समस्या को दिनानुदिन बढ़ाने का मौका मिल गया। और इसी के कारण देश में वर्ष- प्रतिवर्ष आतंकी घटनाएं निरतंर बढ़ती ही गई। जिसके अंत का कोई मार्ग दिखाई नहीं देता था। लेकिन 5 अगस्त 2019 को वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के प्रयास से कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाला अनुच्छेद 370 और 35(अ) समाप्त हुआ। इस तरह जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन गया और सरदार पटेल का भारत को अखण्ड बनाने का स्वप्न सत्य रूप में साकार होता दिखाई दिया। 31 अक्टूबर 2019 को जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख के रूप में दो केन्द्र शासित प्रेदश अस्तित्व में आ गए। अब जम्मू-कश्मीर केन्द्र के अधीन है और भारत के सभी कानून वहाँ लागू हैं। सोमनाथ मंदिर के पुनर्निमाण, गांधी स्मारक निधि की स्थापना, कमला नेहरू अस्पताल की रूपरेखा निर्माण आदि अनेक ऐतिहासिक कार्यों के लिए स्मरण, नमन किए जाने वाले राष्ट्रीय एकता के प्रतीक लौह पुरुष सरदार वल्लभ बाई पटेल को कृतज्ञ राष्ट्र की यह सच्ची श्रद्धांजलि है।