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पेजर अटैक से युद्ध को नया आयाम

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पेजर और अन्य उपकरणों में विस्फोट के जरिए इजराइल ने तकरीबन पांच हजार आम लेबनानी नागरिकों को निशाना बनाया। उनमें डॉक्टर, नर्सें, खोमचे वाले से लेकर अन्य कारोबारी शामिल थे। बेशक हिज्बुल्लाह के कई सैनिक भी निशाना बने। लेकिन मरे और घायल हुए लोगों में विशाल संख्या बिल्कुल सामान्य लोगों की है, जिनका हिज्बुल्लाह या उसकी गतिविधियों से कोई रिश्ता नहीं था।

अब यह साफ है कि लेबनान में पेजर, वॉकी-टॉकी, रेडियो उपकरण, सोलर पैनल आदि में जो विस्फोट हुए, वे साइबर हमले का नतीजा नहीं थे। बल्कि इन उपकरणों में लघु विस्फोटक पहले से प्लांट किए गए थे, जिन्हें रिमोट निर्देश के जरिए ट्रिगर किया गया। संभवतः इसी तरीके से अन्य उपकरणों में भी विस्फोटक प्लांट किए गए। शुरुआती चर्चा यह हुई कि इजराइली खुफिया एजेंसी मोसाद ने पेजर बनाने वाली ताइवानी कंपनी के हंगरी स्थित संयंत्र में पैठ बना कर इन साधारण उपकरणों का बम का रूप देने का इंतजाम किया। लेकिन अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी विस्तृत खोजी रिपोर्ट के जरिए जो जानकारी दी है, उससे एक बिल्कुल नई कहानी सामने आई है।

इसके मुताबिक 2020 में इजराइल ने लक्ष्य-केंद्रित हमले कर लेबनान स्थित गैर-सरकारी अर्ध सैनिक संगठन हिज्बुल्लाह के कई कमांडरों की हत्या कर दी थी। तब हिज्बुल्लाह प्रमुख हसन नसरुल्लाह ने अपने संगठन के भीतर मोबाइल फोन का इस्तेमाल रोकने का निर्देश दिया। वजह यह थी कि मोबाइल सिग्नल्स के जरिए इजराइल कमांडरों को ट्रैक करता था और उन्हें लोकेट कर सटीक हमले कर पाता था। नसरुल्लाह ने कमांडरों के साथ-साथ लेबनान के आम लोगों से भी गुजारिश की कि वे मोबाइल फोन का इस्तेमाल रोक दें और आपसी संवाद के लिए पेजरों का इस्तेमाल शुरू करें, जिन्हें जीपीएस से ट्रैक नहीं किया जा सकता। नसरुल्लाह ने कहा था कि पेजर भले पुरानी पड़ गई तकनीक हो, लेकिन ‘दुश्मन की क्षमताओं को देखते हुए’ सहूलियत की यह कुर्बानी देना जरूरी है।

न्यूयॉर्क टाइम्स ने बताया है कि तभी इजराइल ने पेजरों तक घुसपैठ के तरीके ढूंढने शुरू कर दिए। इसके लिए एक फर्जी (shell) कंपनी बनाई गई, जिसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने को पेजर निर्माता कंपनी के रूप प्रचारित किया। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट का यह हिस्सा महत्त्वपूर्ण है- “ऊपरी तौर पर सबको बी।सी।ए। कंसल्टिंग्स हंगरी की कंपनी मालूम पड़ती है। इसी कंपनी के साथ ताइवानी कंपनी गोल्ड ओपोलो ने पेजर उत्पादन का करार किया था। लेकिन तीन खुफिया अधिकारियों ने ताजा घटना के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि असल में यह इजराइली फ्रंट का हिस्सा है। उन्होंने बताया कि पेजर उत्पादन करने वाले लोगों- इजराइल के खुफिया अधिकारियों- को आवरण देने के लिए कम-से-कम दो अन्य फर्जी कंपनियां भी बनाई गईं।

बी।सी।ए। दूसरे आम ग्राहकों से भी ऑर्डर लेती थी, जिनके लिए सामान्य किस्म के पेजर बनाए जाते थे। लेकिन कंपनी के लिए एकमात्र ग्राहक महत्त्वपूर्ण था और वो था- हिज्बुल्लाह, जिसके लिए विशेष किस्म के पेजर निर्मित किए गए। इन पेजरों का उत्पादन अलग से हुआ और इनकी बैटरियों में विस्फोटक PETN मिला दिए गए।” (How Israel Built a Modern-Day Trojan Horse: Exploding Pagers – The New York Times (nytimes।com))

आगे क्या हुआ, यह अब दुनिया जानती है। लेकिन कुछ तथ्य उल्लेखनीय हैं। पेजर और अन्य उपकरणों में विस्फोट के जरिए इजराइल ने तकरीबन पांच हजार आम लेबनानी नागरिकों को निशाना बनाया। उनमें डॉक्टर, नर्सें, खोमचे वाले से लेकर अन्य कारोबारी शामिल थे। बेशक हिज्बुल्लाह के कई सैनिक भी निशाना बने। लेकिन मरे और घायल हुए लोगों में विशाल संख्या बिल्कुल सामान्य लोगों की है, जिनका हिज्बुल्लाह या उसकी गतिविधियों से कोई रिश्ता नहीं था। इस कार्रवाई से इजराइल लेबनान में आतंक का अभूतपूर्व माहौल बनाने में सफल रहा है।

इस इजराइली कार्रवाई को सीधे और दो-टूक शब्दों में आतंकवाद ही कहा जाएगा। दुनिया ने व्यापक आतंकवाद की ऐसी कार्रवाई पहली बार देखी है। आतंकवाद मानवता के विरुद्ध जनघन्यतम अपराध है। हैरतअंगेज है कि आतंकवाद के खिलाफ आवाज उठाने वाले अमेरिका और उसके साथी देशों को इजराइल का यह बर्बर चेहरा नजर नहीं आता है। उन्होंने इस कार्रवाई की निंदा करने तक से इनकार कर दिया है। लोकतंत्र और मानव अधिकारों पर तो उनका पाखंडी रूप तो दुनिया के सामने पहले ही बेपर्द हो चुका है, अब जाहिर है, दुनिया को आतंकवाद पर भी उनका चेहरा दागदार नजर आएगा।

बहरहाल, इस कार्रवाई ने पश्चिम एशिया में चल रहे युद्ध में नया आयाम जोड़ दिया है। यह बात तमाम विशेषज्ञ मानते हैं कि ताजा इजराइली कार्रवाइयों ने इस इलाके को क्षेत्रीय युद्ध के और करीब ला दिया है।

इस घटना के कई दूसरे दूरगामी परिणाम भी संभावित हैं। तकनीक और तकनीकी मानदंडों के विभाजन की चुनौती पहले से दुनिया के सामने है। विभाजन अमेरिकी और चीनी तकनीक के बीच है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस में ये दोनों देश अपने-अपने मानदंड तैयार कर रहे हैं। कहा यह जाता है कि इनमें से एक मानंदड से संचालित एआई उपकरण को दूसरे मानदंड से नहीं चलाया जा सकेगा। बात तो इंटरनेट के विभाजन तक की चल रही है। इस घटना से इस प्रक्रिया में गति आने का अनुमान है।

हमले में इस्तेमाल हुए पेजर के उत्पादन से अमेरिकी सप्लाई चेन वाली कंपनियों का संबंध है। इससे संदेश यह गया है कि इस सप्लाई चेन का इस्तेमाल अमेरिका के सहयोगी देश अपने दुश्मनों को ऩिशाना बनाने के लिए कर रहे (या कर सकते) हैं। इसी मौके पर खुद अमेरिका में वहां के फेडरल ट्रेड कमीशन ने अपनी एक रिपोर्ट में इस बात की फिर पुष्टि कर दी है कि गूगल, फेसबुक, ह्वाट्सऐप, एक्स (ट्विटर) आदि जैसी नौ अमेरिकी कंपनियां बड़े पैमाने पर लोगों के निजी डेटा चुरा रही हैं। (Social media and online video firms are conducting ‘vast surveillance’ on users, FTC finds। Technology।The Guardian)। सवाल यह है कि क्या इस डेटा का इस्तेमाल सैनिक मकसदों से भी हो रहा है?

इजराइल ने व्यापक आतंकवाद का इस्तेमाल कर युद्ध की एक और मर्यादा तोड़ी है। लेकिन आगे दूसरी ताकतों के भी ऐसे तरीकों का इस्तेमाल करने का रास्ता उसने खोल दिया है। गौरतलब है कि 17 और 18 सितंबर को लेबनान में जो हुआ, उससे वहां चल रहे युद्ध आख्यान में एक नया अध्याय जुड़ा। लेकिन यह आखिरी अध्याय नहीं है।

हसन नसरुल्लाह ने उसके बाद एक प्रसारण में इजराइल को संबोधित करते हुए कहा- ‘आज आप खुश होइए, जश्न मनाइए। लेकिन आगे का समय आपके रोने का होगा।’ उनकी ये टिप्पणी अहम है- ‘इस आक्रमण का अपना दंड और अपना खास प्रतिकार होगा। हम नए तरीकों की तरफ जाएंगे और दुश्मन के साथ नए किस्म का टकराव शुरू होगा। उन्हें यह मालूम होना चाहिए कि हम पराजित होने, टूट जाने, या हतोत्साहित होने वाले लोग नहीं हैं।’  इस चेतावनी मे निहित अशुभसूचक संकेत स्पष्ट हैं।

By सत्येन्द्र रंजन

वरिष्ठ पत्रकार। जनसत्ता में संपादकीय जिम्मेवारी सहित टीवी चैनल आदि का कोई साढ़े तीन दशक का अनुभव। विभिन्न विश्वविद्यालयों में पत्रकारिता के शिक्षण और नया इंडिया में नियमित लेखन।

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