राम सबके हैं। राम की व्यापकता भौगोलिक सीमाओं से परे है। राम के यहां कोई भेद नहीं है। वह राम जब सदियों की प्रतीक्षा के बाद अपने घर आ रहे हैं, उनका खुले मन से स्वागत होना चाहिए।
21वीं सदी की सबसे बड़ी सांस्कृतिक परिघटना अयोध्या में घटित हो रही है। शताब्दियों की प्रतीक्षा खत्म होने जा रही है। 22 जनवरी को प्रभु राम के बाल-विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा होने की तिथि तय है। सनातन परंपरा में मुंडे-मुंडे मति भिन्ना के कई दृष्टांत मिलते हैं। मतैक्य की संभावना न्यून होती है। इसलिए अगर मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा को लेकर शंकराचार्यों में भी एकमत नहीं है, तो कोई बड़ी बात नहीं है। लोक और शास्त्र का द्वंद्व तो सदैव रहा है। स्थान विशेष पर अनुष्ठान के तौर-तरीके बदल जाते हैं। मान्यता है कि स्वयं प्रभु श्री राम ने रामेश्वरम में शिव लिंग की स्थापना की थी समुद्र की रेत से। उनकी प्राण प्रतिष्ठा भी की। उसके लिए उन्होंने भवन निर्माण की प्रतीक्षा तो नहीं की थी।
मुझे अयोध्या जी का वह दृश्य याद आ रहा है, तब रामलला तख्त पर विराजमान थे, उसी रूप में उनकी पूजा होती रही। याद रखिए जो पूजित हैं, वह कहीं भी-कभी भी पूजनीय ही हैं। उसके लिए शुभ अशुभ क्या? राम सबके हैं। राम की व्यापकता भौगोलिक सीमाओं से परे है। राम के यहां कोई भेद नहीं है। वह राम जब सदियों की प्रतीक्षा के बाद अपने घर आ रहे हैं, उनका खुले मन से स्वागत होना चाहिए। राम शिव के आराध्य हैं। शिव राम के आराध्य हैं। राम सबरी के भी हैं। कोल के भी हैं। भील के भी हैं। जटायु के हैं। जामवन्त के हैं। सुग्रीव के हैं। निषाद राज के हैं। संतों के हैं। भक्तों के हैं। ‘सियाराम मय सब जग जानी’, यानी अखंड मंडलाकार हैं, उसके नायक रघुवर हैं। सकल जीव-जगत की राम में आस्था है।
वैसे राम को लेकर व्यर्थ की टिप्पणियां हो रही हैं। राम-काज के प्रति भाजपा का क्या आचरण है या कांग्रेस का आचरण कैसा है, कौन राम-काज में विघ्न डाल रहा है, कौन राम-काज को सुफल कर रहा है, यह जनता-जनार्दन देख रही है। वह महज तीन-चार महीनों के भीतर अपना फ़ैसला सुनाएगी, जिसका असर 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजों में दिखेगा। ऐसी संभावना है 1992 के बाद पहली बार राममंदिर चुनावी मुद्दा बन रहा है, बगैर किसी आंदोलन के। गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है, मानस में- ‘जाके प्रिय न राम वैदेही, तजिये ताहि कोटि बैरी सम, जद्यपि परम सनेही’। भावार्थ है कि जो राम और जानकी का विरोधी है, वह भले ही आपका कितना भी प्रिय क्यों ना हो, उसको बैरी की तरह ही पूर्ण रूप से त्याग देना चाहिए। लोक मानस राम के द्रोहियों को याद रखता है। खासतौर से जिस देश में धर्म लोगों की जीवन-पद्धति हो, वहां धार्मिक विश्वास का विशेष महत्व होता है। शायद यही कारण है कि इस प्राण प्रतिष्ठा समारोह के प्रति लोगों में आस्था आज देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी देखी जा रही है।(लेखक मातृभाषाओं के पैरोकार व सामाजिक-सांस्कृतिक विषयों के जानकार हैं।)