राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

जागरूक भक्तों ने बचाया ओशो आश्रम

जब भी कभी कोई आध्यात्मिक गुरु या संगठन काफ़ी विख्यात हो जाता है तो उसमें विवाद भी पैदा होने लगते हैं। ऐसा ही कुछ हुआ विश्व भर के प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु ओशो के संगठन के साथ। कुछ दिनों पहले ओशो रजनीश का पुणे स्थित आश्रम भी ऐसे ही कारणों के चलते सुर्ख़ियों में रहा। विवाद का कारण पुणे के ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिसॉर्ट की ज़मीन में से 3 एकड़ जमीन को ओशो के ही कुछ अनुयायियों और पूर्व ट्र्स्टी द्वारा मिलकर बेचना था। इससे ओशो विद्रोही गुट की बेचैनी बढ़ गई, जिसने अपने “गुरु” की विरासत को खत्म करने के किसी भी कदम का कड़ा विरोध किया। मामला देश की सर्वोच्च अदालत तक पहुँच गया और इस ग़ैर-क़ानूनी बिक्री पर रोक लगी।

देश भर में विभिन्न संप्रदायों और पंथों के आध्यात्मिक साधना केंद्रों की तरह पुणे का ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिसॉर्ट भी ओशो के अनुयायियों के लिए एक तीर्थ के समान है। ओशो को मानने वाले यहाँ ध्यान-साधना करने आते हैं। परंतु बीते कुछ वर्षों से यह आश्रम विवादों में रहा है। ओशो के भक्तों के अनुसार ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन (ओआईएफ) पुणे के कोरेगांव पार्क में बने इस रिसॉर्ट की ज़मीन को एक औद्योगिक घराने को कौड़ियों के भाव में बेचने का निर्णय ले चुका था। उनका यह भी आरोप है कि ओआईएफ़ विदेशी ताकतों के हाथ में है और स्विटजरलैंड से संचालित हो रहा है। ग़ौरतलब है कि पुणे के आश्रम की ज़मीन की क़ीमत लगभग ₹ 1500 करोड़ है। इसमें से एक हिस्सा ₹ 107 करोड़ में एक औद्योगिक घराने को बेचने का प्रयास किया जा रहा था। इस ‘गुप्त सौदे’ के बारे में जैसे ही ओशो के शिष्य योगेश ठक्कर को पता चला तो उन्होंने इस पर पुणे के चैरिटी कमिश्नर के पास आपत्ति दर्ज करवाई।

जैसे ही यह बात ओशो के अन्य भक्तों के बीच फैली तो कई और भक्त भी इसका विरोध करने पहुँच गए। उल्लेखनीय है कि ओआईएफ़ ने स्वयं माना कि वो इसे बेचने की सोच रहा था। लेकिन इसके पीछे कोरोना के कारण ओशो कम्यून को हुए नुकसान की भरपाई करना था। उनका कहना था कि कोरोना के कारण ओशो कम्यून को काफी नुकसान हुआ। इसके अलावा सीमाएं बंद होने के कारण विदेशी अनुयायी नहीं आ सके, जिससे नुकसान और बहुत बढ़ गया और वित्तीय वर्ष 2020-21 में यह 3.37 करोड़ तक पहुँच गया। इसी वजह से उन्होंने प्रॉपर्टी बेचने की बात सोची। वकील वैभव मेठा के अनुसार, “ओआईएफ एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट है। यदि कोई सार्वजनिक ट्रस्ट कोई जमीन बेचना चाहता है, तो चैरिटी आयुक्त कार्यालय की अनुमति लेना अनिवार्य है। परंतु भक्तों के अनुसार इस ‘गुप्त सौदे’ के ‘एमओयू’ होने के बाद केवल औपचारिकता निभाने की मंशा से ही अनुमति माँगी गई। परंतु ओशो के भक्तों को इसकी भनक लग गई। देखते ही देखते दुनिया भर के हज़ारों भक्तों ने ईमेल के द्वारा चैरिटी कमिश्नर को अपनी आपत्ति जताई।

इस मामले की सुनवाई 2021 में ही ज्वाइंट चैरिटी कमिश्नर के समक्ष शुरू हुई। आपत्तिकर्ताओं ने ओआईएफ ट्रस्टियों, जिन्होंने दो भूखंड बेचने की मांग की थी, उनसे जिरह की मांग की। संयुक्त चैरिटी आयुक्त कार्यालय ने याचिका को बरकरार रखते हुए जिरह की माँग को जायज़ ठहराया। इस पर ओआईएफ ने बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, वहाँ भी जिरह की मांग को बरकरार रखा गया। इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ जाते हुए ओआईएफ सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में न केवल जिरह की अनुमति दी, बल्कि संयुक्त चैरिटी आयुक्त के कार्यालय को अपनी जाँच प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया। नतीजतन ओआईएफ को सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका को वापिस लेना पड़ा।

ओशो के भक्त योगेश ठक्कर के अनुसार “संयुक्त चैरिटी आयुक्त के कार्यालय ने मामले में लगातार सुनवाई की। इतना ही नहीं एक विशेष दिन पर, सुनवाई सुबह 11 बजे शुरू हुई और रात 12 बजे के बाद समाप्त हुई,।” अंततः चैरिटी कमिश्नर ने ओआईएफ के आवेदन को खारिज कर दिया, क्योंकि वे विवादित ज़मीन को बेचने के लिए “सम्मोहक आवश्यकता साबित करने में विफल रहे”। इतना ही नहीं चैरिटी कमिश्नर कार्यालय ने यह भी तर्क दिया कि ओआईएफ के पास रिसॉर्ट का प्रबंधन करने के लिए पर्याप्त धन भी मौजूद था।

आदेश के तहत ओआईएफ को न केवल 50 करोड़ की अग्रिम राशि लौटानी पड़ेगी, बल्कि आदेश की तारीख से एक महीने के भीतर, सहायक चैरिटी आयुक्त, ग्रेटर मुंबई क्षेत्र द्वारा नियुक्त किए जाने वाले विशेष लेखा परीक्षकों की एक टीम द्वारा 2005 से 2023 तक ओआईएफ के खातों का विशेष ऑडिट भी किया जाएगा।

इस फ़ैसले के बाद ओशो के साथ रहे उनके वरिष्ठ शिष्य स्वामी चैतन्य कीर्ति ने कहा कि, “यह एक ऐतिहासिक फ़ैसला है जो ओशो की विरासत को बचाने में एक मील का पत्थर सिद्ध होगा।” वे यह भी कहते हैं कि “यह एक लंबी लड़ाई की शुरुआत है जहां कुछ निहित स्वार्थ वाले विदेशी तत्व ओशो की विरासत को हथियाना चाहते हैं, जिसमें ओशो की तमाम लेखनी व अन्य चल-अचल संपत्ति भी शामिल है। जो हम कभी भी होने नहीं देंगे”

आध्यात्मिक संस्थाओं को स्थापित करने वाले गुरुओं के शिष्यों को उनके बताए सिद्धांतों का अनुपालन करना चाहिए वरना गुरुओं के वैकुण्ठ वास के बाद ऐसे विवादों का होना सामान्य है। फिर वो मामला चाहे ओशो के आश्रम की ज़मीन का हो या किसी अन्य आध्यात्मिक संस्था की संपत्ति का, ऐसे विवाद पैदा होते रहे हैं और होते रहेंगे। परंतु ऐसी हर आध्यात्मिक संस्था में जब तक आध्यात्मिक गुरुओं के सच्चे शिष्य इन ग़ैर-क़ानूनी गतिविधियों का विरोध करते रहेंगे तो ही ऐसे विवादों को रोका जा सकेगा। शायद इसीलिए कहा गया है कि सत्य परेशान ज़रूर हो सकता परंतु पराजित नहीं हो सकता।

Tags :
Published
Categorized as Columnist

By रजनीश कपूर

दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्यूरो के प्रबंधकीय संपादक। नयाइंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें