राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

अपनी उपेक्षा के प्रति चिंतित संघ…?

Image Source: UNI

भोपाल। एक तरफ शताब्दी वर्ष के दौर की खुशी तो दूसरी ओर उपेक्षा का गम, आज इसी दौर से गुजर रहा है राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ आज उसकी सबसे बड़ी चिंता यही है, उसकी सोच है कि आजादी के बाद से अब तक सर्वाधिक काल तक कांग्रेस सत्ता में रही, किंतु उस दौर में भी उसकी (संघ की) केंद्रीय सत्ता द्वारा इतनी उपेक्षा नही हुई, जितनी की आज भाजपा के शासनकाल में हो रही है।

पिछले साल लगभग इन्हीं दिनों महाराष्ट्र के पूणे में संघ की अखिल भारतीय समन्वय बैठक हुई थी, जिसमें भाजपा की चुनावी रणनीति पर विस्तृत चर्चा हुई थी जिसमें संघ की उपेक्षा के गंभीर आरोप लगे थे, इसके बाद इसी साल केरल में आयोजित संघ की समन्वय बैठक में भाजपाध्यक्ष जगत प्रकाश नड्ड़ा का अचानक पहुंचना और वहां यह प्रकट करना कि संघ भाजपा को अपने अधीन न समझे, भाजपा का संघ से समान विचारधारा के अतिरिक्त कोई रिश्ता नही है, यह स्पष्ट करता है कि देश पर राज कर रही भाजपा संघ को अपना संरक्षक नही मानता।

इन्हीं दो प्रसंगों ने संघ की चिंता बढ़ा दी हे, यद्यपि संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अब तक इन दोनों घटनाक्रमों के संदर्भ में कुछ नही कहा है, किंतु वे चिंतित अवश्य है और अपने संघ के भावी अस्तित्व के प्रति गंभीर भी। अब इस स्थिति में यह भी संभव है कि संघ प्रमुख भागवत जी स्वयं अपने अस्तित्व की चुनौति को स्वीकार लें और अपने ही स्तर पर संघ को हर दृष्टि से मजबूत और आदर्श संगठन बनाने की ठान ले, इस घटना के बाद संघ प्रमुख की अपनी राष्ट्रव्यापी शाखाओं के प्रति बढ़ी सक्रीयता तो यही संदेश दे रही है, अब उन्होंने देश के सभी राज्यों के संघ प्रमुखों से जीवंत सम्बंध बनाए रखने तथा समय-समय पर उनसे चर्चा करते रहने का भी निश्चय कर लिया है, इसलिए अब संघ ने भाजपा शासित राज्यों में भी अपनी सक्रीयता बढ़ा दी है तथा वह अब अपने अस्तित्व की रक्षा में पूरी तरह जुट गया है।

संघ की इस सक्रीयता से भाजपा तथा केन्द्र की चिंता बढ़ना स्वाभाविक है, इसलिए राज्यों के भाजपा प्रमुखों के केंद्रीय संगठन से गोपनीय आदेश जारी किए गए है, जिनमें संघ की दैनंदिनी गतिविधियों पर तीखी नजर रखने को कहा गया है, अर्थात् अब संघ और भाजपा दोनों की ही एक-दूसरे पर तीखी नजर है।
आज संघ की सबसे बड़ी और अहम् शिकायत ही यही है कि आजादी से अब तक के पचहत्तर वर्षों के कार्यकाल में अधिकांश समय कांग्रेस ही सत्ता में रही किंतु कांग्रेस के शासनकाल में भी संघ की इतनी उपेक्षा नही की गई, जितनी पिछले एक दशक से केन्द्र सरकार द्वारा की जा रही है, अटल-आडवानी जी के राज में भी संघ का निर्णायक अस्तित्व कायम था, जो आज नजर नही आ रहा है और फिर संघ की केरल बैठक में जाकर भाजपाध्यक्ष का दो टूक कथन अपने आपमें भाजपा संघ के रिश्तों के लिए काफी महत्व रखता है।

आज संघ में हर स्तर पर यही बिन्दू विशेष मंथन का विषय बना हुआ है और संघ तथा भाजपा के भावी सम्बंधों पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा रकता है, इसी संभावना को दृष्टिगत रखते हुए दोनों ही संगठनों ने अपने-अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए एक-दूसरे से सम्बंधों पर गंभीर चिंतन शुरू कर दिया है, भाजपा ने जहां अपने शासित राज्यों में संघ की गतिविधियों पर तीखी नजर रखना शुरू कर दिया है, वही संघ ने और अधिक शाखाओं में वृद्धि कर इसे पूरे राष्ट्र में हर स्तर पर कायमी कर उन्हें सक्रिय करने का फैसला लिया है, ऐसी स्थिति में यदि यह माना जाए कि देश में भाजपा व संघ पृथक संगठन बन गए है, तो कतई गलत नही होगा, क्योंकि भाजपा जहां सत्ता के मद में है तो संघ अपना पुरातन वजूद कायम रखने की चिंता में।

अब इस स्थिति का परिणाम क्या होगा? यह तो भविष्य के गर्भ में है, किंतु भाजपा व संघ के बुजूर्ग वर्ग इस स्थिति को लेकर चिंता मग्न अवश्य है।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *