भाजपा की पिच पर भाजपा को हराना आसान नहीं है। राहुल ने तीन साल पहले भी हिन्दू और हिन्दुत्व की बहस छेड़ी थी। कहा था कि हम हिन्दू हैं। हमारृ धर्म है मगर हिन्दुत्व एक राजनीतिक विचार है। जयपुर में उन्होंने कहा था कि हिन्दू सत्य की खोज करता है वहीं भाजपा को हिन्दुत्वादी बताते हुए कहा था कि वे सत्ता की खोज में रहते हैं। राहुल प्रधानमंत्री मोदी के साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने के कोशिशों पर हमेशा प्रहार करते रहे हैं। छह साल पहले 2018 में भी उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी को हिन्दू धर्म की समझ नहीं है।
विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने वैचारिक जंग शुरू कर दी है। उन्होने नरेंद्र मोदी सेबच बचा कर लड़ने का अवसरवादी कांग्रेसियों का रास्ता छोड़ दिया है। यहअलग बात है कि वे इन कांग्रेसियों को पदों से नहीं हटा पा रहे हैं।पार्टी के सारे महत्वपूर्ण पदों पर इन निहित स्वार्थी नेताओं का ही कब्जा है जो केवलअपने प्रचार में लगे रहते है। इन्हें जब तक कुर्सी और फायदामिलता रहेगा ये राहुल के नजदीक रहेंगे और जैसे ही यहां पोल खुलती लगी औरभाजपा से ग्रीन सिग्नल मिला ये वहां चले जाएंगे।
अभी तक कितने गए हैं? गिनती करना भी मुश्किल है। मगर उससे कांग्रेस याराहुल गांधी कमजोर नहीं हुए है। और येजो गए हैं तो कहना पड़ रहा है कि इससेकांग्रेस कतई कमजोर नहीं हुई। लेकिन अगर कांग्रेस इन्हें खुद निकाल दे तोलिखा जाएगा कि कांग्रेस और राहुल मजबूत हैं। मजबूत हुए हैं। फैसला लेनेकी हिम्मत आ गई है। बेइमानों को बर्दाश्त करना स्वीकार नहीं।
सोमवार को राहुल गांधी ने लोकसभा में बहुत सारे मुद्दों पर बोला इसलिए यह बात दबी रह गई।मगर जैसे प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा को इंगित करके यह कहा कि आप हिन्दूहो ही नहीं वैसे ही लोकसभा में कांग्रेसियों की तरफ पीछे घूमकर यह भीबोला कि ये जी 23 और जी 25 कुछ भी बना लेते हैं। और जो मन में आता हैमुझे बोल जाते हैं।
मोदी जी और भाजपा पर हिंसा और असत्य की बात करने के शब्द तो लोकसभा नेरात दो बजे एक्सपंज कर दिए। लोकसभा की कार्रवाई से निकाल दिए। मगर अभी हमजिस की बात कर रहे हैं कांग्रेसियों को आईना दिखाने की तो वह अपनी जगहहै। लेकिन राहुल गांधी अगर सिर्फ आईना ही दिखाकर रह गए तो इस वार को जिसकोकांग्रेस में आइडियोलोजिकल वार (विचार की लड़ाई) कहा जा कहा है जीतनामुश्किल होगा।
भाजपा की पिच पर भाजपा को हराना आसान नहीं है। राहुल ने तीन साल पहले भीहिन्दू और हिन्दुत्व की बहस छेड़ी थी। कहा था कि हम हिन्दू हैं। हमारृ धर्म है मगर हिन्दुत्व एक राजनीतिक विचार है। जयपुर में उन्होंने कहा थाकि हिन्दू सत्य की खोज करता है वहीं भाजपा को हिन्दुत्वादी बताते हुए कहाथा कि वे सत्ता की खोज में रहते हैं। राहुल प्रधानमंत्री मोदी केसाम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने के कोशिशों पर हमेशा प्रहार करते रहे हैं।छह साल पहले 2018 में भी उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी को हिन्दूधर्म की समझ नहीं है।
राहुल हमेशा से हिन्दू धर्म के सत्य अहिंसा प्रेम के संदेश को उठाते रहेहैं। और उसे महात्मा गांधी की धर्म की व्याख्या के अनुरूप शांति औरसद्भाव का धर्म बताते रहे हैं। मगर पार्टी में भी उनकी इस लाइन को ज्यादा
स्वीकृति नहीं मिली। लेकिन दो भारत यात्राएं करने के बाद और लोकसभा में शानदारप्रदर्शन करने के बाद राहुल फिर से उस मुश्किल पिच पर खेलने लगे है।
विपक्ष के नेता बनने के बाद सोमवार को लोकसभा में उनका पहला भाषण था।बहुत सारे इश्यू थे। नीट, महंगाई, बेरोजगरी, अग्निवीर, मणिपुर, किसान। औरराहुल इन सब पर बोले भी। मगर दो घंटे के अपने भाषण में उन्होंने सबसेज्यादा हिन्दू असत्य नहीं बोलता, हिंसा नहीं करता, इस पर बोला। और जो यह करते हैंमोदी-आरएसएस- भाजपा, उस हिन्दू पर बोला।
यह सच है कि सदन में खुद नरेंद्र मोदी जी अमित शाह और बाकी मंत्री व भाजपा के सांसदराहुल का मुकाबला नहीं कर पाए। पहले का समय होता तो सत्ता पक्ष के सदस्यराहुल को बोलने ही नहीं देते। मगर राहुल को कोई नहीं रोक पाया। और सच यहहै कि वैसी कोशिश भाजपा की तरफ से दिखी भी नहीं।
खुद नरेंद्र मोदी का चेहरा उतरा हुआ था। उन्हें शायद पहली बार यह अहसास हो रहाहोगा कि होशियार, पढ़े लिखे, संसदीय मामलों के जानकार सांसद सदन मेंकितने जरुरी होते हैं। मोदी जी ने तो जिस को मन चाहा लड़ाया जिसे मन चाहामंत्री बनाया। रविशंकर प्रसाद के गुस्से में बोलने की लोग चाहे जितनीआलोचना करें। मगर उन्हें बोलना और रोकना दोनों आता है। अब तो पीछे बिठाएजाने लगे हैं। एक बार खड़े भी हुए मगर पार्टी से कोई समर्थन नहीं मिला तोबैठ गए।
ऐसे ही मुख्तार अब्बास नकवी जानते थे। सही या गलत की बात हम यहांनहीं कर रहे केवल यह बता रहे हैं कि मोदीजी के पास अब कोई अच्छी टीमनहीं है। सही तो यह है कि टीम ही नहीं है। केवल वे खुद है। और वे अनुकूल पिच पर ही खेलने वालों में से हैं। या जिसे नाट्यशास्त्र के शब्दों में कहा जाताहै कि नेपथ्य से सूत्रधार के सहारे संवाद अदायगी करने वाले। आजकल की भाषामें टेलिप्राम्पटर पर पढ़कर दोहराने वाले।
खुद से वे कितनी स्थिति संभाल सकते हैं यह सोमवार को लोकसभा में दिख गया।खुद नेता मोदी के हाथ पांव डाल देने से बाकी सांसद और मंत्री भी शांत होगए थे। हां, जैसा दो लोगों की सरकार कही जाती है। दूसरे अमित शाह बराबरराहुल को रोकने की कोशिश कर रहे थे। यहां तक कि स्पीकर से संरक्षण भीमांग रहे थे। एक वे थे जिनकी कोशिशों में कमी नहीं दिखी। बाकीप्रधानमंत्री सहित सत्ता पक्ष के सब ने बता दिया कि वे प्रतिकूल पिच परनहीं खेल सकते।
हो सकता है अरविन्द केजरीवाल की वह बात सही साबित होने वाली हो कि जीत भी जाएं तो नरेंद्र मोदी कुछ समय बाद प्रधानमंत्री नहीं रहेंगे। अमित शाह बनेंगे।देखिए क्या होता है। राजनीति एक दिन में पलटा मारती है। सोमवार को इसकीझलक सबने देखी। राहुल का सूरज चढ़ता हुआ और मोदी जी का उतरता हुआ।
लेकिन यहां जैसा प्रधानमंत्री मोदी जी के लिए कहा कि सदन में उनके पासकुशल टीम नहीं थी। वैसा ही नेता प्रतिपक्ष राहुल के साथ भी था। राहुल कीजो मदद कर रहे थे वे टीएमसी के, सपा के और डीएमके के सदस्य थे। कांग्रेसके तो जबर्दस्ती हल्ला मचाने लगते थे। उन्हें यह भी नहीं मालूम था कि जब अपना आदमी बोलता है तो शोर नहीं मचाते। दूसरे पक्ष को प्रवोक नहीं करते।खुद राहुल को गौरव गगोई का नाम लेकर कहना पड़ा कि चुप हो जाओ।
समस्या यह है कि मोदीजी ने अहं ब्रह्मास्मि, अपने अहंकार के कारण लोकसभामें जिसको मर्जी उसको टिकट दिया। मंत्री बनाया। मगर लोकसभा के बाहर, संसदके बाहर उनके पास संघ जैसा काम करने वाला नेटवर्क है। और प्रधानमंत्रीहैं तो कुशल अफसरों का सहयोग है। मगर भाजपा पार्टी उन्होंने खत्म कर दी। वहांपहले की तरह काम करने वाले लोग नहीं बचे हैं। खैर उनकी पार्टी का जो होगावह पार्टी देखेगी। पूरी नेतृत्व लाइन खत्म कर देने के बाद नया नेतृत्वफिर से खड़ा करना आसान नहीं होगा।
कांग्रेस यह खामियाजा भुगत रही है। मोदीजी के पास संसद के बाहर तोढांचा है। मगर कांग्रेस में तो वह भी नहीं है। कांग्रेस भी अकेली राहुल गांधी की हिम्मत से चल रही है। सोचिए अगर राहुल ने अपनी पहली यात्रा भारत जोड़ोयात्रा शुरू नहीं की होती तो क्या आज लोकसभा में कांग्रेस इतनी मजबूतस्थिति में होती।
तब इंडिया गठबंधन भी नहीं बन पाता। और न इंडिया गठबंधन की इतनी सीटें आतीं।लोकसभा में जो मोदी कुछ नहीं कर सके वह इसी वजह से कि वहां इंडिया गठबंधनके सदस्य भी बराबरी की संख्या में दिख रहे थे। इसलिए राहुल को अब अगर इस आइडियोलाजिकल वार को आगे तक ले जाना है तोउन्हें इस वार को लड़ने वालों की टीम भी बनाना होगी। ढीले ढाले नेतृत्वसे काम नहीं चलेगा।
उन्हे अवसरवादियों को पार्टी और राहुल के बदले खुद का प्रचार करने वाले लोगों कोबाहर करना होगा। बुधवार को संसद सत्र खत्म हो जाएगा। उसके बाद नेता, विपक्ष को क्या करना चाहिए?संगठन के काम में लग जाना चाहिए। एक बार सबको हटाओ। फिर नए लोग लगाओ।