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भविष्यद्रष्टा प्रधानमंत्री का वक्तव्य

बाबा साहेब आंबेडकर देश में समान नागरिक कानूनों के सबसे बड़े पैरोकार थे। उन्होंने संविधान सभा की बहस में साफ तौर पर कहा था कि विवाह, तलाक, परिवार, संपत्ति के बंटवारे आदि के नियम सभी नागरिकों के लिए एक समान होने चाहिए। बाबा साहेब ने समान नागरिक कानून का प्रस्ताव रखा था, जो उस समय संविधान सभा के मुस्लिम सदस्यों व कुछ अन्य सदस्यों के विरोध की वजह से स्वीकार नहीं किया जा सका।

एस. सुनील

लाल किले की ऐतिहासिक प्रचीर से दिया गया प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का 11वां भाषण एक भविष्यद्रष्टा प्रधानमंत्री का वक्तव्य है, जिसे उसकी सम्पूर्णता में देखने और समझने की जरुरत है। इसमें प्रधानमंत्री की समस्त समाज दृष्टि समाहित है तो साथ ही देश के राजनीतिक और आर्थिक भविष्य का समग्र दृष्टिकोण भी है। प्रधानमंत्री ने लाल किले से अपने उन तमाम संकल्पों को दोहराया है, जिनके आधार पर भविष्य के भारत का निर्माण होना है। उन्होंने राजनीति को परिवारवाद के श्राप से मुक्त करने का आह्वान किया और इसके लिए एक रूपरेखा भी प्रस्तुत की। उन्होंने देश को भ्रष्टाचार के दलदल से निकालने का संकल्प दोहराया। प्रधानमंत्री ने शिक्षा के क्षेत्र में आमूलचूल बदलाव की रूपरेखा पेश की तो भारत को विनिर्माण क्षेत्र का हब बनाने की प्रस्तावना प्रस्तुत कर युवाओं को सम्मानजनक रोजगार देने की आधारशिला रखी। प्रधानमंत्री ने 2047 तक भारत को विकसित और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने के उपायों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने उच्च व तकनीकी शिक्षा के लिए होने वाले प्रवासन को रोकने के उपाय सुझाए तो साथ ही भारत को खेल महाशक्ति बनाने की दिशा में पहल का वादा किया। प्रधानमंत्री ने 2036 में भारत में ओलंपिक के आयोजन का संकल्प जताया है, जिसका हर देशवासी को दिल से समर्थन करना चाहिए।

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का अपने तीसरे कार्यकाल का यह पहला संबोधन था और माना जा रहा था कि वे गठबंधन की सरकार के मुखिया के तौर पर रूटीन का भाषण देंगे। ऐसा मानने का कारण यह था कि पहली बार श्री नरेंद्र मोदी को गठबंधन सरकार चलानी पड़ रही है। परंतु प्रधानमंत्री के भाषण पर कहीं से भी गठबंधन के किसी दबाव की छाया नहीं दिखी। उन्होंने दो बड़ी नीतिगत बातें कहीं, जिनके बारे में विस्तार से चर्चा उपयोगी होगी। उन्होंने सेकुलर समान नागरिक संहिता की आवश्यकता बताई और साथ ही यह भी कहा कि बार बार होने वाले चुनावों की वजह से देश की प्रगति बाधित होती है, इसलिए ‘एक देश, एक चुनाव’ का सिद्धांत अपनाया जाना चाहिए। इसके लिए उन्होंने सभी दलों से साथ आने की अपील भी की। ये दोनों नीतिगत बातें आर्थिक रूप से मजबूत और धार्मिक, सांस्कृतिक व सामाजिक रूप से ज्यादा बेहतर व समावेशी भारत की नींव रखने वाली हैं।

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से अपने भाषण में जैसे ही सेकुलर समान नागरिक संहिता की बात कही वैसे ही कांग्रेस ने इसे जातीय रंग देने का प्रयास शुरू कर दिया। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कहा कि देश को सेकुलर समान नागरिक कानून की जरुरत है, सांप्रदायिक सिविल कोड की नहीं। उन्होंने आगे कहा कि जो कानून धर्म के आधार पर देश को बांटते हैं, वो आधुनिक समाज नहीं बनाते हैं, सेकुलर सिविल कोड से धर्म के आधार पर भेदभाव से मुक्ति मिलेगा। अपनी आदत से मजबूर कांग्रेस ने प्रधानमंत्री के इस भाषण को अलग रंग देते हुए कहा कि देश में लागू सिविल कोड को सांप्रदायिक कहना बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर का अपमान है। लेकिन क्या सचमुच ऐसा है? जिन लोगों ने संविधान पढ़ा है या संविधान सभा की बहसों को थोड़ा बहुत भी पढ़ा है उनको पता है कि बाबा साहेब आंबेडकर देश में समान नागरिक कानूनों के सबसे बड़े पैरोकार थे। उन्होंने संविधान सभा की बहस में साफ तौर पर कहा था कि विवाह, तलाक, परिवार, संपत्ति के बंटवारे आदि के नियम सभी नागरिकों के लिए एक समान होने चाहिए। बाबा साहेब ने समान नागरिक कानून का प्रस्ताव रखा था, जो उस समय संविधान सभा के मुस्लिम सदस्यों व कुछ अन्य सदस्यों के विरोध की वजह से स्वीकार नहीं किया जा सका।

उस समय समान नागरिक संहिता लागू करने की जिम्मेदारी आगे की सरकारों को सौंपी गई थी। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 44 में प्रावधान किया गया। लेकिन दुर्भाग्य से आगे की सरकारों ने राजनीतिक मजबूरियों या अपनी तुष्टिकरण की राजनीति की वजह से इसे लागू नहीं किया। 1954 में जिस समय हिंदू कोड बिल लाया जा रहा था उस समय भी पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार के सामने यह अवसर था कि वे परिवार, विरासत और विवाह आदि के मामले में शरिया कानूनों की जगह समान कानून लागू करें। लेकिन उन्होंने यह कह कर पीछा छुड़ा लिया देश अभी इसके लिए तैयार नहीं है। यह देश की बात नहीं थी, बल्कि कांग्रेस की अपनी राजनीति की बात थी। अब प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने राजनीतिक मजबूरियों को ताक पर रख कर इस दिशा में बड़ी पहल की है। पहले सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम समाज में प्रचलित तीन तलाक के नियम को अवैध करार दिया और उसके बाद केंद्र की मोदी सरकार ने इसे आपराधिक कृत्य बनाया। इसी तरह कुछ भाजपा सरकारों ने बाल विवाह रोकने के कानून पर सख्ती से अमल शुरू किया है। बहुविवाह रोकने के लिए याचिकाएं अदालत में दायर की गई हैं। सोचें, बहुविवाह की प्रथा कितनी आदिम प्रथा है और यह महिलाओं के ऊपर कितना बड़ा मानसिक बोझ डालने वाली बात है! उम्मीद करनी चाहिए कि श्री नरेंद्र मोदी की सरकार अपने इस कार्यकाल में एक पंथनिरपेक्ष समान नागरिक संहिता लाने की दिशा में आगे बढ़ेगी और तमाम जाति व धर्म की महिलाओं की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करेगी। प्रधानमंत्री की इस बात का पूरे देश को स्वागत और समर्थन करना चाहिए।

प्रधानमंत्री ने दूसरी नीतिगत बात ‘एक देश, एक चुनाव’ को लेकर कही।  इस बार प्रधानमंत्री निर्णायक दिखे। उनकी सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई थी, जिसने पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने के विचार पर अपनी रिपोर्ट पेश कर दी है। सरकार जनगणना करा कर लोकसभा सीटों के परिसीमन और महिला आरक्षण के लिए संसद से पारित नारी शक्ति वंदन कानून को लागू करने के लिए पूरी तरह से तैयार है। उम्मीद करनी चाहिए कि अगले पांच साल में इस दिशा में पर्याप्त प्रगति होगी और पहले से तय कार्यक्रम के हिसाब से 2029 के आम चुनावों के साथ ही देश के सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव भी हो जाएंगे, जिसमें महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण लागू होगा। जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा है एक साथ चुनाव होते हैं तो बार बार के चुनावों से प्रगति के रास्ते में आने वाली बाधा स्थायी तौर पर दूर होगी।

प्रधानमंत्री ने देश की राजनीति को परिवारवाद के श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए एक लाख ऐसे युवाओं को राजनीति में लाने की बात कही है, जिनके परिवार का कोई दूसरा सदस्य पहले से राजनीति में नहीं हो। यह अपने आप में एक बड़ी महत्वाकांक्षी योजना है। अगर इस पर अमल होता है तो देश की राजनीति और उसके जरिए शासन की नीचे से ऊपर तक की व्यवस्था में नई प्राण वायु का संचार होगा। देश की राजनीति में एक नई संस्कृति का विस्तार होगा। तमाम पारंपरिक राजनीतिक पूर्वाग्रहों से मुक्त युवाओं के राजनीतिक व शासन की व्यवस्था में आने से नए विचारों का समावेश होगा, जो आधुनिक भारत के सपनों को पूरा करने वाला होगा। प्रधानमंत्री के इस सुझाव का भी स्वागत होना चाहिए और सभी पार्टियों को आगे बढ़ कर इस प्रस्ताव को अपनाना चाहिए। इसे किसी एक परिवार या एक पार्टी या कुछ पार्टियों के विरूद्ध मानने की बजाय एक सुसंगत विचार के तौर पर स्वीकार करना चाहिए क्योंकि राजनीतिक विरासत और पूर्वाग्रहों से मुक्त युवा ही देश को नई दिशा दे सकते हैं।

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखने का संकेत दिया। उन्होंने बड़ी पीड़ा के साथ कहा कि भ्रष्टाचार का महिमामंडन नहीं होना चाहिए। हम सब लोगों ने देखा है कि किस तरह से कई राष्ट्रीय और प्रादेशिक पार्टियां भ्रष्टाचार का महिमामंडन कर रही हैं। अपने नेताओं के भ्रष्ट आचरण को राजनीतिक दांवपेंच से ढकने की कोशिश कर रही हैं। केंद्रीय एजेंसियां और अदालतें उनके खिलाफ कार्रवाई कर रही हैं लेकिन वे पूरी बेशर्मी से केंद्र की सरकार को जिम्मेदार ठहरा रही हैं। यह बंद होना चाहिए। देश के नागरिक इसे देख और समझ रहे हैं। तभी प्रधानमंत्री ने कहा कि देश के नागरिक भ्रष्टाचार की दीमक से परेशान हैं। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार करने वाले देश और समाज को दूषित करने का बीज बो रहे हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है विपक्षी पार्टियां भ्रष्टाचार के आरोप को एक तमगे की तरह धारण करके इस तर्क से जनता को गुमराह कर रही हैं कि उनको विपक्ष में होने की वजह से परेशान किया जा रहा है। लेकिन क्या नागरिक ऐसे नेताओं की हकीकत नहीं जानते हैं? भ्रष्टाचार के खिलाफ मोदी सरकार की कार्रवाई ने अनेक भ्रष्ट नेताओं को सलाखों के पीछे पहुंचाया है। अब उन्होंने और सख्ती से इस मामले में काम करने का संकल्प दोहराया है। उम्मीद करनी चाहिए कि इस बार ज्यादा बेहतर ढंग के राजनीति की सफाई हो पाएगी।  (लेखक सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) के प्रतिनिधि हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

By Naya India

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