भोपाल। आखिरकार विश्व हिन्दू परिषद और राम मंदिर ट्रस्ट द्वारा आयोजित और देश और प्रदेश के सत्ता द्वारा सहयोग पाकर अयोध्या में समारोह पूर्वक राम लल्ला का जन्मदिन पर ही राजतिलक हुआ ! ऐसा शायद ही कभी हुआ हो कि जन्म के समय ही किसी का राजतिलक हुआ हो ! वैसे सुधिजन मेरी गलती सुधार सकते हैं। यहां एक और तथ्य की ओर भी ध्यान देना होगा मोदी भक्त अभिनेत्री कंगना रनौत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राम का साक्षात अंश बताया है। अब उनके अनुसार तो जन्म भले ही दशरथ नन्दन का नवमी के दिन हुआ हो, परंतु उनका इशारा राजतिलक की ओर था।
वैसे राम मंदिर के कोषाध्यक्ष गिरि महाराज भी मोदी जी को दैवी अंश बता चुके हैं। उन्होंने ही वाराणसी के ज्योतिषाचारी को मंदिर का मुहूर्त निकालने को कहा था। उन ज्योतिशी महाराज ने बयान दिया था कि मुझसे कहा था गिरि जी ने की निश्चित अवधि मे ऐसा मुहूर्त निकले जो जल्दी हो। उनको बताया था कि शुभ मुहूर्त बहुत देर में है, (चुनाव के बाद की तिथि थी) इसलिए जैसा उन्होंने चाहा मैंने कर दिया। ऐसे मंदिर का उद्घाटन का मुहूर्त हुआ और अब जन्मदिवस को राजतिलक और शौर्य प्रदर्शन बना दिया। बात सिर्फ इतनी ही है कि मौजूदा सत्ता संस्थान किसी भी भांति राम के नाम को रन हुंकार की भांति चुनावों में इस्तेमाल करना चाहते है।
वरना जहां रामनवमी को ठुमक चलत रामचंद्रा बाजात पैंजनीय का गायन और जन्मदिन पर सुमधुर शहनाई की गूंज होनी थी। वह तो हुई नहीं। उल्टे संघ और सत्ता के कुछ ठेकेदारों ने बयान दिलवा दिया कि रामनवमी के जुलूस के आगे हवन कुंड की प्रतिकृति चलेगी, उसके पीछे घुड़सवार चलेंगे, जिनके पीछे मोटर साइकल सवार होंगे जो भगवा साफा मंे होंगे। पर लगता है कि भक्तों और संघ की भावनाओं से ज्यादा मंदिर ट्रस्ट हावी रहा। जो स्थानीय लोगों को अनावश्यक उत्तेजित नहीं करना चाहता था। क्यूंकी स्थानीय निवासी, योगी सरकार के सुंदरीकरण की मुहिम से अभी अपने टूटे हुए घरों – मंदिरों और दुकानों को ठीक नहीं कर पाये हैं। अयोध्या में भी वाराणस और मथुरा की भांति घरों घर में राम और शिव तथा कृष्ण की मूर्तियां विराजमाना है। विभिन्न क्षेत्रों के लोग यहां अवसरों पर आते हैं और अपने – अपने इलाके के लोगों के मंदिर मंे आश्रय पाते हैं।
पर्व स्नान के बाद वे मंदिरों में चढ़ावा देकर घरों को वापस लौट जाते हैं। पंडा –पुजारी की सदियों पुरानी परंपरा को समाप्त करके संघ – विश्व हिन्दू परिषद और बीजेपी एक मंदिर मे ही सारा चढ़ावा चाहते हैं। जिससे कि सारी सनातनी आबादी को भावनात्मक रूप से धरम के नाम से बहकाया जा सके| इसका उदाहरण इस साल की रामनवमी में दिखाई पड़ा। न तो गावों से लोगों की वैसी भीड़ थी जैसी पहले हुआ करती थी, न ही व्यापारियों का धंधा हुआ। और तो और बाहर से आने वाले व्यापरी भी छुन्छे हाथ हो लौटे। इतना ही नहीं स्थानीय बाजार मंे भी सन्नटा रहा। लोगों ने अपना दुख सोशल मीडिया पर जमकर निकाला है। स्थानीय अखबारों ने भी इस हालत के बारे में लिखा है।
गिनिज बुक ऑफ रेकॉर्ड में दिये जलवाने वाली उत्तर प्रदेश की सरकार भी लोगों की भीड़ इस रामनवमी मंे लाने मे विफल रही है। हालत इस साल इतने खराब थे कि जो हनुमान गड़ी सदैव भीड़ से गुलज़ार रहती थी वहां भी इस रामनवमी को सन्नाटा पसरा हुआ था। सड़कों पर सिर्फ वीआईपी लोगों की गिड़यों की ही आवाजाही थी। आम जन और स्थानीय लोग भी नदारद थे। इसका कारण था सरकार द्वारा अयोध्या दर्शन और मंदिर को किए जा रहे अति प्रचार को। जिस कारण गांवों से आने वाले लोग पुलिस के भय से अयोध्या से दूर ही रहे। सिवाय बीजेपी और संघ द्वारा प्रायोजित बसों और रेल यात्रियों के इस रामनवमी पर आम जनो की भागीदारी न के बराबर रही है।