राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

कोऊ नृप होंऊ हमें का हानि…?

Image Source: ANI

भोपाल। अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में चार साल बाद पुनः डोनाल्ड ट्रम्प का चुना जाना अपने आप में एक सुखद आश्चर्य है, उनकी जीत को विश्व के सभी देश अपने-अपने नजरिये से दोख रहे है, इनमें तटस्थ विदेश नीति वाला वाला हमारा देश भी शामिल है, यद्यपि भारत की मौजूदा मोदी सरकार प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के पंचशील सिद्धांतों को लाल बस्ते में लपेट कर ताक में रख चुकी है और अपने नजरिये से अपनी विदेश नीति तैयार कर सरकार चला रही है, किंतु आज भी हर मौजूदा संदर्भों में देश के वयोवृद्ध राजनीतिक पंडितों को नेहरू के पंचशील सिद्धांतों की याद आती है और उनकी सोच आज भी यही है कि इन पंचशील सिद्धांतों में भारत की हर समस्या का हल निहित है, फिर वह समस्या चाहे घरेलू हो या विदेशी। आज भी इस संदर्भ में नेहरू को याद किया जाता है।

अब मौजूदा संदर्भों में आज जबकि विश्व की कुछ महान शक्तिशाली शक्तियां अपने स्वार्थ के लिए विश्व युद्ध के ताने-बाने बुन रही है और सभी अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने में व्यस्त है, ऐसे में भारत जैसे शांतिप्रिय देश के लिए क्या जरूरी है? इस प्रश्न का उत्तर खोजने की जरूरत है। यद्यपि हमारी नीति प्रारंभ से ही विश्वशांति की रही है, किंतु यदि अमेरिका व रूस जैसे देश शक्ति प्रदर्शन की स्पर्द्धा में शामिल होते है तो क्या किया जा सकता है? ट्रम्प की जीत को आज इसी संदर्भ में देखा-परखा जा रहा है।

जहां तक भारत का सवाल है, हमारी नीति तो विश्व राजनीति के संदर्भ में ‘‘कोऊ नृप होऊ, हमें का हानि’’ की ही रही है, हम अपने स्तर पर अपने पर ही ध्यान देते है, किंतु ऐसे में यदि हमारे पड़ौसियों को कोई दिक्कत हो तो क्या किया जा सकता है? यद्यपि भारत और अमेरिका के राष्ट्राध्यक्षों के आपसी सम्बंध अब तक काफी माधुर्य रहे है और भारत ‘विश्वगुरू’ का दर्जा होते हुए भी हर स्थिति में धीर-गंभीर रहा है, आज भी चाहे मौजूदा प्रधानमंत्री ने नेहरू के पंचशील सिद्धांतों को चाहे त्याग दिया हो, किंतु इन्हीं सिद्धांतों पर आधारित भारत के संविधान की आज भी उतनी ही कद्र की जाती है और हम उन्हीं सिद्धांतों पर चल रहे है। हमारी इसी ‘तटस्थनीति’ के कारण विश्वस्तर पर हमारी कद्र और हमारा सम्मान है और हमारी इसी नीति के कारण विश्व का हर देश हमें सम्मान की नजर से देख रहा है।

अब वर्तमान संदर्भों में जबकि अमेरिका के डोनाल्ड ट्रम्प फिर राष्ट्रपति बनने जा रहे है, तब उनकी जीत को भारत अपने जनहित में परखने की तैयारी कर रहा है, यद्यपि 2016 से 20 तक का राष्ट्रपति के रूप में ट्रम्प का शासनकाल भारत के लिए कई दृष्टि से सुखद रहा है, हमें अमेरिका से हर तरह की मदद् मिली, लेकिन विदेश नीति के मामले में भी ‘‘एक हाथ से ताली नही बजती’’ की कहावत पूरी तरह चरितार्थ होती है सहयोग दाता और सहयोग के आकांक्षी के बीच सहयोग की भावना ही अहम् भूमिका अदा करती है। यही नीति मोदी के भारत और ट्रम्प के अमेरिका के बीच अहम् सिद्ध होने वाली है।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें