कोई दो राय नहीं है कि पेरिस ओलम्पिक की तैयारी पर सरकार ने खूब पैसा बहाया, लेकिन जिनसे उम्मीद थी वे कसौटी पर खरे नहीं उतर पाए। हालांकि सरकार और उसके महकमे श्रेष्ठ प्रदर्शन का दम भर रहे हैं लेकिन डॉ. बत्रा के विश्लेषण से यह तो साफ हो गया है कि सरकार झूठी अकड़ दिखा रही है। इसलिए क्योंकि ओलंपिक आयोजन का दावा ठोकना है।
इक्कीसवीं सदी के पेरिस ओलम्पिक गेम्स में भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन कैसा रहा, इस बारे में यदि भारत सरकार, खेल मंत्रालय, भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) और भारतीय ओलम्पिक संघ (आईओए) से पूछेंगे तो हर एक का जवाब होगा -‘शानदार’, यह भी सुनने-पढ़ने को मिलेगा कि भारतीय खेल तरक्की कर रहे हैं।
अर्थात बिना स्वर्ण पदक के छह पदक जीतने वाला और पदक तालिका में 71वां स्थान पाने वाला दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश पेरिस ओलम्पिक में कसौटी पर खरा उतरा। लेकिन जब इस बारे में देश के खेल जानकारों और निष्पक्ष राय रखने वालों से पूछा जाए, तो अधिकतर को लगता है कि भारतीय खेल और खिलाड़ी उम्मीद के आस-पास भी नहीं पहुंच पाए।
इस बारे में भारतीय ओलम्पिक संघ के पूर्व अध्यक्ष, हॉकी इंडिया और अंतरराष्ट्रीय हॉकी फेडरेशन के अध्यक्ष रहे डॉ. नरेंद्र ध्रुव बत्रा ने पिछले छह ओलम्पिक में जीते पदकों के आधार पर यह समझाने का प्रयास किया है कि कैसे 21वीं सदी के छठे ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक में भारतीय प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। उनके अनुसार 2004 के एथेंस ओलम्पिक में भारत ने मात्र रजत पदक जीता था और पदक तालिका में 65वां स्थान प्राप्त हुआ।
2008 के बीजिंग खेलों में अभिनव बिंद्रा के स्वर्ण और दो कांस्य पदकों से पदक तालिका में 50वां स्थान मिला। चार साल बाद लंदन खेलों में दो रजत और चार कांस्य जीतकर तालिका में 55वें स्थान पर रहे। 2016 के रियो गेम्स में एक रजत और एक कांसे के साथ 67वां स्थान और टोक्यो गेम्स 2020 में सर्वकालीन श्रेष्ठ प्रदर्शन किया।
नीरज चोपड़ा ने स्वर्णिम प्रदर्शन जीता और कुल सात पदक जीतकर सर्वकालीन श्रेष्ठ रिकॉर्ड के साथ पदक तालिका में 48वें स्थान पर जा चढ़े। पेरिस ओलम्पिक 2024 में भले ही छह पदक जीत पाए पर बिना स्वर्ण के 71वें स्थान पर लुढ़क गए, जो कि 21वीं सदी का सबसे शर्मनाक प्रदर्शन कहा जाएगा। डॉ. बत्रा ने अपने विश्लेषण में यह भी समझाने का प्रयास किया है कि कुल प्रदर्शन और पदक तालिका में गिरावट के कारणों में खेल मंत्रालय, भारतीय खेल प्राधिकरण, भारतीय ओलम्पिक संघ, खेल फेडरेशनों, विभिन्न एनजीओ और बिजनेस घरानों का दखल, मिशन ओलम्पिक अभियान की त्रुटियां और अन्य जिम्मेदार विभागों का गैर जिम्मेदारी रवैया बड़े कारण रहे।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि पेरिस ओलम्पिक की तैयारी पर सरकार ने खूब पैसा बहाया, लेकिन जिनसे उम्मीद थी वे कसौटी पर खरे नहीं उतर पाए। हालांकि सरकार और उसके महकमे श्रेष्ठ प्रदर्शन का दम भर रहे हैं लेकिन डॉ. बत्रा के विश्लेषण से यह तो साफ हो गया है कि सरकार झूठी अकड़ दिखा रही है। इसलिए क्योंकि ओलंपिक आयोजन का दावा ठोकना है।