राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

विपक्ष अपनी नकारात्मक भूमिका छोड़े

Parliament winter sessionImage Source: ANI

संसद का शीतकालीन सत्र एक महीने चला और चार हफ्ते की कार्यवाही के दौरान कोई विधायी कार्य संपूर्ण नहीं हुआ। सरकार ने चार विधेयक जरूर प्रस्तुत किए परंतु एक भी विधेयक दोनों सदनों से स्वीकार होकर कानून बनने के लिए राष्ट्रपति के पास नहीं भेजा गया। विपक्षी पार्टियों ने हर किस्म की नकारात्मकता दिखाई। एक अनावश्यक मुद्दे पर संसद को ठप्प किया। उसके बाद उप राष्ट्रपति व राज्यसभा के सभापति श्री जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया।

देश के नागरिकों ने क्या विपक्ष का चुनाव उसी काम के लिए किया है, जो विपक्षी पार्टियों ने संसद के शीतकालीन सत्र में किया है? यह यक्ष प्रश्न है और इसका जवाब निश्चित रूप से विपक्षी पार्टियों के देना चाहिए। संसदीय लोकतंत्र की यह सुंदरता है कि इसमें मतदाता सिर्फ सरकार नहीं चुनते हैं, बल्कि विपक्ष भी चुनते हैं। उन्होंने तीन चुनाव में पहली बार कांग्रेस को मुख्य विपक्षी दल के तौर पर चुना है। इससे पहले दो चुनावों में देश के मतदाताओं ने कांग्रेस को मुख्य विपक्षी पार्टी बनने लायक जनादेश भी नहीं दिया था। परंतु इस बार उसे मुख्य विपक्षी पार्टी का जनादेश मिला तो क्या वह इसलिए मिला कि श्री राहुल गांधी आधिकारिक रूप से नेता प्रतिपक्ष बनें और अपने 99 सांसदों के दम पर संसद को ठप्प कर दें या संसद के सत्र में अनावश्यक मुद्दे उठाएं और कामकाज बाधित करें या संसदीय परंपराओं को खंडित करें और एक सांसद ने नाते मर्यादा की गिरावट की नई मिसाल बनाएं?

मतदाताओं ने सरकार का बहुमत कम किया और विपक्ष की शक्ति बढ़ाई तो उसका उद्देश्य सरकार को पहले से ज्यादा जवाबदेह बनाने के साथ साथ विपक्ष को भी रचनात्मक भूमिका देने का था। परंतु ऐसा लग रहा है कि विपक्ष ने जनादेश की गलत व्याख्या कर ली। उसको लग रहा है कि जनता ने उसे सरकार को कामकाज नहीं करने देने के लिए पहले से ज्यादा शक्तिशाली बनाया है।

संसद के शीतकालीन सत्र में विपक्षी पार्टियों ने इसी धारणा के साथ काम किया। पहले दिन से विपक्षी सांसदों ने अनावश्यक मुद्दे उठाए और कामकाज नहीं चलने दिया। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने सत्र के पहले दिन, 25 नवंबर को विपक्षी पार्टियों से आह्वान किया था कि संसद के सुचारू संचालन में सहयोग करें। संसदीय कार्यमंत्री श्री किरेन रिजीजू ने कहा था कि सरकार हर विषय पर चर्चा के लिए तैयार है। परंतु पहले दिन से ऐसा लगा कि मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने संकल्प किया हुआ है कि कार्यवाही नहीं चलने देनी है। उसने पहले दिन से अडानी समूह का मुद्दा उठाया। यह सही है कि अमेरिका की एक अदालत में अडानी समूह से जुड़े आठ लोगों के खिलाफ गंभीर आरोप लगे हैं। परंतु क्या कांग्रेस पार्टी खासतौर से श्री मल्लिकार्जुन खड़गे और श्री राहुल गांधी कभी यह सोचते हैं कि हर बार संसद सत्र से ठीक पहले इस तरह के मुद्दे कहां से और क्यों आ जाते हैं?

पूरे वर्ष में संसद के सिर्फ तीन सत्र होते हैं। अधिकतम चार महीने संसद की कार्यवाही चलती है। परंतु हर बार उससे पहले कोई न कोई विदेशी मीडिया या रिसर्च संस्थान या कोई गैर सरकारी संगठन भारत को लेकर कथित खुलासा कर देता है और उसके बाद विपक्षी पार्टियां उसके आधार पर हंगामा करके संसद नहीं चलने देती हैं। विपक्ष को निश्चित रूप से यह सोचना चाहिए कि हर बार सत्र से पहले क्यों हिंडनबर्ग या पेगासस या ओसीसीआरपी या मीडियापार्ट की खबरें आती हैं? और उसके आधार पर संसद नहीं चलने या पक्ष और विपक्ष में टकराव बढने से किसका फायदा होता है और किसको नुकसान होता है?

संसद का शीतकालीन सत्र एक महीने चला और चार हफ्ते की कार्यवाही के दौरान कोई विधायी कार्य संपूर्ण नहीं हुआ। सरकार ने चार विधेयक जरूर प्रस्तुत किए परंतु एक भी विधेयक दोनों सदनों से स्वीकार होकर कानून बनने के लिए राष्ट्रपति के पास नहीं भेजा गया। विपक्षी पार्टियों ने हर किस्म की नकारात्मकता दिखाई। एक अनावश्यक मुद्दे पर संसद को ठप्प किया। उसके बाद उप राष्ट्रपति व राज्यसभा के सभापति श्री जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया। यह पहली बार हुआ कि विपक्ष ने लगातार दो सत्रों में सभापति के खिलाफ इस तरह से अविश्वास प्रस्ताव का प्रयास किया। हालांकि सत्र के अंतिम दिन उप सभापति श्री हरिवंश ने विपक्ष को नोटिस को नामंजूर कर दिया। लेकिन विपक्ष ने दिखा दिया कि वह टकराव बढ़ाने के लिए किस हद तक जाने को तैयार है। रचनात्मक भूमिका निभाने और संसदीय कार्यवाही में सकारात्मक योगदान देने की बजाय विपक्ष की यह नकारात्मकता उसको खुद को तो नुकसान पहुंचा ही रही है अंततः देश को भी नुकसान पहुंचा रही है।

विपक्ष ने संसद को एक तरह से राजनीतिक उद्देश्य पूरा करने के लिए लड़ाई का मैदान बना दिया है। इसे शीतकालीन सत्र के अंतिम तीन दिन की कार्यवाही से समझा जा सकता है। राज्यसभा में संविधान पर दो दिन की चर्चा का जवाब देते हुए मंगलवार, 17 दिसंबर को केंद्रीय गृह मंत्री श्री अतिम शाह ने बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के प्रति उमड़े विपक्ष के नए नए प्रेम पर तंज किया और कहा कि, ‘अभी एक नया फैशन हो गया है अंबेडकर, अंबेडकर… इतना नाम अगर भगवान का लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता’। इसमें डॉक्टर अंबेडकर के लिए कुछ भी अपमानजनक नहीं है।

यह विपक्ष पर व्यंग्य था क्योंकि कांग्रेस और उसकी ज्यादातर सहयोगी पार्टियों ने कभी भी बाबा साहेब अंबेडकर को वह सम्मान नहीं दिया, जिसके वे हकदार थे। कांग्रेस ने उनको भारत रत्न नहीं मिलने दिया। उन्हें भारत रत्न तब मिला, जब कांग्रेस दूसरी बार केंद्र की सत्ता से बाहर हुई और भाजपा के समर्थन वाली सरकार बनी। कांग्रेस को जब लगा कि डॉक्टर अंबेडकर की अनदेखी करने और एक परिवार के लिए सब कुछ आरक्षित करने की उसकी नीति सवालों के घेरे में आई हुई है तो उसने उलटे बाबा साहेब के अपमान का मुद्दा बना दिया।

जिन लोगों ने अपने लंबे शासनकाल में कभी भी डॉक्टर अंबेडकर को सम्मान नहीं दिया और दलितों, पिछड़ों, वंचितों के लिए बाबा साहेब की सोच को शासन में लागू नहीं किया उन लोगों ने उनके अपमान का झूठा मुद्दा बना कर संसद को लड़ाई का अखाड़ा बना दिया। शीतकालीन सत्र में संसदीय राजनीति पर धब्बा लगाने वाली दूसरी घटना भी इसी से जुड़ी है। डॉक्टर अंबेडकर के कथित अपमान के मसले पर प्रदर्शन करते हुए कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों के सांसद इतने आक्रामक हो गए कि लड़ने, भिड़ने पर आमादा हो गए। विपक्ष के आक्रामक प्रदर्शन की वजह से गुरुवार, 19 दिसंबर को संसद परिसर में धक्कामुक्की हो गई, जिसमें भारतीय जनता पार्टी के दो सांसद घायल हो गए।

बुजुर्ग सांसद श्री प्रताप सारंगी और श्री मुकेश राजपूत को राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। भाजपा ने इस मामले में श्री राहुल गांधी के खिलाफ संसद मार्ग थाने में मुकदमा दर्ज कराया है। दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा इसकी जांच करेगी। इतना ही नहीं नागालैंड की अनुसूचित जनजाति की महिला सांसद सुश्री फांगनोन कोन्याक ने आरोप लगाया है कि प्रदर्शन के दौरान राहुल गांधी ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया। महिला सांसद का कहना है कि राहुल इतने नजदीक आ गए थे कि वे असहज महसूस कर रही थीं। राष्ट्रीय महिला आयोग ने इसका संज्ञान लिया है और लोकसभा स्पीकर व राज्यसभा के सभापति को इस मामले में तत्काल और उचित कार्रवाई करने को कहा है।

यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि संसदीय मर्यादा और परंपरा का लगातार क्षरण होता जा रहा है। कांग्रेस पार्टी लगातार तीसरी बार चुनाव हारने के बाद सत्ता के लिए इतनी बेचैन हो गई है कि उसने संसद की गरिमा का ख्याल त्याग दिया है। उसे लग रहा है कि पहले 10 साल उसने जो नकारात्मक भूमिका निभाई उसी से उसके सांसदों की संख्या बढ़ी है और इसलिए उसे और ज्यादा नकारात्मक भूमिका निभानी चाहिए। परंतु ऐसी राजनीति कांग्रेस के लिए और साथ साथ देश, समाज व नागरिकों के लिए भी नुकसानदेह है। इस समय देश के सामने अनेक गंभीर सवाल हैं, जिन पर संसद के अंदर चर्चा होनी चाहिए थी।

बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद हिंदुओं पर जिस तरह से अत्याचार हो रहे हैं, उस पर सभी को एकजुट होकर सवाल उठाना चाहिए थी। कनाडा और दुनिया के दूसरे देशों में हो रही भारत विरोधी गतिविधियों पर चर्चा करने और सरकार के हाथ मजबूत करने की आवश्यकता थी। राजधानी दिल्ली में, जहां विपक्षी सांसद अनावश्यक मुद्दों पर संसद की कार्यवाही स्थगित कर रहे थे वहां वायु प्रदूषण इतना है कि लोगों का दम घुट रहा है। इस पर संसद के अंदर गंभीर चर्चा होनी चाहिए थी। वक्फ बोर्ड का बिल संयुक्त संसदीय समिति के पास है, जिस पर विचार विमर्श की प्रक्रिया विपक्ष की वजह से लंबी खींच रही है।

दुनिया के अलग अलग हिस्सों में तख्तापलट और युद्ध की वजह से अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है। उस पर संसद के अंदर व्यापक चर्चा की आवश्यकता थी। परंतु विपक्ष ने सभी आवश्यक मुद्दों को दरकिनार करके अपने राजनीतिक एजेंडे से जुड़े मुद्दे उठाए और उस पर सिर्फ सरकार को झुकाने और संसद के दोनों सदनों में मनमानी करने का प्रयास किया। दुर्भाग्य है कि इसमें सफल नहीं होने पर विपक्ष मारपीट और धक्कामुक्की पर उतर गया। यह भारतीय संसद के इतिहास में विपक्ष की गिरावट की नई मिसाल है।   (लेखक दिल्ली में सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) के कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त विशेष कार्यवाहक अधिकारी हैं।)

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *