राहुल सामने खड़े हैं। मगर अब भी यह बात घर-घर तक पहुंचाना मुश्किल है। समस्या यह है कि उनकी पार्टी उनका मैसेज पहुंचा नहीं पा रही है। कांग्रेसके नेता उसी गोदी मीडिया पर डिपेंड हैं जो राहुल और कांग्रेस की विरोधीहै। राहुल को स्वार्थी कांग्रेसी नेताओं के जाल से निकलना होगा।राहुल को कुछ नए तरीके से सोचने की जरूरत है। मुकाबला आसान नहीं है।मोदी के साथ गोदी मीडिया और सोशल मीडिया है। अफवाह फैलाने का सौ सालपुराना तंत्र है। राहुल को नई टीम बनाना होगी। जिसके पास नए आइडिए हों। …आज राहुल को सबसे ज्यादा जरूरत है अपनी बात लोगों तक पहुंचाने की।धारणाएं टूटी हैं। मगर मोदी की नहीं। आएगा तो मोदी ही की अभी मजबूत धारणा है।
अगर बारीकी से देंखें तो चीजें आपको बदलती हुई दिखने लगेंगी। और अगर ऐसा ही रहा तो कुछ समय बाद बारीकी से देखने की जरूरत नहीं होगी बदलाव सबको साफ दिखने लगेगा। नौ साल में यह पहली शुरुआत है जब पूरे देश में यह मैसेज गया कि मोदी जीकी बिना मर्जी के राहुल लोकसभा में वापसी कर सकते हैं। राहुल गांधी को जबसाढ़े चार महीने पहले 24 मार्च को लोकसभा से निकाला गया था तो सरकार,भाजपा, मीडिया जोश में यह बता रहे थे कि अब राहुल वापस नहीं आ सकते। और2024 का अगला चुनाव भी नहीं लड़ सकते। खेल खतम!
मगर राहुल की जिस बात को कांग्रेस को सीखना चाहिए वह है उनकी हार नहींमानने की प्रवृति। ग्रेट फाइटर। इन्दिरा गांधी भी ऐसी ही थीं। चाचा संजयगांधी भी। इन्दिरा जी और संजय गांधी को राहुल से ज्यादा सताया गया था।इन्दिरा जी को रात को लोकसभा से गिरफ्तार करके तिहाड़ जेल ले जाया गयाथा। संजय गांधी पर पुलिस से लाठियों से हमला करवाया गया था। मगर दोनोंजानते ही नहीं थे कि डर क्या चीज होती है। और 1980 में ग्रेट वापसी की।
राहुल भी डर किस चिड़िया का नाम है नहीं जानते। लोकसभा से निकाले जाने केबाद वापस आने में लंबा समय लग गया। भाजपा, सरकार, मीडिया सभी ने माहौल बना दियाथा कि वे अब वापस नहीं आ सकते। मगर वे वापस आ गए। सन् 2024 लोकसभा चुनाव की स्क्रिप्ट लिख दी गई है। राहुल वर्सेस मोदी! अब यहसवाल खत्म हो गया कि मोदी के सामने कौन?
राहुल सामने खड़े हैं। मगर अब भी यह बात घर-घर तक पहुंचाना मुश्किल है।समस्या यह है कि उनकी पार्टी उनका मैसेज पहुंचा नहीं पा रही है। कांग्रेसके नेता उसी गोदी मीडिया पर डिपेंड हैं जो राहुल और कांग्रेस की विरोधीहै। नेता यह समझते हैं कि गोदी मीडिया जैसे उनको प्रचार देती है कांग्रेसऔर राहुल को भी दे देगी। मगर प्रचार प्रिय कांग्रेस के नेता तो हार्मलेस( हानिरहित) हैं। उन्हें चाहे जितना टीवी पर दिखा दो मोदी और भाजपा कोकोई नुकसान नहीं होगा। मगर कांग्रेस के बारे में बताना या राहुल की बातसुनाना प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के लिए मुश्किल बन जाएगा। इसलिए वेअपने आसपास घूमने वाले कांग्रेस के नेताओं को चमकाते हैं मगर राहुल कीखबर दबा जाते हैं।
कांग्रेस के नेताओं को इससे मतलब नहीं। यूपीए के समय भी वे केवल अपनाप्रचार करते थे। मीडिया से कहते थे आप हमारा ख्याल रखो हम आपका रखेंगे।नतीजा 2014 हारने के बाद यह कहते घूमते रहे कि हमें अपनी योजनाओं काप्रचार करना नहीं आया। अरे प्रचार तो आपने अपना किया। एक इन्हीं केद्वारा बढ़ाए गए दूरदर्शन एंकर ने अख़बार में लेख लिखा कि एक आदमी छह-छहकैमरे चाहता था। और जब वह अपने लिए छह कैमरे लगवाता था तो प्रधानमंत्रीमनमोहन सिंह और यूपीए अध्यक्ष के सरकारी कार्यक्रमों का कवरेज भी नहीं होपाता था। सोनिया गांधी के एक प्रोग्राम का रायबरेली में कवरेज न होने परदूरदर्शन ने सफाई दी थी कि तार छोटा पड़ गया था!
तो राहुल का मैसेज लोगों तक नहीं पहुंच रहा है। राहुल कितने गरीब समर्थकहैं यह लोग नहीं बता सकते। मगर यह जरूर बताते हैं कि मोदी जी का पांचकिलो अनाज मिल रहा है। मनरेगा जैसी अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर सराही गईरोजगार गारंटी योजना के बारे में गांव वाले बात नहीं करते हैं। मगर खालीपड़े गैस सिलेन्डरों का प्रचार इतना है कि उनसे पूछो तो वे उज्जवला योजनाका नाम जरूर बता देंगे।
राहुल आम जनता की लड़ाई कितनी लड़ रहे हैं यह कांग्रेस के नेता नहीं बतासकते। वे यह जरूर बता सकते हैं कि उनकी कितनी तपस्या है मगर उसका प्रतिफलनहीं मिला। हमें तो कुछ मिल नहीं रहा। सब पद प्रतिष्ठा पैसा पाया। मगर आपजिससे भी बात करो यही कहता मिलगा कि हमें तो कोई पूछ नहीं रहा। यहां तककि सबसे बड़े वाले कांग्रेसी भी यही शिकायत करते थे। मुख्यमंत्री,केन्द्रीय मंत्री बनाते थे। राज्यपाल और दूसरे पदों की तो बात छोड़िए। वेजेनरेशन चेंज के बाद कुछ समय के लिए पावर से दूर हुए तो राहुल के खिलाफबोलने लगे। हमारी कोई नहीं सुन रहा। पूरा यूपीए चलाया। मगर हसरतें नहींगईं। यह जो राहुल के खिलाफ जी 23 बना था वह ऐसे ही नहीं बन गया था। कोईसत्ता से दूर रहने वाला कांग्रेसियों के दिमाग की उपज नहीं थी। जिन्हेंसबसे ज्यादा मिला वही मास्टर माइंड थे।
तो राहुल को अपनी नई पारी में यह सोचना होगा कि उनकी बात दूर दूर तक कैसेपहुंचे। यूपीए के समय में कांग्रेस के मंत्री और पार्टी संगठन केपदाधिकारी किसी से नहीं मिलते थे। गोदी मीडिया और दलाल जरूर अपवाद थे।
तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कई बार मंत्रियों और संगठन के बड़ेपदाधिकारियों से कहा कि जनता से नहीं मिलते हो कार्यकर्ताओं से तो मिलाकरो। मगर उन्होंने कार्यकर्ताओं से मिलने के बदले उनका अपमान जरूर किया।नतीजा कार्यकर्ता घर में बैठ गया। यूपीए के समय की ही बात है राहुल गांधीबुंदेलखंड के एक गांव में गए एक वृद्धा ने उन्हें पुराना बक्स खोल करदिखाया। गांधी टोपी, तिरंगा, सफेद धोती कुर्ता रखा था। कहने लगीं कि अगर वे होते तो यह पहन कर गांव के बाहर आपके स्वागत में खड़े होते। 15अगस्त, 26 जनवरी को यही पहनकर सुबह गांव में प्रभातफेरी निकलाते थे। बेटाभी पास में था। पूछा यह जाता है। कहने लगा कि पहले जाते थे। मगर अबकांग्रेसी नेता पूछते ही नहीं हैं। अपमान और करते हैं। तो घर ही बैठ गए।
यह हजारों हजार कार्यकर्ता इन्दिरा गांधी का संदेश घर घर पहुंचाता था।कोई गांव ऐसा नहीं था जहां कांग्रेसी कार्यकर्ता नहीं हो। राहुल को उसेफिर से वापस लाना होगा। कोई गोदी मीडिया, व्हट्सएप ग्रुप कांग्रेसी कार्यकर्ता का मुकाबला नहीं कर सकता। पीढ़ी दर पीढ़ी उसमें कांग्रेस केऔर परिवार के लिए काम करने का जज्बा है। मगर कांग्रेस के नेताओं ने हीसत्ता के समय अपने चमचों और दलालों का आगे रखकर सच्चे कार्यकर्ताओं कॉ पीछे धकेल दिया।
अब राहुल को कुछ नए तरीके से सोचने की जरूरत है। मुकाबला आसान नहीं है।मोदी के साथ गोदी मीडिया और सोशल मीडिया है। अफवाह फैलाने का सौ सालपुराना तंत्र है। जो अभी तक गांधी, नेहरू का चरित्रहनन कर रहा है। राहुल को नई टीम बनाना होगी। जिसके पास नए आइडिए हों। सोनिया गांधी भीअगर केवल इन कांग्रेसियों के भरोसे रहतीं तो मनरेगा, किसान कर्जा माफी,आरटीआई, फूड सिक्योरटी नहीं ला पातीं। एडवाइजरी काउंसिल बनाना पड़ी थी।
आज राहुल को सबसे ज्यादा जरूरत है अपनी बात लोगों तक पहुंचाने की।धारणाएं टूटी हैं। मगर मोदी की नहीं। आएगा तो मोदी ही की अभी मजबूत धारणाहै। नरेटिव कुछ हद तक राहुल की पप्पू छवि का टूटा है। भारत जोड़ो यात्रा,कर्नाटक जीत, अमेरिका के दौरे में वहां के प्रबुद्ध प्रभावशाली लोगों सेमिलना, वाशिंगटन प्रेस क्लब में प्रेस कान्फ्रेंस और इन सबसे गएअन्तरराष्ट्रीय स्तर पर यह संदेश कि भारत में एक विश्व दृष्टि रखने वालानेता है से बना माहौल और फिर इन सब प्रभावों की वजह से बना 26 दलों कागठबंधन इन्डिया और लास्ट अभी लोकसभा में वापसी ने राहुल की नई छवि बनाईहै। मगर इसे गांव गांव घर घर पहुंचाने की बड़ी चुनौती है।
मोदी के सामने राहुल की नई ताकतवर छवि को पेश करना होगी। लड़ाई नरेटिव (धारणाओं ) की है। इस खेल में मोदी को महारत है। मीडिया, आईटी सेल, भक्तसब उनके साथ हैं। राहुल के पास क्या है? विरथ रघुवीरा! केवल सत्य की ताकत से चुनाव नहीं जीता जा सकता। अभी समयहै। राहुल को और खरगे जी को सोचना होगा। नई टीम। काम करने वाले लोग। सोशलमीडिया। मेन स्ट्रीम चैनल के मुकाबले यू ट्यूब चैनल। वह अखबार जो डरेनहीं, 9 साल से केवल जनता की दम पर संघर्ष कर रहे हैं। सबकी तरफ थोड़ा
देखना होगा। घेरे हुए कांग्रेसियों से बाहर निकलना होगा। तभी 2024 कीलड़ाई हो सकती है। इस जंग खाई सेना और पुराने उपकरणों से तो कुछ होने सेरहा!