इस बार की रामनवमी विशेष इसलिए है क्योंकि अयोध्या में सदियों बाद भव्य राम मंदिर का निर्माण हुआ है और रामलला की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हुई है। यूं तो अयोध्या विश्व भर में पहले से चर्चा के केंद्र में है, परंतु नई परिघटना के बाद इसकी महत्ता ज्यादा तीव्रता के साथ सदियों तक महसूस की जाएगी।
17 अप्रैल – राम नवमी पर विशेष
पिछले कुछ समय में प्रभु श्रीराम की चर्चा इतनी बार हुई है कि आधुनिक भारत के डिजिटल दुनिया में विचरण करने वाली पीढ़ी को भी अब श्रीराम की कथा कहानियों की समझ हो चुकी है। वैसे तो पूर्व से ही भारत के लोक जीवन के नायक श्रीराम ही हैं। विगत 22 जनवरी को अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम धूमधाम से संपन्न हो हो चुका है। अभी भी देश की हवा में श्रीराम नाम की तीव्र तरंगें तैर रही हैं। ऐसे में वर्ष 2024 का श्रीरामनवमी पर्व अपने आप में अति विशिष्ट है। इसे पूरे विश्व में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। भक्त अपनी अपनी श्रद्धा, मान्यता और रीति रिवाज के साथ मनाते हैं। आइए आज फिर श्रीराम की चर्चा करें।
इस बार की रामनवमी विशेष इसलिए है क्योंकि अयोध्या में सदियों बाद भव्य राम मंदिर का निर्माण हुआ है और रामलला की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हुई है। यूं तो अयोध्या विश्व भर में पहले से चर्चा के केंद्र में है, परंतु नई परिघटना के बाद इसकी महत्ता ज्यादा तीव्रता के साथ सदियों तक महसूस की जाएगी। श्रीराम के जन्म दिवस पर देश के विभिन्न क्षेत्रों में अलग अलग परंपराएं, अलग अलग रीति रिवाज राम की व्यापकता और विराटता दोनों को परिलक्षित करते हैं।
रामनवमी से जुड़े अनुष्ठान और रीति रिवाज पूरे भारत में एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न होते हैं। इनमें से कई परंपराओं में रामायण के प्रवचनों को सुनना और रामकथा पढ़ना, रथ यात्रा (रथ जुलूस), धर्मार्थ कार्यक्रम, नवाह्न मानस पाठ आयोजित करना, राम और सीता के विवाह की झांकी निकालना, श्रद्धा अर्पित करना इत्यादि शामिल है।
श्रीराम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान, जिन्होंने राम के जीवन की कहानी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, इनके प्रति समाज में अगाध श्रद्धा देखी जाती है। चैत्र नवरात्रि में शक्ति की उपासना भी की जाती है श्रीराम भी भारतीय समाज में शक्ति और मर्यादा के प्रतीक के रुप में संपूर्ण भारत में अलग अलग तरीके से पूजे जाते हैं।
कर्नाटक में, रामनवमी स्थानीय मंडलियों (संगठनों) द्वारा सड़कों पर मुफ्त पनाकम (गुड़ का पेय) और कुछ भोजन वितरित करके मनाई जाती है। इसके अतिरिक्त, बेंगलुरु में श्री रामसेवा मंडली द्वारा सबसे प्रतिष्ठित महीने भर चलने वाले शास्त्रीय संगीत समारोह का आयोजन किया जाता है। 80 साल पुराने इस संगीत समारोह की विशिष्टता यह है कि प्रसिद्ध भारतीय शास्त्रीय संगीतकार, अपने धर्म की परवाह किए बिना, दोनों शैलियों- कर्नाटक (दक्षिण भारतीय) और हिंदुस्तानी (उत्तर भारतीय) से अद्भुत समां बांधते हैं। उत्तर पूर्वी भारतीय राज्यों जैसे ओडिशा, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में, हिंदू समाज द्वारा श्री रामनवमी त्योहार धूम धाम से मनाया जाता है। आधुनिक इस्कॉन मदिर से जुड़े भक्त भी दिन भर उपवास रखते हैं और इस उत्सव को धूम धाम से मनाते हैं।
भारत के अलावा विदेशों में भी जहां जहां भारतीय समुदाय रहता है जैसे मॉरीशस, फिजी, गयाना, सिंगापुर, मलेशिया, त्रिनिनाद, इंडोनेशिया, थाईलैंड के साथ साथ अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी आदि देशों में भी श्री रामनवमी त्योहार मनाया जाता है। कई देशों में जानें वाले गिरमिटिया मजदूर आज भी अपनी परम्परा, रामायण, रामलीला के माध्यम से अपनी संस्कृति को बचाए हुए हैं।
रामायण का पाठ करके और भजन गाकर रामनवमी की परंपरा समकालीन समय में भी अफ्रीका के डरबन सहित कई देशों के हिंदू मंदिरों में हर साल मनाई जाती है। इस तरह हम कह सकते हैं कि राम और राम की परंपराएं न सिर्फ भारत, बल्कि पूरी दुनिया में धूम धाम से मनाई जाती है। राम का जीवन दर्शन आज भी सम्पूर्ण विश्व में सर्वाधिक लोकप्रिय और लोगों को मर्यादित जीवन दर्शन का संदेश देता है।(लेखक विश्व भोजपुरी सम्मेलन संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष और सामाजिक सांस्कृतिक विषयों के स्तंभकार हैं।)