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इंदौरी लाल जावरा वाले

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डॉक्टर हरीश भल्ला जैसे हंसमुख जीए वैसे ही हंसते-मुस्कुराते चले गए। हंसमुख जीवटता के ही कारण वे एक विशाल समृद्ध परिवार को दुखी छोड़ गए।… इंदौर में पढ़े भल्ला साब दिल्ली में डाक्टरी करने आ गए थे। यहीं के करोल बाग में घर को जावरा हाउस बनाया। इसी जावरा हाउस में हर कला के सफल नाम को बुलाने-बैठाने का सिलसिला शुरू किया। सांस्कृतिक आयोजनों से जुड़ने लगे तो उनका मिलना-मिलाना, खाना-खिलाना व संगीत का गाना-बजाना शुरू हुआ।

डॉक्टर थे, लेकिन डाक्टरी करते उनको कम ही देखा व जाना। मगर किसी के भी मन को आनंद में ले आने का उनके पास खूब ईलाज था, और समय पर सभी को हंसा देने की उनके पास दवा भी थी। भल्ला साब डिगरी से तो डाक्टर थे ही लेकिन दिलदारी के भी दिलावर थे। सभी को जोड़कर रखने के जानदार शल्य चिकित्सक थे। महफिलें सजाने-जमाने के मंझे हुए उस्ताद थे। मालवी खाने-खिलाने के मौलवी भी थे। यारबाजी के यायावर थे। डॉक्टर हरीश भल्ला जैसे हंसमुख जीए वैसे ही हंसते-मुस्कुराते चले गए। हंसमुख जीवटता के ही कारण वे एक विशाल समृद्ध परिवार को दुखी छोड़ गए।

बंबई में डॉक्टर साब के जाने पर दिल्ली में प्रार्थना सभा हुई। प्रार्थना के लिए पहुंचा तो सुरीले स्वर में शुभा मुद्गल सभी से सवाल कर रहीं थी। कौन मरे, कौऊ जन्में भाई/ सरग नरक कौने गति पाई। आई आई सी में जगह से ज्यादा भरे हाल में, डॉक्टर भल्ला के अचानक चले जाने पर विशाल समृद्ध परिवार ने उनको प्रेम व सम्मान में याद किया। फिर शुभा मुद्गल ने कुमार गंधर्व के गाए व प्रचलित किए कबीर के निर्गुणी शब्दों में ही समझाया। उड़ जाएगा हंस अकेला/ जग दर्शन का मेला। डाक्टर साब के लिए सारा जग मालवा का अंचल ही था जिसमें वे सौहार्द, समभाव व सानंद का दर्शन बिखेरते थे। और दास कबीर की तरह हर एक के गुण मिलाते रहते थे। गाते व गवाते थे। यह सब वे इस निश्चिंतता में करते रहते थे कि जिसकी जो करनी है वे ही भुगतेंगे।

डॉक्टर भल्ला को हमारे घर में उचकू लाल इंदौरी कहा जाता था। क्योंकि उत्सव के लिए वे सदा उत्सुक रहते थे। हर उत्सव में उचकते हुए शामिल रहते। मालवा के जावरा जिले से निकले व इंदौर में पढ़े भल्ला साब दिल्ली में डाक्टरी करने आ गए थे। यहीं के करोल बाग में घर को जावरा हाउस बनाया। इसी जावरा हाउस में हर कला के सफल नाम को बुलाने-बैठाने का सिलसिला शुरू किया। सांस्कृतिक आयोजनों से जुड़ने लगे तो उनका मिलना-मिलाना, खाना-खिलाना व संगीत का गाना-बजाना शुरू हुआ। प्रतिष्ठित प्रसिद्ध लोगों में उठने-बैठने लगे तो उसी से जाने भी जाने लगे। दिल्ली में मालवा मित्र मंडल बनाया। मध्य प्रदेश फाउंडेशन का गठन किया। और कई सफल आयोजन कराए व खुशनुमां मेल-मिलाप कराते रहे। डॉक्टर साब के एक मैसेज पर सैकड़ों कला प्रेमी जुट जाते थे।

अभी सितंबर महीने में ही दिल्ली के एक आयोजन में सब से हंसते-हंसाते मिले थे। बातचीत से लगा कि अभी उनको कई और काम भी करने हैं। आगे से आगे उचकते रहना उनके स्वभाव का खास अंदाज था। बंबई गए तो पता चला बीमार हैं। लेकिन वहां भी मालवा मित्र मंडल या मध्य प्रदेश फाउंडेशन की शुरुआत करना चाहते थे। पांच जनवरी को होने वाले आयोजन के बंदोबस्त के बारे में सभी को सूचित कर रहे थे। निमंत्रण के लिए बंबई में रहने वाले इंदौर के मालवी लोगों को एकसाथ जमाना-जिमाना चाहते थे। जाते-जाते भी जोड़ना चाहते थे।

अपन ने उनको कुछ साल पहले ही जाना-समझा। कोविड महामारी के दौरान डॉक्टर साब ने सभी को जोड़कर खुश व स्वस्थ रखने के लिए कई वाट्सऐप ग्रुप बनाए। जिसमें संगीत, मीडिया, मालवा के लोग, इंदौरी लाल, मध्यप्रदेशी जैसे कई ग्रुप बने जो आज भी सभ्य संसार में चल रहे हैं। कोरोना काल में यह सब वही कर सकता था जिसके पास डाक्टरी समझ के साथ मानव भले की उत्तेजना व उत्सव शीलता भी हो। फिर जैसा राजेश बादल ने प्रार्थना सभा में बताया कि डॉक्टर भल्ला अभिनय करना चाहते थे वे टीवी पर अनसुनी कहानियां कहने लगे। फिर दास्ताने भी कहने लगे। मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध लोगों का चरित्र चित्रण करने लगे। उनको समुद्र में भी तूफान हो जाने की ललक हमेशा रही।

जीवन की सफलता-असफलता का लेना-देना योग्यता-अयोग्यता से ज्यादा व्यवहार की व्यापकता से भी होता है। समाज हरीश भल्ला जैसे डॉक्टरों से भी संवरता है। इंदौरी लाल जावरा वाले को सलाम।

By संदीप जोशी

स्वतंत्र खेल लेखन। साथ ही राजनीति, समाज, समसामयिक विषयों पर भी नियमित लेखन। नयाइंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर।

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