दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल एक बार फिर निराश हैं। इस बार उन्हें निराशा दिल्ली प्रशासनिक सेवा बिल के लोकसभा में पास हो जाने से हुई है तो कल राज्यसभा में पास हो जाने होनी तय है। पर केजरीवाल के साथ ऐसा कोई पहलीबार नहीं हुआ ।दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने की भी उन्हें उम्मीद रही होगी पर सरकार के भरोसे के बाद भी जब ऐसा नहीं तो बेचारे निराश हुए थे। या यूँ कहिए कि केजरीवाल की एक पूर्ण राज्य का सीएम बनने की इच्छा अभी तक अधूरी ही है। दिल्ली से दिल हटा अपने केजरीवाल ने पंजाब से ऐसी उम्मीद रखी थी पर वहाँ भी गच्चा खा गए। और भगवंत मान को सीएम पद का दावेदार बना चुनाव धमाके से जीता और पार्टी सत्ता में आई तो मान मुख्यमंत्री बने। पर खिलाड़ी की तरह केजरीवाल ने पंजाब में अपने चहेते राघव चड्डा को पहले पंजाब से राज्यसभा भेजा और फिर पंजाब की कमान दिल्ली से चले यह सोचकर चड्डा को सुपर सीएम बना दिया।
और चड्डा भी पंजाब के कई फ़ैसलों में अपनी भूमिका निभाने लगे। अब सीएम मान हों और रुतबा किसी और तो भला मान बर्दाश्त भी कैसे करते सो दिल्ली के न चाहते हुए भी उन्होंने कई फ़ैसले ले डाले। या यूँ कहिए कि संगरूर की हार से निराश मान को जब लुधियाना उप-चुनाव में जीत मिली तो वे किसी से खुद को कम भी कैसे समझते और फिर क्या सीएम सुपर सीएम पर भारी दिखने लगे। मान ने अपनी हैसियत बढ़ाई ।पर दिल्ली अध्यादेश पर मान की ज़रूरत पड़ी तो केजरीवाल उन्हें अपना सारथी बना कई राज्यों की हवाई सेवा लेनी शुरू की। और तब मान फिर केजरीवाल के सारथी बन कर रह गए और चड्डा सुपर हो लिए। पर मान ने एक के बाद फ़ैसले लेकर केजरीवाल को यह संदेश ज़रूर दे दिया कि पंजाब मान का है न कि पंजाब की कमान दिल्ली से चले। भला हो अपने मान और केजरीवाल का कि लोकसभा चुनावों के लिए वे कांग्रेस के साथ सीटों को लेकर क्या गणित बैठाना चाहते हैं और कितने पर होती है मान की रज़ामंदी ।अब 2024 के चुनाव में केजरीवाल कैसे मान से बड़ी लकीर खींच पाते हैं ।देखना बाक़ी है।