राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

बड़े काम की है हमारी तीसरी आंख…..

कई आध्यात्मिक परंपरायें इसे “तीसरी आंख” कहती हैं। कुछ भौतिक और आध्यात्मिक दुनिया के बीच का सेतु, परम ज्ञान प्राप्त करने की सीढ़ी। हिंदू और बौद्ध धर्म की चक्र अवधारणा वाली तांत्रिक परम्पराओं के मुताबिक शरीर का छठा चक्र जो आधार है जागरूकता, धारणा और आध्यात्मिक संचार का। मेडिकल साइंस के अनुसार शरीर के रहस्यमय अंगों में से एक। रहस्यमयता इतनी कि वैज्ञानिकों को अभी तक इसके सभी कार्यों की पूरी जानकारी नहीं। वजह मस्तिष्क के केंद्र में इसकी पोजीशन और प्रकाश से सम्बन्ध। नाम है “पीनियल ग्लैंड”।

दिमाग के पिछले भाग के केन्द्र में स्थित एक छोटे पाइनकोन जैसी 0.1 ग्राम वजनी, 0.8 सेंटीमीटर लम्बी यह ग्रंथि हिस्सा है हमारे इंडोक्राइन सिस्टम का। ये बनाती है मेलाटोनिन और कुछ शक्तिशाली न्यूरो-रसायन, जो ब्लड के जरिये अंगों, त्वचा, मांसपेशियों और ऊतकों तक संदेश पहुंचाकर शरीर को बताते हैं कि कब, क्या करना है।

मेलाटोनिन है चरम शांति का आधार 

अंधेरे में खुलती है हमारी तीसरी आंख यानी पीनियल ग्लैंड और रिलीज करती है मेलाटोनिन। इस हार्मोन का नींद में अहम रोल हैं। यह प्रकाश और अंधेरे से प्रतिक्रिया कर शरीर की सर्केडियन रिद्म सिंक्रनाइज़ करता है। सर्केडियन रिद्म यानी 24 घंटे का वह चक्र जिसमें हम सोते-जागते हैं। इसमें गड़बड़ी, मतलब शारीरिक और मानसिक व्यवहार में बदलाव। अंधेरा होते ही पीनियल ग्लैंड मेलाटोनिन बनाने लगती है और प्रकाश के संपर्क में आने पर इसका बनना कम हो जाता है।

वैज्ञानिक इसे “नींद का हार्मोन” कहते हैं। हालांकि यह नींद के लिए ज़रूरी नहीं, फिर भी शरीर में मेलाटोनिन का स्तर अधिक होने पर अच्छी नींद आती है, मूड ठीक रहता है, तनाव घटता है, ध्यान केन्द्रित करने में मदद मिलती है, डिप्रेशन और सिजोफ्रेनिया जैसी बीमारयां दूर रहती हैं।

अच्छी नींद के अलावा यौवन, यौन विकास और प्रजनन में मेलाटोनिन की अहम भूमिका है। महिला शरीर में इसके सही स्तर का अर्थ है समय पर पीरियड और ओव्यूलेशन। यह डिंब-ग्लैंड साइकल कंट्रोल करने वाले रसायन रेगुलेट कर एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टरॉन, टेस्टोस्टेरॉन जैसे सेक्स हारमोन्स में संतुलन बनाकर प्रजनन शक्ति बढ़ाता है।

मेलाटोनिन, दिमाग को माइटोकॉन्ड्रियल डिस्फंक्शन, ग्लूकोज मेटाबॉलिज्म अल्टरेशन और सूजन जैसे विकारों से बचाता है। न्यूरोडिजनरेशन रोककर अल्जाइमर और पार्किन्सन का रिस्क कम करता है। ब्रेन एडिमा से बचाने के लिये ब्लड-ब्रेन-बैरियर इंटीग्रिटी बनाये रखता है। ब्लड में मेलाटोनिन लेवल सही होने का अर्थ है ब्लड प्रेशर, हार्ट रेट और वैस्कुलर रजिस्टेंस ठीक होना।

विशेषज्ञ बताते हैं कि पीनियल ग्लैंड से उत्पादित मेलाटोनिन की एंटीट्यूमर प्रॉपर्टीज शरीर में ट्यूमर नहीं बनने देतीं। यह कोशिका स्तर पर कैंसर ग्रोथ धीमी करता है। रिसर्च से सामने आया कि रात में जागने से मेलाटोनिन बनने में पड़ने वाला व्यवधान हार्मोनल कैंसर की दर अधिक होने का बड़ा कारण है।
वजह क्या मेलाटोनिन कम बनने की?

नींद डिस्टर्ब होने के अलावा ऐसा होता है पीनियल ग्लैंड में खराबी आने पर। यह खराबी आती है कैल्सीफिकेशन, ट्यूमर या सिर में चोट लगने से। कैल्सीफिकेशन, पीनियल ग्लैंड की आम समस्या है जो शुरू होती है उम्र बढ़ने पर। इसमें कैल्शियम जमा होने से ब्रेन टिश्यू सख्त होने लगते हैं जिसका असर दिखाई देता है अल्जाइमर, माइग्रेन और क्लस्टर सिरदर्द के रूप में।

कार दुर्घटनाओं की 50 प्रतिशत चोटें पीनियल ग्लैंड तक असर करती है। सिर में लगी चोट यानी ट्रॉमेटिक ब्रेन इंजरी से मेलाटोनिन और अन्य रसायनों के बनने की प्रक्रिया बाधित होने से बेसुधी, सिरदर्द, दौरे, ब्लरी विजन, हकलाहट और शार्ट टर्म मेमोरी लॉस जैसी समस्यायें हो जाती हैं।

पीनियल ग्लैंड ट्यूमर बहुत रेयर है। अगर होता भी है तो बच्चों और 40 से कम उम्र के वयस्कों में। ज्यादातर मामलों में ये कैंसरस नहीं होते लेकिन दिमाग के अलग-अलग भागों पर इनका दबाब पड़ने से सेरेब्रो-स्पाइनल फ्लूड प्रवाह बाधित होता है जिससे डबल विजन, बोलने में दिक्कत, हाथ-पैरों में कमजोरी जैसी समस्यायें हो जाती हैं।

पता कैसे चलता है खराबी का?

लक्षण उभरने पर पहले शरीर में मेलोटोनिन लेवल ज्ञात करने के लिये ब्लड टेस्ट करते हैं। लेवल कम होने का अर्थ है पीनियल ग्लैंड में खराबी। खराबी जानने के लिये एक्स-रे, एमआरआई और सीटी स्कैन करते हैं। अगर समस्या गम्भीर नहीं है तो दवाएं प्रिस्क्राइब की जाती हैं। मामला गम्भीर होने पर रेडियेशन, कीमोथेरेपी या सर्जरी (पीनियलेक्टॉमी) करते हैं।

मेलाटोनिन सप्लीमेंट्स कितने उपयोगी
बहुत से लोग नींद के लिये मेलाटोनिन सप्लीमेंट्स लेते हैं। ये शरीर को सुलाने में मदद करते हैं। एक शोध के मुताबिक मेलाटोनिन सप्लीमेंट्स जेट लैग, टाइम जोन स्विचिंग, डिलेड स्लीप फेज डिस्ऑर्डर, ऑटिस्टिक, हाई एंग्जॉयटी जैसी समस्याओं से उबरने में उपयोगी हैं। एक शोध के मुताबिक 1999 से मेलाटोनिन सप्लीमेंट का उपयोग लगातार बढ़ा है, वजह बदलती जीवनशैली। इसमें प्रमुख हैं नाइट शिफ्ट में काम, नाइट पार्टीज और एक टाइम जोन से दूसरे टाइम जोन में हवाई यात्रा। ऐसे मामलों में इसका अल्पकालिक उपयोग सुरक्षित है, लम्बे समय तक लेने से सुबह उठने पर सुस्ती, डरावने सपने, ब्लड प्रेशर में बढ़ोत्तरी, शारीरिक तापमान में गिरावट, बेचैनी और भ्रम जैसी शिकायतें होने लगती हैं।

क्रोनिक इन्सोमनिया पीड़ितों पर मेलाटोनिन सप्लीमेंट असर नहीं करता। ये बर्थ कंट्रोल पिल्स, ब्लड थिनर, इम्यूनोसप्रेसेंट, फ्लूवोक्सामाइन, निफ़ेडिपिन और ब्लड में शुगर घटाने वाली दवाओं से रियेक्ट करते हैं। यदि आप इनमें से कोई भी दवा ले रहे हैं तो सप्लीमेंट लेने से पहले डॉक्टर से बात करें। 65 वर्ष से ज्यादा आयु वाले, क्रोनिक बीमारियों से पीड़ित, प्रेगनेन्ट या स्तनपान कराने वाली महिलायें इसके सेवन से बचें तो बेहतर होगा।

बिना सप्लीमेंट कैसे ठीक रहे मेलाटोनिन लेवल?

शरीर में मेलोटोनिन के सही लेवल के लिये जरूरी है गहरी नींद। इसके लिये रात को सोने का समय फिक्स करें। कंप्यूटर, टैबलेट और सेल फ़ोन जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बेडरूम से बाहर रखें। बेडरूम को जितना संभव हो उतना ठंडा, अंधेरा और शोर मुक्त रखें। सोने से कुछ घंटे पहले कैफीन, शराब या भारी भोजन से बचें।

अगर बिना सप्लीमेंट, शरीर में मेलाटोनिन लेवल मेन्टन करने के लिये डाइट में बादाम, अखरोट, पिस्ता, टमाटर, चेरी, अंगूर, केला, कीवी और मशरूम शामिल करें। दिन में तीन-चार बार ग्रीन टी पियें। सोते समय गरम दूध पीने की आदत डालें। कैफीन युक्त पेय पदार्थों से परहेज करें। स्मोकिंग और शराब छोड़ें।

और अंत में….

जब इंटरनल बीमारी या चोट से पीनियल ग्लैंड को क्षति पहुंचती है तो शरीर में हार्मोन असंतुलन होने से बाधित होता है हमारी नींद का पैटर्न। ऐसा दीर्घकालिक व्यवधान हृदय, दिमाग और फर्टीलिटी से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म देता है। शोधकर्ता अभी भी पीनियल ग्लैंड और मेलाटोनिन को पूरी तरह समझ नहीं पाए हैं। इसे पूरी तरह समझने के लिये रिसर्च जारी है।

आध्यात्मिकता और संस्कृतियों से जुड़ी कई परम्परायें इसे परम ज्ञान हासिल करने का जरिया मानती हैं। शरीर में मेलाटोनिन लेवल ठीक होने का अर्थ है ध्यान लगाने (मेडीटेशन) में आसानी। मेडीटेशन से हमारा लीवर, मेलाटोनिन की खपत कम कर देता है जिससे शरीर में इसका स्तर बढ़ता है और हम गहरे ध्यान में चले जाते हैं। इस सम्बन्ध में हुयी एक रिसर्च से सामने आया कि विपश्यना मेडीटेशन या लम्बे समय तक ध्यान करने वालों में उन लोगों की तुलना में मेलाटोनिन लेवल काफी अधिक था जो मेडीटेशन नहीं करते। कुल मिलाकर पीनियल ग्लैंड को चाहे वैज्ञानिक नजरिये से देखें या आध्यात्मिक, यह हमारे शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य और आध्यात्मिक विकास को चरम बिंदु तक ले जाने में मददगार है।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें